बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। बिहार में चल रहे जमीन सर्वे के तहत स्वघोषणा की प्रक्रिया को लेकर राज्य सरकार ने बड़ा संकेत दिया है। राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री संजय सरावगी ने कहा कि स्वघोषणा की मौजूदा समय सीमा 31 मार्च, 2025 तक है। लेकिन इसे बढ़ाया जा सकता है। हालांकि मंत्री ने आम लोगों से अपील की कि वे अपनी जमीन की स्वघोषणा 31 मार्च तक हर हाल में पूरी कर लें। उन्होंने यह भी बताया कि स्वघोषणा प्रक्रिया की जल्द ही समीक्षा की जाएगी और यदि आवश्यक हुआ तो राज्य कैबिनेट की मंजूरी के बाद समय सीमा में विस्तार किया जाएगा।
सूत्रों के मुताबिक राज्य में अभी भी बड़ी संख्या में रैयतों ने अपनी जमीन की स्वघोषणा पूरी नहीं की है। इसकी वजह से सरकार पर दबाव बढ़ रहा है। कई रैयतों ने अपनी परेशानियां साझा करते हुए बताया कि उनकी जमीन पुश्तैनी है और इसके कागजात उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। एक स्थानीय रैयत रामप्रसाद यादव ने कहा कि हमारी जमीन कई पीढ़ियों से चली आ रही है। लेकिन इसके दस्तावेज हमारे पास नहीं हैं। पुराने कागजात ढूंढना मुश्किल हो रहा है।
इसके अलावा तकनीकी समस्याएं भी स्वघोषणा में बाधा बन रही हैं। कई रैयतों ने शिकायत की कि राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग की वेबसाइट बार-बार ठप हो रही थी। जब सर्वर ने काम करना शुरू किया, तब भी ऑनलाइन रजिस्टर-2 और भू-अभिलेख पोर्टल पर कागजात खोजने की कोशिश नाकाम रही। एक अन्य रैयत श्याम सुंदर ने कहा कि हमने कोशिश की। लेकिन पोर्टल पर हमारी जमीन का कोई रिकॉर्ड नहीं मिला। अब समय सीमा नजदीक आ रही है और हम चिंतित हैं।
वहीं मंत्री संजय सरावगी ने स्वीकार किया कि स्वघोषणा प्रक्रिया में कुछ चुनौतियां सामने आई हैं। उन्होंने कहा कि हम इस पूरे मामले की समीक्षा करेंगे। तकनीकी दिक्कतों और कागजात की अनुपलब्धता जैसे मुद्दों पर विचार किया जाएगा। हमारा मकसद रैयतों को परेशान करना नहीं, बल्कि जमीन सर्वे को पारदर्शी और व्यवस्थित बनाना है। सूत्रों का कहना है कि समीक्षा के बाद सरकार यह तय करेगी कि समय सीमा बढ़ाना जरूरी है या नहीं। यदि ऐसा हुआ तो यह फैसला राज्य कैबिनेट की बैठक में लिया जाएगा।
बता दें कि बिहार में चल रहा यह जमीन सर्वे राज्य की भूमि रिकॉर्ड को डिजिटल और अपडेट करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। इसके तहत रैयतों को अपनी जमीन का विवरण स्वयं घोषित करना है। ताकि पुराने रिकॉर्ड में सुधार हो सके और विवादों को कम किया जा सके। हालांकि पुश्तैनी जमीनों के कागजात न होने और तकनीकी खामियों ने इस प्रक्रिया को जटिल बना दिया है। बिहारशरीफ में कई लोग इस सर्वे को लेकर उत्साहित हैं। लेकिन समय सीमा और प्रक्रिया की जटिलता ने उनकी चिंता बढ़ा दी है।
लोगों का कहना है कि सरकार को समय सीमा बढ़ाने के साथ-साथ जागरूकता अभियान चलाना चाहिए। एक सामाजिक कार्यकर्ता अनिल शर्मा ने सुझाव दिया कि ग्रामीण इलाकों में लोगों को पोर्टल इस्तेमाल करने में दिक्कत हो रही है। सरकार को हेल्प डेस्क या कैंप लगाकर सहायता देनी चाहिए। वहीं कुछ रैयतों ने मांग की कि पुश्तैनी जमीनों के लिए अलग से प्रावधान बनाया जाए। ताकि कागजात न होने की स्थिति में भी स्वघोषणा हो सके।
फिलहाल 31 मार्च, 2025 की समय सीमा नजदीक आने के साथ ही रैयतों में हड़बड़ाहट बढ़ रही है। सरकार की ओर से समीक्षा और संभावित समय विस्तार की खबर ने लोगों को कुछ राहत दी है। बिहारशरीफ और आसपास के इलाकों में यह मुद्दा चर्चा का केंद्र बना हुआ है। आने वाले दिनों में सरकार का अगला कदम इस सर्वे की सफलता और रैयतों की सुविधा के लिए निर्णायक साबित होगा।
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SAMASYA KA KAARAN ANCHAL HAI, JISHEY RASTEY PEY LAANA SAMBHAV NAHI LAGTA HAI, ACHAL SAMPATI PER SAB KI NAJAR HAI JO CHAHEY ONLIE KEY NAAM PER KER LEY?