नालंदा दर्पण डेस्क। एक ओर जहां आमतौर पर शादी के बाद लड़कियां ससुराल बसाने जाती हैं, वहीं बिहार की हजारों महिला शिक्षिकाओं के लिए यह यात्रा कुछ अलग और दिलचस्प है। यहां मैडम लोग बुढ़ापे में ससुराल बसाने की तैयारी कर रही हैं। वह भी अपने करियर की चुनौतियों और सरकारी तंत्र की वजह से।
कहानी की शुरुआत: यह दिलचस्प कहानी शुरू होती है साल 2005 से पहले जब बिहार में शिक्षामित्रों की बहाली शुरू हुई थी। उस समय पंचायतों को अधिकार दिए गए थे कि वे अपने-अपने इलाकों में शिक्षामित्रों की नियुक्ति करें। जिनमें महिला और पुरुष बराबर की संख्या में थे। इनमें से कई महिलाएं शादी से पहले ही शिक्षिका बन चुकी थीं।
शिक्षिका बनीं, लेकिन शादी के बाद मुश्किलें: 2006 में नीतीश कुमार की सरकार बनने के बाद सभी शिक्षामित्रों को पंचायत-प्रखंड शिक्षक के रूप में स्थाई नियुक्ति मिल गई।
यह नियुक्ति मायके के स्कूल में हुई। परन्तु स्थानांतरण की व्यवस्था न होने के कारण शादीशुदा महिलाएं अपने ससुराल नहीं जा पाईं। मायके के स्कूल में नौकरी करते हुए वे पूरी तरह से ससुराल की नहीं हो सकीं।
स्थानांतरण की उम्मीदें और निराशा: वर्ष 2020 में एक स्थानांतरण कानून बना। जिसमें महिला शिक्षकों को एक बार नियोजन इकाई से बाहर तबादला पाने का अवसर दिया गया।
इस फैसले ने इन शिक्षिकाओं में उम्मीदें जगाईं। लेकिन तबादले की प्रक्रिया में देरी होती गई। इस बीच 2023 में सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की बहाली का नया कानून बना। जिससे इन शिक्षिकाओं की उम्मीदें फिर से धुंधली पड़ गईं।
नयी नीति, नयी चुनौती: गत जून में शिक्षकों के स्थानांतरण-पदस्थापन की नई नीति बनी, लेकिन इसमें भी नियोजित शिक्षक बाहर कर दिए गए। अब इन महिला शिक्षकों के लिए मायके से ससुराल के स्कूल में जाने के दरवाजे बंद हो गए हैं।
आखिरी रास्ता: अब इन शिक्षिकाओं के पास एक ही विकल्प बचा है-रिटायरमेंट। रिटायरमेंट के बाद ही वे पूरी तरह से अपने ससुराल में जाकर बस पाएंगी। जहां ननद-देवर की ठिठोलियों से भले ही दूर होंगी, लेकिन शायद उन्हें सास-ससुर की सेवा का मौका जरूर मिलेगा।
इस तरह बिहार की इन शिक्षिकाओं की जिंदगी का एक अनोखा सफर बुढ़ापे में जाकर ससुराल बसाने की दिलचस्प कहानी बन गई है।
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