बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। पुनर्जीवित नालंदा विश्वविद्यालय पर विशेष आवरण डाक टिकट जारी किया गया है। विश्व का पहला डाक टिकट पटना में 1774 ईस्वी में जारी किया गया था। उस समय उस टिकट की कीमत मात्र एक आना था। प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के कॉन्सेप्ट पर पुनर्जीवित नालंदा विश्वविद्यालय का निर्माण किया गया है।
बताया जाता है कि आने वाले समय में राजगीर के चर्चित ग्लास ब्रिज, नेचर सफारी, जू सफारी पर भू डाक टिकट जारी की जाएगी। ग्रामीण परिवेश में डाक और डाकिया का बहुत महत्व है। बच्चे डिजिटल हो रहे हैं। लेकिन लेखन क्षमता को अक्षुण्ण रखने के लिए पत्र लेखन आवश्यक है।
संदेश और पत्र भेजने में जमीन आसमान का अंतर है। स्वीडन जैसे देश में प्रति व्यक्ति 1000 पत्र लिखते हैं। भूटान में प्रति व्यक्ति 700 से 800 पत्र लिखते हैं। लेकिन भारत में प्रति व्यक्ति 6 -7 पत्र ही लिख पाते हैं। युवा पीढ़ी को बुजुर्गों से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए ही पत्र लिखें। डाकघर केवल डाक ही नहीं बांटता है, बल्कि सेवाएं भी देता है।
बिहार में 70 फीसदी पासपोर्ट और 65 फीसदी आधार कार्ड डाकघर में बनता है। बिहार के विभिन्न डाकघर में साढ़े चार करोड़ बैंकिंग अकाउंट है। विश्व के आधे से अधिक राष्ट्राध्यक्ष डाक टिकट संग्रहकर्ता रह चुके हैं।
नालंदा विश्वविद्यालय परिसर में डाकघर खोलने की मांगः नालंदा विश्वविद्यालय में फिलहाल 25 देशों के विद्यार्थी पढ़ते हैं। पहले 38 देशों के विद्यार्थी पढ़ते थे। देशी-विदेशी विद्यार्थियों को विश्वविद्यालय द्वारा डाक से सर्टिफिकेट भेजे जाते हैं। इसलिए नालंदा विश्वविद्यालय परिसर में एक डाकघर खोलने की आवश्यकता है।
डाकघर में बनता है 70 फीसदी पासपोर्ट: कुछ दिन पहले राजगीर के साइक्लोपीनियन वॉल पर डाक टिकट जारी किया गया है। राजगीर का यह साइक्लोपीनियन वॉल चीन की मशहूर दीवार से दो हजार साल पुरानी है। राजगीर के गौरवशाली अतीत और ऐतिहासिक महत्व में पांच पहाड़ियों और पांच धर्मों के संगम के लिए विश्व विख्यात है। यह ज्ञान, अध्यात्म और राजनीति का प्रमुख केंद्र रहा है।
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