“विशेषज्ञों का मानना है कि यदि जांच ईमानदारी से की गई तो कई निजी स्कूलों में वित्तीय अनियमितताएं उजागर हो सकती हैं। यह कदम शिक्षा क्षेत्र में पारदर्शिता लाने और आरटीई (RTE) के लाभार्थियों को उनके अधिकार दिलाने की दिशा में एक बड़ा प्रयास है…
बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। बिहार सरकार ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) के तहत निजी स्कूलों में नामांकित बच्चों से संबंधित वित्तीय अनियमितताओं की जांच के लिए सख्त कदम उठाए हैं। शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉ. एस सिद्धार्थ ने नालंदा समेत सभी जिलों के डीएम को 2019 से 2024 तक के आंकड़ों की जांच के निर्देश दिए हैं। यह कार्रवाई निजी स्कूलों द्वारा बच्चों की ट्यूशन फीस, पाठ्य पुस्तकें और पोशाक के नाम पर किए जा रहे बड़े दावों में गड़बड़ियों की आशंका के चलते शुरू की गई है।
विभागीय समीक्षा में पता चला है कि कई निजी स्कूल सिर्फ ट्यूशन फीस का दावा कर रहे हैं, जबकि अन्य ने ट्यूशन फीस के साथ किताबें और पोशाक की राशि भी मांगी है। जांच में 2019-20 के ज्ञानदीप पोर्टल पर अपलोड किए गए आंकड़ों में अनियमितताओं के संकेत मिले हैं। कुछ स्कूलों के पास बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं। फिर भी उन्होंने करोड़ों की मांग की है।
सरकार ने आरटीई के तहत नामांकित बच्चों के लिए प्रति छात्र 11,869 रुपये का प्रावधान किया है। इसमें ट्यूशन फीस, किताबें और पोशाक की लागत शामिल है। हालांकि यह राशि स्कूलों द्वारा पूरी तरह से सही तरीके से उपयोग नहीं की जा रही है। जांच समिति न केवल स्कूलों की रिपोर्ट की जांच करेगी, बल्कि बच्चों के अभिभावकों से भी सत्यापन करेगी।
जिला शिक्षा पदाधिकारी (डीईओ) के अनुसार निजी स्कूलों द्वारा ज्ञानदीप पोर्टल पर अपलोड की गई जानकारी की समीक्षा की जाएगी। इसके लिए वरीय उप समाहर्ता की अध्यक्षता में जिला स्तर पर एक समिति गठित की गई है। यह समिति स्कूलों की फीस संरचना की भी जांच करेगी।
डॉ. एस सिद्धार्थ ने सभी डीएम को 15 दिनों के भीतर विस्तृत जांच रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया है। यदि जांच में गड़बड़ी पाई जाती है तो संबंधित स्कूलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। पहली बार यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि आरटीई के तहत किताबें और पोशाक जैसी सुविधाएं बच्चों को वास्तव में प्रदान की जा रही हैं या नहीं।
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