नालंदा दर्पण डेस्क। बिहार शिक्षा विभाग के मुख्य अपर सचिव केके पाठक के ताजा फैसलों का चौतरफा विरोध हो रहा है। शिक्षक, शिक्षक संघ, राजनीतिक दल समेत छात्र-छात्राएं भी सोशल मीडिया पर आग उगल रहे हैं। केके पाठक को अब दो टूक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का सनकी अफसर बताया जा रहा है।
फेसबुक, व्हाट्सएप्प, ट्वीटर एक्स जैसे माइक्रो ब्लॉगिग सोशल साइट पर बिहार के सरकारी स्कूलों की टाइमिंग को लेकर काफी उबाल है। हर तबके के लोग इस सुबह 6 बजे से दोपहर बाद 1:30 बजे तक के उत्पन्न हालात के फोटो-वीडियो शेयर कर रहे हैं। कहीं शिक्षक-शिक्षिकाएं तो कहीं छात्र-छात्राएं हड़बड़ी में हादसों के शिकार हो रहे हैं तो कहीं भीषण गर्मी में वे बेहोश हो रहे हैं।
छात्र-छात्राएं हों या शिक्षक शिक्षिकाएं, समयाभाव में वे घर से खाली पेट भूखे-प्यासे स्कूल पहुंच रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी स्कूलों के हालात और भी गंभीर है। सब भागे-भागे स्कूल पहुंच रहे हैं, मानों उनके पिछे कोई भूत-पिचाश पड़े हों। पढ़ाई-लिखाई अपनी जगह है, लेकिन ऐसी भयावह अफरातफरी का माहौल पहले कभी नहीं देखा गया है।
लोग मानते हैं कि एसीएस केके पाठक के कई सकारात्मक कदमों से बिहार की मंद पड़ी सरकारी शिक्षा व्यवस्था की सक्रियता बढ़ी है। स्कूलों में काफी बदलाब आए हैं। लेकिन हर चीज की एक सीमा होती है। कायाकल्प कोई एक दिन में नहीं होता है। उसकी अपनी एक प्रक्रिया होती है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चहेते अधिकारी केके पाठक ने ही बिहार में शराबबंदी की अलख जलाई थी। वह भी आज हड़बड़ी में लिया एक गड़बड़ फैसला बन गया है। पूरा बिहार अवैध शराब के आलावे चरस, अफीम, ब्राउन सुगर जैसे कारोबार की चपेट में फंस गया है। इसका अंजाम क्या होगा, आज इस दिशा में सोचने और देखने वाला कोई नहीं है।
कमोवेश वहीं स्थिति केके पाठक के शिक्षा में सुधार के लिए उठाए गए अनेक कदम में साफ दिख रहा है। इसका कड़ा विरोध राजनीति दल और निर्वाचित जनप्रतिनिधि भी कर रहे हैं। इसका व्यापक असर आसन्न लोकसभा चुनाव पर भी पड़ना स्वभाविक है। खासकर शिक्षक वर्ग में जदयू और भाजपा को लेकर काफी आक्रोश है। जिसका फूटना एनडीए गठबंधन के लिए काफी नुकसानदायक साबित होगा। या कहिए कि हो चुका है।
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