राजगीर अंचल कार्यालय में कमाई का जरिया बना परिमार्जन, जान बूझकर होता है छेड़छाड़

नालंदा दर्पण डेस्क। राजगीर अंचल कार्यालय सदैव सुर्खियों में बना रहता है। यहां के कर्मियों द्वारा तरह-तरह के कारनामे कर बेमतलब रैयतों को परेशान किया जाता है। अंचल कार्यालय राजगीर के कंप्यूटर ऑपरेटर के कारनामे की चर्चा इन दिनों खूब हो रही है।

यहाँ जमीन से संबंधित किसी भी कार्य के लिए आवेदन करने पर उसके निष्पादन में महीने दो महीने नहीं, अपितु बरसों पर लग जाते हैं और अगर निष्पादन हो भी गया तो भी व्यक्ति अंचल कार्यालय से मुक्ति नहीं हो पाता है। क्योंकि निष्पादित कागजात में कुछ ऐसी टेक्निकल गलतियां कर दी जाती है जिससे व्यक्ति फिर से कार्यालय का चक्कर लगाने और कर्मियों के इर्द-गिर्द मंडराने लग जाते हैं और अंचल कर्मी व कर्मचारी उसे रोज टहलाते रहते हैं।

कभी यह कागजात लाइए, कभी वह कागजात लाइए, आज हो जाएगा, कल हो जाएगा, कागजात आगे बढ़ा दिया गया है, साहब बैठ ही नहीं रहे हैं, अरे खाली आप ही का काम है जी और काम नहीं है मेरे पास, दो चर दिन रुकिए हो जाएगा। ऐसी ऐसी बातें कर कर्मी लोगों को खूब टहलाते हैं।

कंप्यूटर ऑपरेटर द्वारा कागजातों में गड़बड़ी की शिकायतों का लंबा लिस्ट हैं जो बरसों से अंचल कार्यालय का चक्कर काट रहे हैं। बढ़ौना मौजा के बढ़ौना गांव निवासी अश्वनी पांडेय के अनुसार उन्होंने कोरोना काल के पहले ही अपने जमीन का परिमार्जन करवाया था। आवेदन में बिल्कुल सब कुछ सही भर कर दिया था।

परंतु कंप्यूटर ऑपरेटर ने जान बूझकर खाता नंबर 150 को 15 कर रशीद काट दिया। वहीं खाता नंबर 37 को 36 कर रसीद काट दिया। अब उसके सुधार के लिए हम चार वर्षो से अंचल कार्यालय का दौड़ लगा रहे हैं। परंतु अब तक ऑपरेटर द्वारा की गयी गलती का सुधार नहीं हो सका है। कर्मचारी कुछ न कुछ बहाना करके बस टाइम पास कर रहे हैं।

अश्वनी पांडेय के अनुसार वे दिल्ली में मास्टर ट्रेनर की नौकरी करते थे। परंतु अंचल कार्यालय राजगीर के चक्कर ने ऐसा उलझाया कि नौकरी से भी हाथ धोना पड़ गया।

वहीं नोनही निवासी मुनेश्वर प्रसाद का कहना है कि परिमार्जन के दौरान हमारे रसीद में मुनेश्वर प्रसाद की जगह भुवनेश्वर प्रसाद कर दिया गया है। वहीं रसीद में रकवा शब्द में छह डिसमिल और अंक में सात डिसमिल कर दिया गया है। अब नाम और रकवा सुधार के लिए अंचल कार्यालय का चक्कर पर चक्कर काट रहा हूं। पैर से विकलांग हूं और अंचल कार्यालय के सीढ़ी चढ़कर ऊपर जाना बड़ा कठिन होता है।

वहीं कई लोगों का कहना है कि ऑनलाइन रसीद में सिर्फ खाता चढ़ाया जा रहा है। प्लांट नंबर को जान बूझकर छोड़ दिया जाता है। ऐसे में तो परेशानी और भी बढ़ जाती है। यह सब पैसों के लिए किया जाता है।

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