“इमारतें जब किसी रहनुमा को दखती है, वे रहीम के दोहे को यूं गुनगुनाने लगती है…
‘वो पुराना वीराना सा टूटा खंडहर
कई सुनहरी यादें समेटे अधूरा मंजर’
नेता देखकर इमारतें करें पुकार,
आज तुम्हारी बारी है,कल हमारी बारी’….
चंडी (नालंदा दर्पण)। यह हकीकत है एक इमारत के खंडहर में तब्दील हो जाने का।ऐसे ही एक खंडहर की दास्तां है जिसे कभी ‘कर्पूरी भवन’ के नाम से जाना जाता था।जो वक्त के माथे बदकिस्मत इमारत रह गई।
आज बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की जयंती है। कर्पूरी ठाकुर का चंडी से एक नाता रहा है।जब वे सीएम बने। तब चंडी मगध महाविद्यालय का उद्घाटन करने पहुंचे थे। लेकिन उससे पहले से कर्पूरी ठाकुर का लगाव चंडी से था।
प्रखंड के तुलसीगढ़ में उनका आना जाना लगा रहता था। वहां के एक सक्रिय राजनीति नेता आजाद शर्मा श्री ठाकुर के मित्र थे। प्रखंड में कर्पूरी ठाकुर को मानने वाले उनके पदचिन्हों पर चलने वाले कई नेता हुए। जो आज भी उनके सानिध्य की चर्चा करते हैं।
स्वयं चंडी विधानसभा से 1977 में पहली बार चुनाव जीते हरिनारायण सिंह भी कहीं न कहीं समाजवादी आंदोलन और कर्पूरी ठाकुर से जुड़े होने की दुहाई देते हैं।
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के व्यक्तित्व का ही असर था कि उनके अनुयाई उन्हें काफी मानते थे। जिसका असर चंडी प्रखंड में भी देखा गया।
ढ़ाई दशक पहले चंडी स्थान के पास उनकी स्मृति में कर्पूरी भवन का निर्माण किया गया था। लेकिन आज कर्पूरी भवन खंडहर में बदल गया है। जैसे राजनीति में नेताओं ने कर्पूरी ठाकुर को बिसार दिया, उसी प्रकार चंडी का कर्पूरी भवन को भूला दिया गया।
चंडी मंदिर के पीछे कभी दस डिसमिल जमीन पर एक इमारत बनी हुई थी। जिसके आंगन में गर्ल्स मिडिल स्कूल चला करता था। इस स्कूल की छात्राएं जब ‘ऐ मालिक तेरे बंदे हम नेकी पर चलें वदी से टले’ का गान मुखरित करती होंगी तो, ईश्वर भी दाद भेजते होंगे।
लेकिन समय ने पलटा खाया बाद में इसे आदर्श मध्य विद्यालय में विलोपित कर दिया गया। उसके बाद से वह इमारत बदहाली के दौर से गुजर रही थी।इस इमारत को भी किसी रहनुमा की तलाश थी और वो रहनुमा निकले योगेन्द्र यादव।
इस इमारत की बदहाली खत्म करने के लिए आगे आएं कर्पूरी और जेपी के अनुयाई योगेन्द्र यादव। उन्होंने तब राजद सरकार के मुखिया लालू प्रसाद यादव के पास कर्पूरी भवन निर्माण का प्रस्ताव भेजा। लेकिन कर्पूरी ठाकुर के जीवन-आदर्शो को अपनाने वाले, पहनावे से लेकर बाल कर्पूरी ठाकुर की तरह रखने वाले लालू प्रसाद यादव भी इस प्रस्ताव पर ज्यादा रूचि नहीं ली।
बाद में वर्ष 1994 के आसपास योगेन्द्र यादव ने यत्र-तत्र से चंदा कर इस इमारत को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया। उसमें उन्हें सफलता भी हाथ लगी। उसी साल बहुत ही तामझाम के साथ ‘कर्पूरी भवन’ के नाम से इमारत का उद्घाटन किया गया।
लेकिन ‘कर्पूरी भवन’ महज छह साल बाद ही बेनूर होने लगा। धीरे-धीरे कर्पूरी भवन देख रेख के अभाव में जुआरियों-शराबियों के अड्डे बन गया। आसपास का माहौल अराजक तत्वों से खराब होने लगा। समय के साथ कर्पूरी भवन बेजान ही नहीं वक्त के हाथों लाचार भी हो गया।
आज कर्पूरी भवन पूरी तरह फिर से खंडहर में तब्दील हो गया है। इस संबंध में जिला परिषद के पूर्व अध्यक्ष योगेंद्र यादव कहते हैं, उन्होंने भरसक प्रयास किया कि कर्पूरी भवन का कायाकल्प हो जाएं।
उन्होंने सरकार से भी गुहार लगाई लेकिन कुछ हुआ नहीं।इसी बीच पंचायत चुनाव हुए और भी जिप सदस्य के रूप में वे निर्वाचित हो गये फिर उपाध्यक्ष फिर अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी में ही कर्पूरी भवन जीर्णोद्धार के लिए समय नहीं मिल सका। आज कर्पूरी भवन को न कोई पक्ष नजर आता है और न कोई विपक्ष।