Wednesday, April 16, 2025
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अनमोल विरासतः सादगी और सत्य निष्ठा की मिसाल थे इस्लामपुर के चांद बाबू

इस्लामपुर (नालंदा दर्पण)। नालंदा जिले के इस्लामपुर नगर ने कई ऐसे महान विभूतियों को जन्म दिया है, जिनके योगदान को आज भी लोग गर्व से याद करते हैं। इन्हीं में से दो प्रमुख नाम हैं- डॉ. लक्ष्मीचंद वर्मा उर्फ चांद बाबू और जगदीश नंदन जैन उर्फ जैन साहब। ये दोनों स्वतंत्रता संग्राम सेनानी केवल देशभक्ति के प्रतीक ही नहीं थे, बल्कि समाज सेवा में भी अग्रणी थे।

डॉ. लक्ष्मीचंद वर्मा का जन्म 1902 में इस्लामपुर के एक जमींदार परिवार में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा खानकाह उच्च विद्यालय, इस्लामपुर में हुई। इसके बाद उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त कर 1926 में पटना मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त की।

डिग्री प्राप्त करने के बाद उन्होंने गरीबों की निःस्वार्थ सेवा का संकल्प लिया। वे अपने मरीजों से कोई पारिश्रमिक नहीं लेते थे और उन्हें मुफ्त में दवा भी उपलब्ध कराते थे। लेकिन उनका योगदान केवल चिकित्सा सेवा तक सीमित नहीं था। वे गांधीजी के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ से इतने प्रेरित हुए कि 1942 में इस्लामपुर थाना से अंग्रेजी झंडा हटाकर भारतीय तिरंगा फहराया।

इस घटना के दौरान तत्कालीन थाना प्रभारी नरसिंह सिंह ने उन पर रायफल तान दी थी, लेकिन चांद बाबू ने अडिग रहते हुए अंग्रेजी सत्ता को चुनौती दी। उनकी निर्भीकता और देशभक्ति ने थाना प्रभारी का रवैया नरम कर दिया। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के योद्धाओं की गुप्त रूप से सहायता की और उनका घर क्रांतिकारियों का अड्डा बन गया। 1940 से 1947 तक वे इस्लामपुर थाना कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे।

गांधीजी के आह्वान पर आजादी के बाद उन्होंने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया और अपने जीवन को समाजसेवा के लिए समर्पित कर दिया। उन्हें विधायक चुनाव लड़ने के लिए कई बार अनुरोध किया गया। लेकिन उन्होंने डॉक्टर के रूप में सेवा करना अधिक महत्वपूर्ण समझा।

डॉ. वर्मा ने 1957 में बिहारशरीफ के पास दीपनगर में अनुसूचित जाति के बच्चों की शिक्षा के लिए जमीन दान की। वे गांधी के आदर्शों के इतने प्रबल अनुयायी थे कि जब बिहार के तत्कालीन उत्पाद मंत्री जगलाल चौधरी इस्लामपुर आए और कार से सभा स्थल पहुंचे, तो चांद बाबू ने उनसे कहा, “गांधी के आदर्शों की बात करते हो और कार से चलते हो?” उनके जीवन की यह सादगी और सत्य निष्ठा समाज में मिसाल बन गई।

21 अगस्त 1974 को यह स्वतंत्रता सेनानी हमेशा के लिए इस दुनिया को छोड़ गया, लेकिन उनकी स्मृतियां आज भी लोगों के दिलों में जीवित हैं। इस्लामपुर के समाजसेवा में अग्रणी नामों में जगदीश नंदन जैन उर्फ जैन साहब का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। लोग उन्हें प्यार से ‘सिटी फादर’ कहकर पुकारते थे। वे समाजसेवा और जनकल्याण के प्रति अपनी निष्ठा के लिए जाने जाते थे।

उनका जीवन समाज के गरीब और जरूरतमंदों की मदद में समर्पित था। वे स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय रूप से शामिल रहे और उन्होंने समाज में समानता और न्याय की स्थापना के लिए निरंतर कार्य किया। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लोग आज भी उनके कार्यों को याद करते हैं और उनकी प्रेरणा से समाज में योगदान देने की प्रेरणा लेते हैं।

स्व. चांद बाबू की पत्नी रामप्यारी देवी का भी स्वर्गवास हो चुका है। उनके परिवार में पाँच बहनें और दो भाई हैं- जीवन कपूर (जमशेदपुर), अमर कंडन (बेंगलुरु), सरोज महरोत्रा (पटना), सीता तलवार (दिल्ली)। उनके भाई डॉ. जवाहर लाल सरीन (लंदन) और अमरनाथ सरीन (पटना) समय-समय पर अपने पैतृक घर आते-जाते रहते हैं।

डॉ. लक्ष्मीचंद वर्मा और जगदीश नंदन जैन का योगदान इस्लामपुर और देश के लिए अविस्मरणीय है। वे केवल स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नहीं, बल्कि मानवता के पुजारी भी थे। उनकी सेवा, समर्पण और बलिदान आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेंगी।

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