बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। किऊल-गया रेलखंड पर दोहरीकरण का कार्य पूरा हो चुका है, जिसके बाद रेलगाड़ियों की क्रॉसिंग में आने वाली समस्याएं काफी हद तक कम हो गई हैं। ट्रेनों में मेमो इंजन लगने से उनकी रफ्तार भी बढ़ी है। इसके बावजूद इस रूट के रेलवे स्टेशनों पर ट्रेनों की लेटलतीफी अब भी यात्रियों के लिए सिरदर्द बनी हुई है। हैरानी की बात यह है कि रास्ते में सभी स्टेशनों पर देरी के बावजूद ट्रेनें अपने अंतिम पड़ाव पर समय से पहले पहुंच रही हैं। यानी समय की बचत तो हो रही है। लेकिन इसका लाभ यात्रियों को नहीं मिल पा रहा है।
बता दें कि रेलवे के इस रूट पर परिचालन अब डबल लाइन से हो रहा है, लेकिन टाइम टेबल अभी भी सिंगल लाइन वाला ही लागू है। इस वजह से ट्रेनों के परिचालन में भारी गड़बड़ी देखने को मिल रही है। कई बार किसी ट्रेन को आउटर सिग्नल पर खड़ा करना पड़ता है तो कभी इसी चक्कर में दूसरी ट्रेन लेट हो जाती है।
उदाहरण के लिए सुबह की 63321 किऊल-गया पैसेंजर ट्रेन रास्ते में करीब 1 घंटे लेट हुई। लेकिन गया स्टेशन पर यह 1 घंटे पहले ही पहुंच गई। इसी तरह हावड़ा-गया एक्सप्रेस रास्ते में 40 मिनट लेट रही। लेकिन गया में 25 मिनट पहले पहुंच गई। अन्य ट्रेनें भी रास्ते में 1 से 1.5 घंटे की देरी के बाद अंतिम स्टेशन पर आधे से एक घंटे पहले पहुंच रही हैं। डाउन लाइन की गाड़ियों का हाल भी कुछ ऐसा ही है।
रेलवे सूत्रों के अनुसार अप और डाउन लाइन पर एक्सप्रेस ट्रेनों को रास्ता देने के लिए कुछ पैसेंजर ट्रेनों के टाइम टेबल में स्लैक टाइम (अतिरिक्त समय) जोड़ा गया था। यह व्यवस्था तब जरूरी थी, जब रेलखंड पर सिंगल लाइन थी। लेकिन अब वारिसलीगंज, काशीचक, शेखपुरा, नवादा, तिलैया जैसे स्टेशनों पर दोहरीकरण पूरा हो चुका है। जिसके बाद इस अतिरिक्त समय की जरूरत नहीं रह गई है। फिर भी पुरानी व्यवस्था अब तक जारी है।
टाइम टेबल में संशोधन न होने की वजह से ट्रेनों की रफ्तार और परिचालन पर असर पड़ रहा है। विद्युतीकरण और दोहरीकरण के बाद भी ट्रेनें तेजी से नहीं दौड़ पा रही हैं। स्थिति यह है कि 100 किलोमीटर की दूरी तय करने में अब भी 4 घंटे तक का समय लग रहा है, जबकि जानकारों का मानना है कि वर्तमान टाइम टेबल को संशोधित कर इस दूरी को आधे समय में पूरा किया जा सकता है।
गया-किऊल रेलखंड पर मालगाड़ियों और साप्ताहिक ट्रेनों को छोड़ दें तो 24 घंटे में अप और डाउन मिलाकर सिर्फ 16 ट्रेनें ही चलती हैं। इसके बावजूद एक्सप्रेस ट्रेनों को छोड़कर बाकी सभी ट्रेनें इस रूट पर 4 से 5 घंटे का समय ले रही हैं। कई साल पहले विद्युतीकरण का काम पूरा होने पर टाइम टेबल में मामूली बदलाव किया गया था। लेकिन अब दोहरीकरण के बाद ट्रेनों को फिर से रीशेड्यूल करने और टाइम टेबल में व्यापक बदलाव की जरूरत महसूस की जा रही है। रेलवे अधिकारी भी इस मुद्दे पर विचार-मंथन कर रहे हैं।
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