नालंदा स्वास्थ्य विभाग घोटालाः लिपिक चूहा तो पदाधिकारी निकला बागड़ बिल्ला!

Nalanda health department scam clerk turned out to be a rat and officer turned out to be Bagad Billa
Nalanda health department scam clerk turned out to be a rat and officer turned out to be Bagad Billa

नालंदा स्वास्थ्य विभाग का यह घोटाला धीरे-धीरे एक बड़े घोटाले का रूप लेता जा रहा है। अधिकारियों की मिलीभगत से सरकारी खजाने से अवैध निकासी हुई हैं। देखना है कि प्रशासन इस मामले में कितनी गंभीरता से जांच कर दोषियों कार्रवाई करती है…

बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। नालंदा स्वास्थ्य विभाग में सरकारी खजाने से अवैध निकासी के मामले में जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, रोज नए-नए खुलासे हो रहे हैं। घोटाले में अधिकारियों की संलिप्तता उजागर होने के बाद अब एक नया मोड़ आ गया है। आरोपी लिपिक पंकज कुमार ने शोकॉज नोटिस भेजने वाले अधिकारी को ही अवैध राशि के 75 फीसदी का हिस्सेदार बताया है।

हालांकि यह मामला पहले से ही संदेह के घेरे में था कि निकासी पदाधिकारी की मिलीभगत के बिना इस तरह की गड़बड़ी संभव नहीं है। अब लिपिक पंकज कुमार ने सरमेरा सीएचसी के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. अजीत कुमार पर गंभीर आरोप लगाते हुए साक्ष्यों के साथ अपना स्पष्टीकरण दिया है। पंकज का दावा है कि अवैध निकासी से प्राप्त राशि का 75 फीसदी हिस्सा प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी को अलग-अलग माध्यमों से दिया गया।

लिपिक द्वारा दिए गए साक्ष्यों के अनुसार गूगल पे और फोन-पे के माध्यम से प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी के खाते में डेढ़ लाख से अधिक की राशि ट्रांसफर की गई। इस खुलासे के बाद अब प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी पर भी कार्रवाई की संभावना बढ़ गई है। हालांकि अभी तक इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं हुई है।

वहीं पंकज कुमार ने राजगीर अनुमंडलीय अस्पताल, सीएचसी सरमेरा और सदर अस्पताल में लिपिक के रूप में कार्य किया है। हालांकि उसने सिर्फ सरमेरा में प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी को हिस्सेदारी देने का साक्ष्य दिया है। जबकि राजगीर और सदर अस्पताल में हुई अवैध निकासी का कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया। इससे यह संभावना जताई जा रही है कि इन दोनों अस्पतालों में उसने अकेले इस घोटाले को अंजाम दिया।

इधर इस मामले में डॉ. अजीत कुमार ने सभी आरोपों को निराधार बताते हुए कहा है कि पंकज अक्सर चिकित्सकों से कर्ज लेता था और उसे ऑनलाइन चुकाता था। जो ऑनलाइन ट्रांजेक्शन दिखाए जा रहे हैं, वे कर्ज की वापसी के रूप में किए गए थे।

हालांकि सिविल सर्जन डॉ. जितेंद्र कुमार सिंह ने इस बयान पर संदेह जताते हुए कहा कि यदि यह कर्ज था तो अब तक इसकी जानकारी क्यों नहीं दी गई? मामले की निष्पक्ष जांच की जाएगी और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई होगी।

इस बीच बिहारशरीफ सदर अस्पताल में हुए अल्ट्रासाउंड घोटाले को ठंडे बस्ते में डालने का आरोप भी सामने आया है। बताया जा रहा है कि पदाधिकारियों की मिलीभगत से इस घोटाले की जांच को दबाने की कोशिश की गई। अगर जिले में फर्जी अल्ट्रासाउंड जांच केंद्रों की गहन पड़ताल की जाए तो सिविल सर्जन कार्यालय के पूर्व लिपिक राजीव कुमार की संलिप्तता भी सामने आ सकती है। लेकिन पदाधिकारी उन्हें बचाने में जुटे हैं।

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