बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। बिहार में शिक्षकों के बीच ट्रांसफर पोस्टिंग नीति को लेकर असंतोष गहराता जा रहा है। कई शिक्षक संगठन इस नीति का विरोध कर रहे हैं और न्यायालय जाने की तैयारी में हैं। उन्होंने सरकार को इस बाबत चेतावनी भी दी है।
शिक्षक संगठनों का कहना है कि शिक्षा विभाग द्वारा दी गई ट्रांसफर नियमावली और एप्लीकेशन पर जारी प्रक्रिया में भारी अंतर है, जिससे शिक्षक खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। शिक्षक संगठनों का आरोप है कि ट्रांसफर के लिए जो प्रक्रिया निर्धारित की गई है, वह अव्यवस्थित और असमान है।
शिक्षकों का कहना है कि ट्रांसफर के दौरान नियमावली के कई प्रावधानों का सही तरीके से पालन नहीं किया जा रहा है। कई जगहों पर तकनीकी खामियों के चलते पोस्टिंग का विकल्प भी सही से नहीं दिख रहा है। जिससे शिक्षकों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इसके चलते शिक्षकों ने अपनी समस्या को लेकर न्यायालय का रुख करने का मन बना लिया है।
कोई विवाद नहीं, सभी मुद्दे सुलझाए जा चुके हैं : डॉ. एस सिद्धार्थ
वहीं दूसरी ओर बिहार शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉ. एस सिद्धार्थ ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। उन्होंने कहा कि ट्रांसफर पोस्टिंग को लेकर कोई बड़ा विवाद नहीं है और यह केवल सोशल मीडिया पर उभारा गया एक मुद्दा है।
डॉ. सिद्धार्थ ने कहा कि शिक्षकों द्वारा उठाए गए सभी मुद्दों पर गौर किया गया है और जो भी सुधार आवश्यक थे। उन्हें कर दिया गया है। हमारी जानकारी में ट्रांसफर पोस्टिंग से संबंधित कोई असंतोष नहीं है।
शिक्षा विभाग के इस तर्क के बावजूद शिक्षक संगठनों का कहना है कि उनकी समस्याओं को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। उनका आरोप है कि आठ जिलों- जहां केवल एक अनुमंडल है, वहां पोस्टिंग की प्रक्रिया स्पष्ट नहीं है और विभाग इस पर कोई ठोस जवाब नहीं दे रहा है।
डॉ. एस सिद्धार्थ ने आगे कहा कि ट्रांसफर नीति के तहत सभी नियमों का पालन किया गया है और शिक्षकों की सभी समस्याओं का समाधान कर दिया गया है। उन्होंने इस विवाद को सोशल मीडिया पर केवल “प्रचारित” करने का आरोप लगाते हुए कहा कि विभाग ने सभी आवश्यक सुधार कर लिए हैं।
विवाद का समाधान या कानूनी लड़ाई?
शिक्षकों की तरफ से न्यायालय जाने की चेतावनी और शिक्षा विभाग की तरफ से विवाद को नकारे जाने के बीच यह देखना दिलचस्प होगा कि यह मुद्दा किस दिशा में जाता है।
एक ओर शिक्षक संगठनों का मानना है कि उनकी आवाज को अनसुना किया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर विभाग इसे महज एक सोशल मीडिया विवाद मान रहा है। यदि शिक्षक अपने वादे के अनुसार न्यायालय का रुख करते हैं तो यह मामला और भी बड़ा रूप ले सकता है।
फिलहाल, शिक्षा विभाग और शिक्षक संगठनों के बीच संवादहीनता की स्थिति बनी हुई है और यह स्पष्ट नहीं है कि सरकार इस मुद्दे को किस प्रकार हल करेगी।
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