“बिहार में ग्राम पंचायतों का परिसीमन और अद्यतन जनसंख्या के आधार पर वार्डों का पुनर्गठन समय की मांग है। यदि इसे जल्द नहीं सुलझाया गया, तो ग्रामीण क्षेत्रों के प्रशासन और विकास में असंतुलन गहराता जाएगा…
बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। बिहार में स्थानीय स्वशासन की व्यवस्था को सशक्त बनाने के उद्देश्य से वर्ष 2021-22 में बड़े पैमाने पर नए नगरपालिका क्षेत्रों का गठन, उत्क्रमण और सीमा विस्तार किया गया। हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम पंचायतों के परिसीमन की प्रक्रिया लंबे समय से लंबित है। इसका सीधा प्रभाव पंचायतों की जनसंख्या और उनके प्रशासनिक ढांचे पर पड़ा है।
पंचायती राज अधिनियम 2006 के तहत प्रावधान किया गया है कि किसी भी ग्राम पंचायत की जनसंख्या सात हजार के आसपास होनी चाहिए। परंतु राज्य में ग्राम पंचायतों के परिसीमन नहीं होने के कारण एक पंचायत में कहीं 8,000 तो कहीं 25,000 से अधिक की जनसंख्या हो गई है। इस बेमेल जनसंख्या के कारण एक ओर जहां जनप्रतिनिधियों पर अत्यधिक कार्यभार है। वहीं दूसरी ओर छोटे पंचायतों में संसाधनों और प्रतिनिधित्व का असंतुलन साफ दिखता है।
वार्ड, पंचायती राज की सबसे छोटी इकाई है। वह भी इस असंतुलन से अछूता नहीं है। विभिन्न पंचायतों में वार्डों की संख्या भिन्न-भिन्न है, जिससे स्थानीय प्रशासनिक कार्यों में बाधाएं उत्पन्न हो रही हैं। वर्तमान में ग्राम पंचायतों की आबादी और वार्डों की संख्या 2011 की जनगणना पर आधारित है। जबकि पिछले दशक में ग्रामीण क्षेत्रों की जनसंख्या में काफी वृद्धि हुई है।
2011 की जनगणना के अनुसार बिहार की ग्रामीण जनसंख्या 9 करोड़ 28 लाख थी, जिसमें 8072 ग्राम पंचायतें थीं। उस समय ग्रामीण मतदाताओं की संख्या 6 करोड़ 38 लाख थी। लेकिन 2021 की जनगणना नहीं होने के कारण अद्यतन आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। इस वजह से पंचायत चुनाव 2026 में परिसीमन नहीं किया गया तो हर पंचायत की जनसंख्या तो बढ़ती जाएगी। पर प्रतिनिधित्व की समस्या और गहराएगी।
यदि ग्राम पंचायतों का परिसीमन निकटतम जनगणना के आधार पर किया जाए तो न केवल जनसंख्या का असंतुलन दूर होगा, बल्कि ग्राम स्वराज का सपना भी साकार होगा। इससे पंचायतों के विकास कार्यों में समानता आएगी और प्रशासनिक संरचना को मजबूती मिलेगी।
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