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    Monday, February 17, 2025
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      राजगीर साइक्लोपियन वॉलः ASI ने वर्ल्ड हेरिटेज बनाने की ओर बढ़ाया कदम

      राजगीर (नालंदा दर्पण)। बिहार के प्राचीन नगर राजगीर की ऐतिहासिक धरोहर साइक्लोपियन वॉल एक बार फिर चर्चा में है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने इस दीवार को गहराई से समझने और इसके इतिहास को उजागर करने के लिए शोध शुरू कर दिया है। इस कदम से इसे वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल करने की संभावनाएं और प्रबल हो गई हैं।

      बता दें कि यह दीवार लगभग 40 किलोमीटर तक फैली हुई है और प्राचीन राजगीर नगरी की सुरक्षा का अभेद्य कवच मानी जाती थी। सोनागिरी और उदयगिरी पर्वत श्रृंखलाओं के ऊपर फैली इस दीवार का निर्माण सुरखी, चूना, रावा और छोवा जैसे प्राकृतिक तत्वों से किया गया था। पाली ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है और ऐसा माना जाता है कि इसमें 32 विशाल और 64 छोटे प्रवेश द्वार थे।

      साइक्लोपियन वॉल को लेकर एक और दिलचस्प तथ्य यह है कि यह चीन की प्रसिद्ध ग्रेट वॉल से भी प्राचीन मानी जाती है। भारतीय इतिहास के इस अद्भुत पहलू को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लंबे समय से प्रयासरत हैं।

      मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के महानिदेशक के निर्देश पर पुरातत्व वैज्ञानिकों की एक विशेष टीम ने राजगीर का दौरा किया और दीवार के निरीक्षण के लिए सैंपल एकत्र किए। लखनऊ पुराविज्ञान संस्थान के वरीय वैज्ञानिक भी इस प्रक्रिया में शामिल हुए। उनका मानना है कि इस शोध से न केवल साइक्लोपियन वॉल के निर्माण और उसके महत्व का पता चलेगा, बल्कि यह भारत के प्राचीन सांस्कृतिक धरोहरों को विश्व स्तर पर मान्यता दिलाने में सहायक होगा।

      वहीं साइक्लोपियन वॉल को वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल करने की मांग वर्षों से की जा रही है। ASI की यह पहल इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है। यदि यह दीवार यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज लिस्ट में शामिल हो जाती है तो यह न केवल बिहार बल्कि पूरे भारत के लिए गौरव का विषय होगा।

      साइक्लोपियन वॉल के ऐतिहासिक महत्व के अलावा यह स्थल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। वनगंगा के दोनों ओर फैली यह दीवार पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन सकती है। इसके संरक्षण और प्रचार-प्रसार से न केवल पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि बिहार की सांस्कृतिक धरोहरों की पहचान भी मजबूत होगी।

      अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के इस शोध से साइक्लोपियन वॉल का क्या इतिहास सामने आता है और यह दीवार कैसे भारत की धरोहरों की सूची में एक नई पहचान स्थापित करती है।

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