हिलसा (नालंदा दर्पण संवाददाता)। चंडी प्रखंड मुख्यालय अवस्थित स्थित बापू हाई स्कूल, जो कभी क्षेत्र की शैक्षणिक शान हुआ करता था, आज बदहाली का शिकार है। शैक्षणिक सत्र 2025-26 से इस विद्यालय में कक्षा नौवीं में छात्राओं का नामांकन शुरू करने की घोषणा तो की गई है। लेकिन स्कूल की मौजूदा स्थिति देखकर शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठने लगे हैं। प्लस टू स्तर पर 374 छात्रों को पढ़ाने के लिए महज तीन शिक्षक उपलब्ध हैं। जबकि हाई स्कूल में 400 छात्रों के लिए केवल आठ शिक्षक हैं। यह स्थिति न केवल चिंताजनक है, बल्कि शिक्षा के अधिकार की मूल भावना को भी ठेस पहुंचाती है।
विद्यालय के नए प्राचार्य सुबोध कुमार ने एक सकारात्मक कदम उठाते हुए सत्र 2025-26 से छात्राओं के लिए नौवीं कक्षा में नामांकन की प्रक्रिया शुरू की है। यह निर्णय इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि 2014 से स्कूल प्रशासन ने कुछ विवादों के चलते छात्राओं का नामांकन बंद कर दिया था।
प्राचार्य के अनुसार स्थानीय मध्य विद्यालयों के प्राचार्यों से बातचीत कर छात्राओं को नामांकन के लिए प्रेरित किया जा रहा है। इससे पोषक क्षेत्र की बच्चियों को हाई स्कूल की पढ़ाई के लिए दूर-दराज के स्कूलों में नहीं जाना पड़ेगा।
सामाजिक कार्यकर्ता उपेंद्र प्रसाद सिंह ने इस मुद्दे को पहले लोक शिकायत निवारण कार्यालय में उठाया था। जिसके बाद स्पष्ट हुआ कि जिला शिक्षा विभाग ने छात्राओं के नामांकन पर कोई रोक नहीं लगाई थी। पूर्व प्राचार्य की उदासीनता के कारण यह समस्या बनी रही, जिसका खामियाजा क्षेत्र की छात्राओं को भुगतना पड़ा।
हालांकि छात्राओं के नामांकन की शुरुआत एक राहत की बात है। लेकिन स्कूल की बुनियादी समस्याएं जस की तस हैं। प्राचार्य के अनुसार प्लस टू स्तर पर 374 छात्रों के लिए केवल तीन शिक्षक हैं- एक जीव विज्ञान, एक भूगोल और एक हिंदी का।
हैरानी की बात यह है कि स्कूल में उर्दू का एक शिक्षक भी है, लेकिन उर्दू पढ़ने वाला एक भी छात्र नहीं। सामाजिक कार्यकर्ता उपेंद्र प्रसाद सिंह ने सवाल उठाया कि जब उर्दू का कोई छात्र ही नहीं तो इस शिक्षक को यहां क्यों रखा गया है? उनका स्थानांतरण किसी उर्दू पढ़ने वाले स्कूल में क्यों नहीं किया गया? दूसरी ओर विज्ञान, गणित, अंग्रेजी जैसे महत्वपूर्ण विषयों के लिए शिक्षकों का घोर अभाव है। हाई स्कूल में भी 400 छात्रों के लिए आठ शिक्षक ही उपलब्ध हैं, जो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए नाकाफी हैं।
इस विद्यालय में कुल 18 कमरे हैं। लेकिन इनका उपयोग भी पूरी तरह से प्रभावी नहीं हो पा रहा। एक कमरे में प्रयोगशाला, एक में पुस्तकालय, एक में कार्यालय, एक में स्मार्ट क्लास, एक में आईसीटी लैब और एक को शिक्षक कक्ष बनाया गया है। बचे हुए आठ कमरों में हाई स्कूल और प्लस टू के छात्रों की पढ़ाई कराई जाती है।
सवाल यह है कि इतने कम शिक्षकों और सीमित संसाधनों के साथ क्या गुणवत्तापूर्ण शिक्षा संभव है? प्रयोगशाला और स्मार्ट क्लास जैसी सुविधाएं होने के बावजूद, शिक्षकों की कमी इनके प्रभाव को निष्क्रिय कर रही है।
उपेंद्र प्रसाद सिंह ने एक बार फिर शिक्षा विभाग, मुख्यमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक गुहार लगाई है। उन्होंने मांग की है कि बापू हाई स्कूल में विषयवार शिक्षकों की नियुक्ति की जाए और सभी आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराए जाएं।
उनका कहना है कि 374 बच्चों का भविष्य दांव पर है। तीन शिक्षकों से इतने छात्रों को कैसे पढ़ाया जा सकता है? यह स्कूल नालंदा के नामी स्कूलों में गिना जाता है। लेकिन आज इसकी हालत देखकर रोना आता है। उन्होंने उर्दू शिक्षक के स्थानांतरण और अन्य विषयों के शिक्षकों की तत्काल नियुक्ति की मांग की है।
बहरहाल, बापू हाई स्कूल चंडी की स्थिति नालंदा ही नहीं, बल्कि पूरे बिहार की सरकारी शिक्षा व्यवस्था की बदहाली को दर्शाती है। एक ओर सरकार शिक्षा के अधिकार और समावेशी शिक्षा की बात करती है, वहीं दूसरी ओर स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं और शिक्षकों की कमी जैसे मुद्दे बरकरार हैं। यह विडंबना ही है कि जिस जिले को प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के लिए विश्व भर में जाना जाता है, वहां के स्कूल इस हाल में हैं।
वेशक बापू हाई स्कूल चंडी में सुधार के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है। शिक्षकों की नियुक्ति, संसाधनों का उचित उपयोग और स्कूल प्रशासन की जवाबदेही सुनिश्चित की जानी चाहिए। छात्राओं के नामांकन की शुरुआत एक स्वागतयोग्य कदम है, लेकिन यह तभी सार्थक होगा, जब स्कूल में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का माहौल बने। शिक्षा विभाग को चाहिए कि वह इस स्कूल को प्राथमिकता दे और इसे फिर से क्षेत्र की शैक्षणिक शान बनाने की दिशा में काम करे।
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