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बाल यौन हिंसा में अप्रत्याशित बढ़ोतरी, पॉक्सो एक्ट से बचती है पुलिस

“पॉक्सो एक्ट के तहत घटना के अंजाम देने वाले में अधिकांश 19 से 25 वर्ष के युवकों की संख्या अधिक देखी जा रही है। पास-पड़ोस और दोस्त लोग ही नाबालिग बच्चों को विश्वास में लेकर अक्सर घटना के अंजाम देते हैं…

बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। नालंदा जिले में बाल यौन हिंसा के मामले में लगातार बढ़ रहे हैं। किसी न किसी थाना क्षेत्र में प्रत्येक दिन में करीब एक नाबालिक यौन हिंसा की शिकार हो रही हैं। दोस्त, पड़ोसी के विश्वास में आकर अधिकांश नाबालिग यौन हिंसा की चपेट में आ रही हैं।

फिलहाल एक वर्ष में दो दर्जन से अधिक पॉक्सो एक्ट के मामले में कोर्ट आ रहे हैं। एक साल में दर्जनों केस निष्पादन हो रहे हैं, लेकिन महज दो तीन लोगों को ही पॉक्सो एक्ट मामले में सजा मिल रही है।

पॉक्सो कोर्ट के विशेष लोक अभियोजन पदाधिकारी बताते हैं कि पॉक्सो एक्ट कानून नाबालिग बच्चों से यौन शोषण की घटना पर रोक लगाने के लिए बनाया गया है, लेकिन घटना के बाद अधिकतर पीड़िता बदनामी के कारण घटना 40 से 50 फीसदी मामले ही कानून तक पहुंच पाती हैं। कोर्ट तक आने के बाद भी गवाह और साक्ष्य जुटाते-जुटाते अप्रत्यक्ष रूप से पीड़िता और आरोपित समझौता कर लेते हैं। इस कारण पॉक्सो एक्ट के मामले में सजा तक नहीं पहुंच पाते हैं।

नालंदा जिला व्यवहार न्यायालय में वर्ष 2021 में अलग अलग स्पेशल पॉक्सो एक्ट कोर्ट बनाये गये हैं। तब से पॉक्सो एक्ट के तहत तेजी से सुनवाई शुरू हुई और आरोपितों को सजा मिलने की रफ्तार पकड़ने लगी हैं। इससे पहले 2020 तक जिले में एक पॉक्सो कोर्ट था, जहां एक हजार मामले लंबित थे। जब से दो पॉक्सो कोर्ट बने हैं तब से मामलों के निष्पादन में तेजी आयी हैं।

वर्तमान में हर माह अलग-अलग थाना क्षेत्र से औसतन आठ से दस नाबालिग बाल यौन हिंसा के शिकार हो रहे हैं। वहीं प्रति माह दोनों स्पेशल पॉक्सो कोर्ट में करीब 47 केसों की सुनवाई हो रही हैं। इसमें 20 से 22 आरोपितों को सजा मिल रही है।

दो साल में दोनों पॉक्सों कोर्ट में करीब दो सौ से अधिक आरोपितों को सजा मिली है। बावजूद जून वर्ष 2020 से गत माह तक करीब 400 से अधिक मामले लंबित हैं। पॉक्सो एक्ट के तहत घटना के अंजाम देने वाले में अधिकांश 19 से 25 वर्ष के युवकों की संख्या अधिक देखी जा रही है। पास-पड़ोस और दोस्त लोग ही नाबालिग बच्चों को विश्वास में लेकर अक्सर घटना के अंजाम देते हैं।

हाल के दिनों में स्कूली छात्र-छात्राओं के बीच प्रेम-प्रसंग के नाम पर यौन हिंसा की घटना बढ़ी हैं। इसमें अधिकांश कोर्ट और थाना तक नहीं पहुंचती है। समाज, परिवार में बदनामी के डर से कानून तक मामले सामने नहीं आते हैं। कुछ जागरूक परिवार ही घटना के बाद कोर्ट और पुलिस थाना तक मामले लाते हैं।

पॉक्सो एक्ट दर्ज करने से बचती है पुलिसः नालंदा जिला चाइल्ड हेल्प लाइन समन्वयक बताते हैं कि बाल यौन हिंसा या नाबालिग के प्रेम-प्रसंग वाले मामले में अधिकांश थाना पुलिस पॉक्सो एक्ट दर्ज करने से बचती हैं। सामान्य मारपीट और घर से भागने या भगाने वाले धारा लगाकर मामला को रफा-दफा कर देती है।

कुछ माह से पॉक्सों मामले की सुनवाई में काफी तेजी आयी है। धीरे-धीरे समाज में जागरूकता आ रही है, लेकिन अभी भी काफी मामले में पुलिस थाना से कोर्ट तक पहुंचते-पहुंचते पीड़िता पर सामाजिक और पारिवारिक दवाब बना दिया जाता है। इससे काफी मामले में अप्रत्यक्ष रूप से कोर्ट के समक्ष गवाह और साक्ष्य जुटाना चुनौती हो जाता है। इस कारण भी पॉक्सो एक्ट के आरोपित को ससमय सजा दिलाने में फजीहत होती है।

एक सप्ताह पूर्व ही हरनौत थाना अंतर्गत चेरो ओपी के एक मामले में रात 12 बजे नाबालिग पीड़िता ने चाइल्ड हेल्प लाइन में फोन कर थाना पुलिस के संबंध में शिकायत की कि उनसे कोर्ट में प्रस्तुत नहीं की और आरोपित के साथ समझौता कराने का दबाव दिया जा रहा है। इस पर चालइल्ड हेल्प लाइन ने न्यायालय में पीड़िता प्रस्तुत करवाया।

कमोबेश यहीं स्थिति अधिकांश बाल यौन हिंसा और नाबालिग के प्रेम-प्रसंग के मामले में सामने आ रहे हैं। बाल कल्याण समिति, नालंदा के समक्ष करीब आठ से 12 मामले औसतन प्रतिमाह नाबालिग के प्रेम-प्रसंग या घर से भागने से संबंधित आते हैं, जिसमें 60 से 80 प्रतिशत मामले में पॉक्सो एक्ट दर्ज नहीं होता है।

हालांकि पीड़िता काउंसलिंग के दौरान आपबीती में उस बात को थाना पुलिस के समक्ष रखने का जिक्र करते हैं। बावजूद पीड़िता की एफआईआर में पॉक्सो एक्ट दर्ज नहीं होते हैं। जिससे आरोपितों को आसानी से बेल और रिहाई का रास्ता साफ हो जाता है।

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