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    Tuesday, April 16, 2024
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      चिंताः ज्ञान की धरती पर राजनीति में महिलाओं की उपेक्षा और पिछड़ती भागीदारी

      नालंदा में 1969 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अस्थावां से भगवती देवी को टिकट दिया तो हिलसा से मनकी देवी पहली बार चुनाव मैदान में थी...

      नालंदा दर्पण डेस्क। ज्ञान की धरती नालंदा में यह वाकई चिंता का विषय है कि महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी के मामले में लगातार पिछड़ता जा रहा है।

      नीतीश कुमार ने स्थानीय निकाय चुनावों में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण देकर एक नया सवेरा दिया। लेकिन वहीं विधानसभा चुनाव में महिलाओं को टिकट देने में कंजूसी दिखाते रहे हैं।

      हालांकि नालंदा की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी कम नहीं है। लेकिन राजनीतिक दल उन्हें टिकट देने से परहेज़ करते हैं। 1952 से नालंदा की राजनीति को देखें तो अब तक सिर्फ दो महिलाएं ही सदन में पहुंच चुकी है।

      सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव में नालंदा के विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में सिर्फ 15 महिलाएं ही चुनाव मैदान में थी। जबकि 1952 से अब तक नालंदा में 65 से ज्यादा महिला प्रत्याशी चुनाव लड़ चुकी है। जिनमें महज दो ही सदन में पहुंच चुकी है। जबकि 8 महिला प्रत्याशी अब तक दूसरे नंबर पर रही।

      नालंदा के सबसे लोकप्रिय विधानसभा हरनौत में लोजपा से सिलेब्रेटिज ग्लैमर कांफिशिएंट उम्मीदवार ममता देवी के हाथ के बाद सवाल उठने लगा है कि ज्ञान की धरती नालंदा में महिलाएं आखिर कब तक लोकतंत्र के सदन से दूर रहेंगी।

      इस बार जिस तरह से हरनौत में चुनाव लड़ा गया लगा कि नालंदा अपना मिथक तोड़ेगा और एक महिला यहां से विधानसभा की चौखट जरूर पार करेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

      कहा जाता है कि नालंदा में अबतक सात ऐसे चुनाव रहे, जिनमें महिला प्रत्याशियों की संख्या नगण्य रहीं। न महिलाओं को इस समय तक राजनीति में कोई रूचि नहीं और नही राजनीतिक दलों को शायद टिकट देने में ।

      नालंदा में 1969 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अस्थावां से भगवती देवी को टिकट दिया तो हिलसा से मनकी देवी पहली बार चुनाव मैदान में थी।

      भगवती देवी को कांग्रेस ने वीपी जवाहर की जगह टिकट दिया, लेकिन  जनता पार्टी के नंदकिशोर सिंह ने उन्हें पराजित कर दिया।

      कांग्रेस ने जब उन्हें 1977 में टिकट नहीं दिया तो भगवती देवी निर्दलीय चुनाव मैदान में आ गई। लेकिन फिर से उन्हें हार का सामना करना पड़ा। उस समय में अस्थावां और इस्लामपुर से महिला उम्मीदवार थी। लेकिन सदन की राह उनके लिए भी आसान नहीं थी।

      वैसे देखा जाए तो कुछ राजनेताओं ने मजबूरी में अपनी पत्नी-बेटी या अन्य रिश्तेदार को मैदान में उतारा तो कुछ को किसी नेता की मृत्यु के बाद सहानुभूति वोट के लिए राजनीतिक दलों ने टिकट दिया।

      नालंदा से जो दो महिलाएं अब तक विधानसभा की चौखट लांघ चुकी है। उनमें से इस्लामपुर विधानसभा उपचुनाव में 2007 में प्रतिमा सिन्हा और 2010में हिलसा से जदयू के टिकट पर प्रो उषा सिन्हा शामिल हैं।

      जबकि उषा सिन्हा 2000के चुनाव में चंडी से भी राजद के टिकट पर जोर आजमाइश कर चुकी थी, जहां उन्हें जदयू के हरिनारायण सिंह से हार का सामना करना पड़ा।

      जब निवर्तमान सीएम नीतीश कुमार ने समता पार्टी का गठन किया था तो उसके बाद वह 1995 में हरनौत से तीसरी और आखिरी बार चुनाव मैदान में थे। जहां उन्होंने दूसरी जीत हासिल की थी।

      उस समय हरनौत ने एक रिकॉर्ड कायम किया था। जहां सबसे ज्यादा पांच महिलाएं चुनाव मैदान में थी। नीतीश कुमार सहित 46 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड रहा।

      नालंदा में इस बार सबक निगाहें हरनौत में थी। जहां सबसे एक महिला प्रत्याशी ममता देवी पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ रही थी।

      कभी सीएम नीतीश की सभाओं में भीड़ जुटाने वाली और उनकी नीतियों का प्रचार करने वाली नेत्री लोजपा से चुनाव मैदान में थी। जहां भले ही वह दूसरे नंबर पर रही, लेकिन उन्होंने आधी आबादी के राजनीतिक  कद को दिखाने का काम की।

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