“मछली उत्पादन में अग्रणी नालंदा जिले को अब अपने संसाधनों का अधिकतम उपयोग करते हुए मछली आहार उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने की जरूरत है। केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन से ही इस लक्ष्य को हासिल किया जा सकेगा…
बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। नालंदा जिले में मछली दाना (फीश मीड) उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाए जा रहे हैं। केंद्र और राज्य सरकार की ओर से चलाई जा रही योजनाओं के तहत जिले के मत्स्य पालकों को मछली आहार के लिए दूसरे प्रदेशों पर निर्भरता खत्म करने की कोशिशें तेज हो गई हैं। वर्तमान में नालंदा के मत्स्यपालकों को अपनी आवश्यकता का 90% मछली आहार आंध्र प्रदेश से मंगाना पड़ता है।
बिहार राज्य मत्स्यजीवी सहकारी संघ पटना के निदेशक शिवनंदन प्रसाद के अनुसार सरकार द्वारा दिए गए बजट के तहत मछली दाना उत्पादन इकाई (फीश मीड) स्थापित करना मुश्किल हो रहा है। सरकार ने केवल दो करोड़ रुपये की परियोजना का निर्धारण किया है, जो जिले की जरूरतों के लिए अपर्याप्त है। इसके अलावा, फीश मीड के लिए पर्याप्त अनुदान की व्यवस्था नहीं की गई है।
इस वित्तीय वर्ष में मत्स्य विभाग ने नालंदा जिले में चार लघु फीश मीड उद्योग स्थापित करने का लक्ष्य रखा है। अब तक सरमेरा और दो अन्य स्थानों पर ये इकाइयां चालू की जा चुकी हैं। जिले में कुल 90 फीश मीड यूनिट लगाने का लक्ष्य है, जिसमें सामान्य वर्ग के लिए 60, अनुसूचित जाति और अति पिछड़ा वर्ग के लिए 15-15 यूनिट शामिल हैं। प्रत्येक यूनिट पर लगभग एक लाख रुपये का खर्च निर्धारित किया गया है।
फिलहाल यहां 1,800 सरकारी तालाब और 600 निजी तालाब हैं, जो मत्स्य पालन के लिए बड़े संसाधन हैं। यदि फीश मीड उत्पादन इकाइयां सही तरीके से स्थापित होती हैं तो जिले के मत्स्य पालकों को सस्ता और स्थानीय मछली आहार मिल सकेगा। इससे न केवल उत्पादन लागत में कमी आएगी बल्कि जिले के मत्स्य उद्योग को नई रफ्तार मिलेगी।
मत्स्य विभाग के अधिकारी मानते हैं कि यदि योजनाओं को सही तरीके से लागू किया गया और अनुदान की व्यवस्था बढ़ाई गई तो नालंदा जल्द ही मछली दाना उत्पादन में आत्मनिर्भर बन सकता है। आत्मनिर्भरता न केवल स्थानीय उद्योग को बढ़ावा देगी बल्कि जिले के युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर भी पैदा करेगी।
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