नालंदा दर्पण डेस्क। बिहार के सीतामढ़ी जिले में माता सीता की जन्मस्थली पुनौरा धाम (Mata Janaki Temple) जल्द ही एक भव्य मंदिर और विश्वस्तरीय पर्यटन स्थल के रूप में नया स्वरूप लेने जा रहा है। बिहार सरकार ने इस ऐतिहासिक स्थल को अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि मंदिर की तर्ज पर विकसित करने की महत्वाकांक्षी योजना को मूर्त रूप देने के लिए कदम उठाए हैं।
इस परियोजना को गति देने के लिए सरकार ने श्री जानकी जन्मभूमि पुनौरा धाम मंदिर न्यास समिति का पुनर्गठन किया है, जिसके लिए बिहार हिंदू धार्मिक न्यास (संशोधन) अध्यादेश 2025 को विधानसभा के मॉनसून सत्र के पहले दिन पेश किया गया। यह अध्यादेश अब स्थायी कानून में तब्दील होने की प्रक्रिया में है, जो पुनौरा धाम को धार्मिक और पर्यटन के क्षेत्र में वैश्विक पहचान दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
न्यास समिति का पुनर्गठन और संरचनाः बिहार हिंदू धार्मिक न्यास अधिनियम, 1950 की धारा-32 की उपधारा (5) के तहत गठित नौ सदस्यीय न्यास समिति इस परियोजना की रीढ़ होगी। समिति का नेतृत्व बिहार के मुख्य सचिव करेंगे, जबकि विकास आयुक्त को उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है।
समिति में अन्य सदस्यों में पुनौरा धाम मठ के महंत, पर्यटन विभाग के अपर मुख्य सचिव/प्रधान सचिव/सचिव, पथ निर्माण विभाग के अपर मुख्य सचिव/प्रधान सचिव/सचिव, नगर विकास एवं आवास विभाग के अपर मुख्य सचिव/प्रधान सचिव/सचिव, तिरहुत प्रमंडल के आयुक्त, सीतामढ़ी के जिलाधिकारी (सचिव), सीतामढ़ी के उप विकास आयुक्त (कोषाध्यक्ष) शामिल हैं।
इस समिति के बैंक खाते का संचालन सचिव और कोषाध्यक्ष संयुक्त रूप से करेंगे, जिससे वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित होगी। विधि विभाग द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, यह समिति तत्काल प्रभाव से कार्य शुरू कर चुकी है।
882 करोड़ की महत्वाकांक्षी योजनाः बिहार सरकार ने पुनौरा धाम में माता जानकी मंदिर के निर्माण और क्षेत्र के समग्र विकास के लिए 882.87 करोड़ रुपये की स्वीकृति दी है। यह परियोजना तीन चरणों में पूरी होगी- मंदिर का उन्नयन कार्य: मौजूदा मंदिर के सौंदर्यीकरण और उन्नयन के लिए 137.34 करोड़ रुपये। पर्यटकीय आधारभूत संरचना: पर्यटकों के लिए आधुनिक सुविधाओं और बुनियादी ढांचे के विकास पर 728 करोड़ रुपये। रखरखाव: अगले 10 वर्षों के लिए रखरखाव पर 16.62 करोड़ रुपये।
इसके अतिरिक्त 50.5 एकड़ भूमि के अधिग्रहण के लिए 120 करोड़ रुपये पहले ही स्वीकृत किए जा चुके हैं। बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम ने 812 करोड़ रुपये का वैश्विक टेंडर जारी किया है, जिसमें देश-विदेश की निर्माण कंपनियां हिस्सा ले सकेंगी। मंदिर का शिलान्यास आगामी अगस्त में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा किए जाने की संभावना है।
रामायण सर्किट का हिस्सा बनेगा पुनौरा धामः पुनौरा धाम को रामायण सर्किट का एक प्रमुख हिस्सा बनाने की योजना है। अयोधा और पुनौरा धाम के बीच सड़क और रेल मार्ग से सीधा संपर्क स्थापित किया जा रहा है, जिसमें राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण और भविष्य में वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन चलाने की योजना शामिल है।
यह परियोजना न केवल धार्मिक महत्व की है, बल्कि इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बल मिलेगा। पर्यटकों की संख्या में वृद्धि से रोजगार के नए अवसर सृजित होंगे और मिथिला क्षेत्र को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान मिलेगी।
मंदिर परिसर में मिथिला हाट, वेद पाठशाला, यज्ञ मंडप, अनुष्ठान मंडप और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए एक बड़ा ऑडिटोरियम भी बनाया जाएगा। माता सीता के जीवन की गाथा को दृश्यात्मक रूप में प्रस्तुत करने की योजना है, जो श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक प्रेरणा देगी।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्वः पुनौरा धाम को माता सीता की जन्मस्थली माना जाता है, जो हिंदू धर्मावलंबियों के लिए अत्यंत पवित्र स्थल है। मान्यता है कि राजा जनक को हल चलाते समय एक मिट्टी के पात्र में शिशु सीता प्राप्त हुई थीं। मंदिर के पीछे जानकी कुंड, जहां स्नान से संतान प्राप्ति की मान्यता है और पंथपाकर में प्राचीन पीपल का पेड़, जो माता सीता के विवाह से जुड़ा है, इस स्थान को और भी खास बनाते हैं।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस परियोजना को बिहारवासियों के लिए गौरव का विषय बताया है। उन्होंने सोशल मीडिया पर मंदिर के डिजाइन की तस्वीरें साझा करते हुए कहा है कि पुनौरा धाम में माता जानकी के भव्य मंदिर का निर्माण हम सभी के लिए सौभाग्य की बात है। मंदिर का डिजाइन नोएडा की वही कंपनी तैयार कर रही है, जिसने अयोध्या के राम मंदिर का नक्शा बनाया था और यह 151 फीट ऊंचा होगा।
सामाजिक और आर्थिक प्रभावः इस परियोजना से न केवल धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि सीतामढ़ी और आसपास के क्षेत्रों में आर्थिक समृद्धि भी आएगी। पर्यटकों के लिए सुविधाओं जैसे परिक्रमा पथ, कैफेटेरिया, पार्किंग और बजट होटलों का निर्माण स्थानीय व्यापार और रोजगार को प्रोत्साहित करेगा। यह परियोजना मिथिला की सांस्कृतिक विरासत को वैश्विक मंच पर ले जाएगी, जिससे स्थानीय हस्तशिल्प और संस्कृति को भी प्रोत्साहन मिलेगा।



