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    Tuesday, March 25, 2025
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      MDM में अंडा या फल? अभिभावकों से सहमति पत्र लेने का आदेश

      बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। मध्याहन भोजन योजना (MDM) को लेकर शिक्षा विभाग ने एक नया निर्देश जारी किया है। अब शुक्रवार को दिए जाने वाले अंडे या फल के लिए शाकाहारी बच्चों के अभिभावकों से सहमति पत्र लिया जाएगा और इसे विद्यालयों में सुरक्षित रखा जाएगा।

      शिक्षा विभाग के मध्याहन भोजन योजना निदेशक ने सभी जिला शिक्षा पदाधिकारी और जिला कार्यक्रम पदाधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिया है कि विद्यालयों में पढ़ने वाले कक्षा 1 से 8 तक के बच्चों को शुक्रवार के निर्धारित मेनू के अतिरिक्त एक उबला अंडा या मौसमी फल (सेब या केला) दिया जाता है। लेकिन निरीक्षण के दौरान यह देखा गया है कि कई स्थानों पर अंडे के स्थान पर केवल मौसमी फल ही दिया जा रहा है, जो कुपोषण दूर करने के उद्देश्य से बनाए गए इस कार्यक्रम के खिलाफ है।

      वहीं जो शाकाहारी बच्चे अंडा नहीं खाते, उनके अभिभावकों से एक सहमति पत्र लिया जाएगा। जिसे विद्यालयों में संरक्षित रखा जाएगा। यह पत्र औचक निरीक्षण के दौरान संबंधित पदाधिकारियों को प्रस्तुत करने के लिए आवश्यक होगा। ताकि यह स्पष्ट किया जा सके कि बच्चे को अंडा नहीं बल्कि फल ही दिया गया है।

      शुक्रवार को विद्यालयों में अंडा या फल आपूर्ति करने वाली स्वयंसेवी संस्थाओं को भी निर्देश दिया गया है कि वे केवल सहमति पत्र के आधार पर ही बच्चों को अंडा या फल दें।

      शिक्षा विभाग ने सभी विद्यालयों को यह सुनिश्चित करने को कहा है कि वे अपने स्तर से अभिभावकों से सहमति पत्र प्राप्त करें और इसे विद्यालय में संधारित करें। इसके लिए संबंधित पदाधिकारियों को भी निर्देश जारी किए गए हैं कि वे इसकी सख्ती से निगरानी करें।

      बता दें कि सरकार द्वारा चलाई जा रही मध्याहन भोजन योजना का मुख्य उद्देश्य बच्चों में पोषण स्तर को बेहतर बनाना है। अंडा एक उच्च प्रोटीन युक्त आहार है, जो बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए बेहद जरूरी माना जाता है। लेकिन कई रिपोर्टों में यह बात सामने आई है कि बिहार के कई हिस्सों में बच्चों में कुपोषण की समस्या बनी हुई है। जिसे दूर करने के लिए अंडे को मध्याहन भोजन का अनिवार्य हिस्सा बनाया गया है।

      अब शिक्षा विभाग की यह पहल सुनिश्चित करेगी कि सभी बच्चों को संतुलित और पोषण युक्त आहार मिले। हालांकि शाकाहारी बच्चों के माता-पिता को भी इसमें शामिल कर उनकी सहमति लेना एक संवेदनशील और व्यावहारिक कदम साबित हो सकता है। अब देखना यह होगा कि इस नए निर्देश का विद्यालयों में कितना प्रभावी क्रियान्वयन हो पाता है और यह योजना बच्चों के पोषण स्तर में कितना सुधार ला सकती है।

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