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    Wednesday, March 26, 2025
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      बिहारशरीफ सदर अस्पताल वेतन घोटाला: ट्रेजरी और अन्य कर्मी भी जांच के घेरे में

      बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। बिहारशरीफ सदर अस्पताल में वेतन के नाम पर बड़े पैमाने पर की गई अवैध निकासी का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। इस घोटाले का मुख्य आरोपी लिपिक पंकज कुमार ने तीन वर्षों के दौरान वेतन और अन्य भत्तों के नाम पर 9.10 लाख रुपये की अवैध निकासी की। वह जांच एजेंसियों के सीधे निशाने पर आ गया है।

      एचआरएमएस पोर्टल से निकाले गए बैंक स्टेटमेंट के अनुसार मार्च 2022 से जनवरी 2025 तक लिपिक ने विभिन्न मदों में गड़बड़ी करते हुए भारी राशि अपने खाते में ट्रांसफर करवाई। अन्य भत्तों की इस निकासी में सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि वह भत्ता केवल सीमित स्वास्थ्य कर्मियों को ही मिलता है। जबकि पंकज कुमार इस श्रेणी में नहीं आता था। इसके बावजूद उसने कई महीनों तक यह अवैध निकासी जारी रखी।

      लिपिक द्वारा यह खेल सिर्फ तीन साल का नहीं, बल्कि 2018 से ही चल रहा था। जब वह राजगीर में पदस्थापित था, तब से ही इस प्रकार की गड़बड़ी के संकेत मिल रहे हैं। अब जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ रही है, इस निकासी की रकम और भी बढ़ने की संभावना जताई जा रही है।

      अब तक मार्च 2022 से फरवरी 2023 तक ₹6.16 लाख, मार्च 2023 से फरवरी 2024 तक ₹1.66 लाख और मार्च 2024 से जनवरी 2025 तक ₹6.82 लाख रुपए की गड़बड़ी सामने आए हैं।

      जांच में यह भी सामने आया है कि शुरुआत में लिपिक हर महीने ₹5,000 निकालता था। लेकिन अगस्त 2023 से यह राशि ₹26,600 हो गई। फिर सितंबर 2024 से उसने अन्य भत्ते की राशि सीधे ₹1 लाख कर ली और जनवरी 2025 तक यह खेल चलता रहा।

      अब जांच का दायरा सिर्फ लिपिक पंकज कुमार तक सीमित नहीं रह गया है। ट्रेजरी और डीडीओ (ड्रॉइंग एंड डिस्बर्सिंग ऑफिसर) की भूमिका भी संदेह के घेरे में आ गई है।

      स्वास्थ्य विभाग के नियमों के अनुसार किसी भी कर्मी का वेतन भुगतान करने से पहले ट्रेजरी में गहन जांच की जाती है। फिर भी इस मामले में इसे नजरअंदाज किया गया। बैंक स्टेटमेंट पर डीडीओ के हस्ताक्षर होने के बावजूद इतनी बड़ी गड़बड़ी का पकड़ा न जाना कई सवाल खड़े करता है।

      सूत्रों के अनुसार यह घोटाला सिर्फ एक लिपिक तक सीमित नहीं है। अन्य 4-5 स्वास्थ्य कर्मियों के भी इसमें शामिल होने की संभावना जताई जा रही है। एक महिला स्वास्थ्य कर्मी ने इस घोटाले में अपनी संलिप्तता स्वीकार भी कर ली है।

      दरअसल यह मामला बिहार के सरकारी विभागों में धांधली और भ्रष्टाचार का एक और बड़ा उदाहरण बनकर सामने आया है। यदि समय रहते इस घोटाले का पर्दाफाश नहीं होता तो सरकारी खजाने को लाखों रुपये का और नुकसान होता। अब देखना यह है कि जांच के बाद क्या इस घोटाले की परतें और खुलेंगी या फिर यह मामला अन्य घोटालों की तरह फाइलों में ही दबकर रह जाएगा?

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