नालंदा दर्पण डेस्क। CM Nitish Kumar’s big mistake: बिहार में किसी भी अधिकारी के लिए जनहित में काम करना बड़ा मुश्किल है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लाख चिंघाड़ लें कि वे व्यवस्था में सुधार लाने को आतुर रहते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही होती है। सुशासन या जीरो टॉलरेंस यहां सब हवा हवाई है। कथनी और करनी में काफी फर्क है।
बिहार शिक्षा विभाग के पूर्व अपर मुख्य सचिव केके पाठक का मामला भी कुछ ऐसा ही है। केके पाठक ने मृत्यु शैय्या पर लेटी प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था में जान फूंकी और उसे उठाने की हरसंभन कोशिश की, लेकिन नीतीश सरकार उन्हें इस कार्यकुशलता का ईनाम अप्रत्याशित स्थानांतरण के रुप में दी गई।
केके पाठक के छुट्टी पर जाने के बीच उनका स्थानातंरण भूमि सुधार एवं राजस्व विभाग में कर दिया गया। इस पद पर वे कार्यभार संभालते कि उनका स्थानातंरण राजस्व परिषद अध्यक्ष सह सदस्य के पद पर कर दी गई। जो कि किसी भी पदाधिकारी के लिए किनारे लगाने वाले पद माने जाते हैं और कोई पदाधिकारी आम लोगों के हित में कोई कदम नहीं उठा सकते हैं।
इधर खबर है कि केके पाठक का वेतन बंद कर दिया गया है। कहा जाता है कि चूकि केके पाठक छुट्टी पर हैं, इसलिए उनका वेतन बंद हो गया है। उन्हें जून महीने का वेतन नहीं मिला है। दलील है कि केके पाठक शिक्षा अपर मुख्य सचिव के पद से छुट्टी पर चले गए। सरकार ने इसी बीच उनकी स्थानातंरण राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग में कर दी। लेकिन केके पाठक ने राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग में अपना योगदान नहीं दिया।
इसके बाद सरकार ने फिर उनका स्थानांतरण राजस्व पर्षद अध्यक्ष पद पर कर दिया। इसीलिए उनका वेतन का भुगतान जून महीने का किस विभाग से होगा। इस पर असमंजस बन गया। केके पाठक का वेतन का भुगतान अब नई पोस्टिंग वाले जगह से होगी। जब वह अपना योगदान दे देंगे तो उस महीने से उनका वेतन शुरू होगा। फिलहाल केके पाठक ने सरकार के रवैये से खिन्न होकर 15 जुलाई तक अपनी छुट्टी बढ़ा ली है।
दरअसल शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के पद पर रहते हुए केके पाठक ने जिस तरह के क्रांतिकारी कदम उठाए, उससे पालथी मारकर बैठे शिक्षकों एवं विभागीय अफसरों को उठना पड़ा। उन्हें चलना पड़ा। वे धीरे-धीरे दौड़ने भी लगे। आम लोगों में मृतप्राय हो चुकी सरकारी स्कूली शिक्षा व्यवस्था में सुधार होता देख उम्मीद की एक आस जगी।
लेकिन वोट की राजनिति करने वाले नेता शिक्षकों में पनपे विक्षोभ को अलग ही रंग देने में जुट गए। इसमें मुख्यतः सत्तारुढ़ जदयू और भाजपा के नेता ही अधिक उछलते देखे गए। उन्हें आम लोगों से अधिक आरामतलब शिक्षकों के कुंभकर्णी नींद में खलल की चिंता अधिक सताने लगे।
बीते लोकसभा चुनाव में दोनों दल के कतिपय नेता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कान में यह बात डालने में सफल रहे कि केके पाठक की कार्यशैली के कारण शिक्षकों ने एनडीए को वोट नहीं दिया। इसका प्रभाव चुनावी परिणाम पर पड़ा।
फिर क्या था। मुख्यमंत्री ने एक वैसे अधिकारी की बलि ले ली, जो राज्य हित में कुछ करने का बीड़ा उठाया था। इसका खामियाजा आने वाले दिनों में दिखेगा, बैताल फिर पुराने डाल पर बैठ जाएगा और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सदैव घेरे में रहेंगे।
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