हिलसा (नालंदा दर्पण)। नालंदा जिले में चौकीदारों की स्थिति और उनकी भूमिकाओं को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। जो चौकीदार गांवों में सुरक्षा और सूचना का महत्वपूर्ण काम संभालते थे, वे अब पुलिस अफसरों के घरेलू कामों और मजदूरी जैसे कार्यों में व्यस्त दिख रहे हैं।
विश्वस्त सूत्रों के हवाले से हिलसा अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी (DSP) के सरकारी आवास को कुछ ऐसे ही वीडियो सामने आए है। इस वीडियो में पुलिस विभाग की वर्दी में चौकीदार मिट्टी भराई जैसे काम करते नजर आ रहे हैं। यह दृश्य न केवल चौकीदारों की भूमिका पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि पूरे पुलिस तंत्र की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर चिंताएं उत्पन्न करता है।
जबकि चौकीदारों का मुख्य कार्य गांव-जेवार में सुरक्षा बनाए रखना और थाना को अपराध एवं घटनाओं की जानकारी देना है। उनपर नजर रखना है। लेकिन जब ये चौकीदार अपने असली कर्तव्यों को छोड़कर डीएसपी और अन्य अधिकारियों के निजी कामों में लगे हों तो गांवों में चोरों और अपराधियों के हौसले बुलंद होना स्वाभाविक है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि चौकीदार प्रायः थाना और अनुमंडल मुख्यालयों में चाकरी करते नजर आते हैं। इस कारण ग्रामीण इलाकों में अपराध की घटनाएं बढ़ रही हैं। कई बार घटनाओं की जानकारी समय पर पुलिस तक नहीं पहुंचती, क्योंकि चौकीदार अपनी मूल जिम्मेदारियों से कट चुके हैं।
हिलसा डीएसपी आवास पर मिट्टी भराई का वीडियो इस स्थिति को और शर्मनाक बना देता है। ग्रामीण और स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह दृश्य चौकीदारों को पुलिस का हिस्सा कम और मज़दूर अधिक दिखाता है। सवाल यह है कि आखिर चौकीदारों की जिम्मेदारियां इस हद तक क्यों बदली जा रही हैं?
यह स्थिति केवल हिलसा तक सीमित नहीं है। पूरे नालंदा जिले में चौकीदारों को उनके मूल कार्य से अलग हटाकर अधिकारियों के निजी कामों में लगाया जा रहा है। वरीय अधिकारियों को इस पर संज्ञान लेना चाहिए और तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए।
क्योंकि चौकीदार ग्रामीण पुलिस तंत्र की रीढ़ होते हैं। अगर उन्हें सही दिशा और कार्य करने की स्वतंत्रता मिले तो वे अपराध नियंत्रण और सूचना तंत्र को मजबूत बना सकते हैं। वरीय पुलिस अधिकारियों को चौकीदारों के सही उपयोग और उनकी जिम्मेदारियों को सुनिश्चित करना होगा।
बहरहाल पुलिस व्यवस्था, चौकीदारों की भूमिका और पदाधिकारियों की जिम्मेदारियों का भारतीय प्रशासनिक ढांचे में अपना अलग-अलग महत्वपूर्ण स्थान है। आइए इस पर एक संक्षिप्त चर्चा करते हैं-
स्थानीय सुरक्षा: गांव के चौकीदार का मुख्य कार्य अपने क्षेत्र में स्थानीय स्तर पर कानून और व्यवस्था बनाए रखना है।
खबर जुटाना: चौकीदार स्थानीय स्तर पर अपराधों और विवादों की सूचना इकट्ठा करके इसे पुलिस अधिकारियों तक पहुंचाता है।
संपर्क का माध्यम: वह ग्रामीणों और पुलिस के बीच संपर्क का माध्यम होता है।
सरकारी योजनाओं में मदद: चौकीदार कभी-कभी प्रशासनिक कार्यों में भी सहायक हो सकता है। जैसे जनगणना या अन्य सर्वेक्षण में सहयोग देना।
कानून व्यवस्था बनाए रखना: DSP पुलिस विभाग में एक उच्च अधिकारी होता है, जिसकी जिम्मेदारी उसके अधिकार क्षेत्र में शांति और कानून व्यवस्था सुनिश्चित करना है।
अपराधों की रोकथाम और जांच: DSP का काम बड़े अपराधों की जांच और अपराधियों को न्याय के दायरे में लाना है।
टीम का नेतृत्व: DSP अपने अधीनस्थ पुलिसकर्मियों को निर्देश देकर सुनिश्चित करता है कि सभी जिम्मेदारियां समय पर और प्रभावी ढंग से पूरी हों।
सामाजिक सेवा और जागरूकता: वह जनता के साथ संवाद स्थापित कर समाज में सुरक्षा और जागरूकता का माहौल बनाता है।
भूमिका और अधिकार: जहां चौकीदार एक ग्रामीण स्तर का कर्मचारी है। वहीं DSP एक राजपत्रित अधिकारी (Gazetted Officer) है। जिसके पास निर्णय लेने और आदेश देने का अधिकार होता है।
कार्य क्षेत्र: चौकीदार का कार्यक्षेत्र सीमित और स्थानीय होता है। जबकि DSP पूरे जिले या बड़े क्षेत्र का संचालन करता है।
कार्य का स्वरूप: चौकीदार का काम आमतौर पर सूचनाएं इकट्ठा करना और स्थानीय विवादों की निगरानी करना होता है। DSP का काम रणनीतिक और प्रबंधकीय होता है। जो बड़े स्तर पर कानून व्यवस्था बनाए रखने पर केंद्रित है।
मानव संसाधन की कमी: कभी-कभी चौकीदारों और पुलिसकर्मियों पर बहुत ज्यादा काम का दबाव डाल दिया जाता है, जिससे उनकी क्षमता और कार्यक्षमता प्रभावित होती है।
मनरेगा जैसा काम?: जब चौकीदार या पुलिसकर्मी गैर-पुलिसीय कार्यों, जैसे समारोहों की व्यवस्था, सरकारी योजनाओं में मजदूरी या अन्य प्रशासनिक काम करने लगते हैं तो उनके वास्तविक कार्यों पर असर पड़ सकता है। यही बात व्यंग्य का कारण बनती है।
प्रशासनिक सुधार की जरूरत: यह जरूरी है कि हर कर्मचारी और अधिकारी अपनी भूमिका को स्पष्ट रूप से समझे और उसी के अनुरूप जिम्मेदारियां निभाए।
प्रशिक्षण और प्रबंधन: चौकीदारों और पुलिसकर्मियों को उनकी भूमिकाओं के अनुसार प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
कार्यभार संतुलन: चौकीदार और DSP, दोनों के कार्यभार को संतुलित किया जाए। ताकि वे अपने असली काम पर ध्यान दे सकें।
तकनीकी सुधार: स्थानीय चौकीदारों को रिपोर्टिंग और निगरानी के लिए आधुनिक उपकरण और तकनीक से लैस किया जाए।
जवाबदेही तय करना: अधिकारियों और कर्मचारियों की जवाबदेही सुनिश्चित की जानी चाहिए।
DGP साहब बताईए जरा, ये गांव के चौकीदार हैं या DSP के मनरेगा मजदूर? देखिए वीडियो…
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