नालंदा दर्पण डेस्क। Bihar Teacher Recruitment Scam बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा शिक्षक भर्ती परीक्षा-1.0 और 2.0 के तहत लाखों बेरोजगारों को नौकरी देने का जो दावा कर रहे हैं, उनमें बड़ा गड़बड़झाला सामने आ रहा है। जहां एक ओर शिक्षक भर्ती परीक्षा-3.0 पेपर लीक की भेंट चढ़ गया, वहीं उसके पहले के दोनों भर्ती प्रक्रिया में भी किस पैमाने पर खेल खेले गए हैं। उसके किंगपिन कौन हैं? यह उच्चस्तरीय जांच का विषय है। जिसकी ओर किसी का कोई ध्यान नहीं जा रहा है।
बहरहाल, ऐसे तो बिहार के सभी जिलों में बीपीएससी शिक्षकों की नियुक्ति में व्यापक पैमाने पर फर्जीवाड़ा हुए हैं। कई जिलों से मामले सामने भी आ रहे हैं, लेकिन एक ताजा मामला मधेपुरा जिले से सामने आया है। यह जिला फर्जी बीपीएससी शिक्षकों की बहाली का हॉट स्पॉट के रुप सामने आया है।
खबर है कि मधेपुरा जिले में फिलहाल 347 फर्जी बीपीएसी शिक्षक पकड़ में आए हैं। वे सीटेट में 60 फीसदी से भी कम अंक होने के बाद भी शिक्षक बन गए हैं। यह संख्या आगे पड़ताल में काफी बढ़ सकती है। उनकी नियुक्ति कैसे हुई। किसकी पड़ताल पर किसकी शह पर हुई। इसके लिए बीपीएससी और शिक्षा विभाग की कितनी मिलीभगत है? मध्य प्रदेश में हुए चर्चित व्यापम घोटाला की याद ताजा करता है।
इस संबंध में मधेपुरा जिला कार्यक्रम पदाधिकारी (स्थापना) ने सभी प्रखंड शिक्षा पदाधिकारियों को एक पत्र लिखा है। यह पत्र बिहार माध्यमिक शिक्षा विभाग के निदेशक द्वारा 60 प्रतिशत से कम अंक वाले विद्यालय अध्यापकों के प्रमाण पत्र जांच हेतु उपस्थित होने के संबंध में जारी आदेश के आलोक में दिया गया है।
जिला कार्यक्रम पदाधिकारी ने लिखा है कि केन्द्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा विद्यालय अध्यापकों का प्रमाण अतएव उपरोक्त परिपेक्ष्य में अपने प्रखंड अंतर्गत संलग्न सूची में अंकित 347 विद्यालय अध्यापकों को सूची क्रमांक के अनुसार चिन्हित करते हुए सीटेट का अंक पत्र एवं प्रमाण पत्र, जाति, अवासीय, आधार एवं पेन कार्ड सहित मूल प्रति एवं एक प्रति सभी प्रमाण पत्रों का अभिप्रमाणित छाया प्रति फोल्डर फाइल में संकलित कर उपस्थित होने के लिए पत्र का तामिला कराना सुनिश्चित करें।
ऐसे में सवाल उठना लाजमि है कि आवेदन के वक्त ही बीपीएससी ने उनके कागजात की पड़ताल क्यों नहीं की। उसके बाद नियोजन साक्षात्कार में जिम्मेवार शिक्षा विभाग के नुमाइंदे कहां सोए रहे। अगर उस दौरान ही आवश्यक जांच कर ली जाती तो सही अभ्यर्थियों को मौका मिलता। उऩकी हकमारी नहीं होती।
ऐसे खेल खेलने वाले जिम्मेदार पदाधिकारियों और अभियार्थियों पर कड़ी कार्रवाई कौन सुनिश्चित करेगा। यदि पूरे बिहार में निष्पक्ष तरीके से पूरी ईमानदारीपूर्व जाँच की जाए तो 50 हजार से अधिक बीपीएससी शिक्षक फर्जी निकलेंगे। लेकिन शायद ही सरकार कोई ठोस कदम उठाकर अपनी नाकामी की सड़न दूर करने की सोच तक सके। उसे तो सरकारी नौकरी देने की वाहवाही से सिर्फ मतलब है।
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