नालंदा दर्पण डेस्क / मुकेश भारतीय । बिहार समेत भारत में कृषि क्षेत्र की रीढ़ माने जाने वाले बटाईदार किसान अपनी कठिनाईयों और चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। जबकि वे देश की खाद्य आपूर्ति में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। फिर भी अनेक सरकारी योजनाओं और संसाधनों का लाभ उन्हें नहीं मिल पाता है।
कृषि यंत्र, बीज, खाद, फसल क्षति अनुदान और डीजल अनुदान जैसी आवश्यकताओं का विस्तार किसानों की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए होता है। परंतु बटाईदार किसान इन का सुखद अनुभव नहीं कर पाते। इन योजनाओं तक पहुंच न हो पाने का कारण जमीन के मालिकाना हक में बटाईदारी की स्थिति है। वे भूमि के योग्यता प्रमाण पत्र के बिना इन सुविधाओं के लाभ से वंचित रह जाते हैं। जबकि उनकी मेहनत और योगदान सीमित संसाधनों के बावजूद अनुकरणीय रहता है।
बीज और खाद की उपलब्धता के मामले में बटाईदार किसानों को हमेशा सही समय पर और सही मात्रा में सामग्री नहीं मिलती, जिससे उनकी खेती प्रभावित होती है। फसल क्षति की स्थिति में भी उचित मुआवजे का फायदा ज्यादातर बटाईदार किसानों को नहीं मिल पाता। क्योंकि वे किसान की श्रेणी में नहीं आते।
डीजल अनुदान का विषय भी अल्पसूचित नहीं है। अधिकतर बटाईदार किसान, जो कि बड़ी मात्रा में पंप सेट का उपयोग करते हैं, उन्हें डीजल के ऊंचे दामों को चुकाना पड़ता है। इसके कारण उनके उत्पादन लागत में वृद्धि होती है और उनकी आर्थिक स्थिति पर बहुत बुरा असर पड़ता है। इन सभी समस्याओं को देखते हुए बटाईदार किसानों की स्थिति को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता और उनके विकास तथा सशक्तिकरण के लिए विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
बटाईदार किसानों की स्थिति
भारत में बटाईदार किसान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन उनकी स्थिति लगभग समस्याओं से भरी होती है। बटाईदार किसान वे होते हैं जो किसी अन्य व्यक्ति की भूमि पर खेती करते हैं और उत्पादित फसल का एक हिस्सा भूमि मालिक को देते हैं।
इन किसानों की आर्थिक स्थिति अत्यंत नाजुक होती है। भूमि के मालिक के साथ साझेदारी और फसल की उत्पादन लागत को साझा करने के कारण उनका मुनाफा अक्सर कम होता है। इसके अलावा वे अधिकांश समय ऋण पर निर्भर रहते हैं, जिससे उनकी आर्थिक तंगी बढ़ती जाती है।
सामाजिक दृष्टिकोण से देखें तो बटाईदार किसानों को अक्सर निचले वर्ग का माना जाता है। सामाजिक प्रतिष्ठा और सम्मान की कमी के कारण उनके परिवार भी समाजिक तिरस्कार का सामना करते हैं। बच्चों की शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसी मौलिक सेवाओं तक उनकी पहुंच भी सीमित होती है, जिससे अगली पीढ़ी की संभावनाएं भी सीमित हो जाती हैं।
रोजमर्रा की जीवनशैली में बटाईदार किसानों के परिवार अक्सर कठिनाइयों का सामना करते हैं। जीवन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए परिवार के अधिकांश सदस्य खेतों में काम करते हैं। इन परिवारों में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और पोषण की कमी आम बात है।
देश में बटाईदारों की संख्या बहुत बड़ी है, और उनका योगदान कृषि उत्पादन में महत्वपूर्ण है। भारतीय कृषि में उनका लगभग 10-20% योगदान माना जाता है। यह प्रतिशत क्षेत्रवार परिवर्तित हो सकता है, किंतु यह सुनिश्चित करता है कि बटाईदार किसान भारतीय खाद्य उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
समग्र रूप से, बटाईदार किसानों की स्थिति सुधारने के लिए कई नीतिगत सुधारों की आवश्यकता है। उन्हें अधिक अधिकार और सुरक्षा प्रदान कर उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति में सुधार लाया जा सकता है। उन्हें समुचित कृषि यंत्र, बीज खाद, फसल क्षति और डीजल अनुदान का लाभ मिलना चाहिए, जिससे उनकी उत्पादकता बढ़ सके और जीवनस्तर ऊंचा हो सके।
कृषि उपकरणों की पहुंच में बाधाएँ
बटाईदार किसानों को आवश्यक कृषि यंत्रों तक पहुँचने में कई महत्वपूर्ण बाधाओं का सामना करना पड़ता है। सबसे पहली और प्रमुख बाधा सरकारी सब्सिडी की पहुंच है। अधिकांश बटाईदार किसान सरकारी योजनाओं और सब्सिडी से वंचित रह जाते हैं। क्योंकि उनके पास आधिकारिक तौर पर भूमि के स्वामित्व का प्रमाण नहीं होता। इसके अभाव में वे उन लाभों से वंचित रह जाते हैं, जो सामान्यतः भूमि मालिक किसानों को मिलते हैं।
दूसरी मुख्य बाधा बाजार की अव्यवस्था है। कृषि यंत्रों की खरीद और उपलब्धता में कई बार अनियमितताएँ देखी जाती हैं। बिचौलियों और विक्रेताओं की मनमानी कीमतें और अतिरिक्त खर्च बटाईदार किसानों की पहुँच से बाहर हो जाती हैं। इसके अलावा इन कृषि यंत्रों की मरम्मत और रखरखाव का खर्च भी बटाईदार किसानों के लिए एक बड़ी चुनौती बन जाता है।
कर्ज की अनुपलब्धता भी बटाईदार किसानों के लिये एक गंभीर समस्या है। बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों से कर्ज प्राप्त करने के लिए भूमि के स्वामित्व का प्रमाण अनिवार्य होता है। बटाईदार किसानों के पास यह प्रमाण न होने के कारण उन्हें कृषि यंत्र खरीदने के लिए आवश्यक वित्तीय सहायता नहीं मिल पाती। नतीजतन वे परंपरागत तरीकों से खेती करने पर मजबूर हो जाते हैं। जो कि उनकी उत्पादकता को सीमित कर देता है।
इन्हीं कारणों के चलते बटाईदार किसान अपनी खेती में नवाचार को अपनाने में असमर्थ रहते हैं। सरकार और नीति निर्माताओं को बटाईदार किसानों की समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। ताकि उन्हें भी समुचित संसाधन और सुविधाएँ प्राप्त हो सकें। कृषि यंत्रों की सुगम पहुँच बटाईदार किसानों की उत्पादकता और आर्थिक स्थिति को मजबूती प्रदान कर सकती है। जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भी सुधार होगा।
बीज और खाद का संकट
भारतीय कृषि व्यवस्था में बीज और खाद जैसे महत्वपूर्ण संसाधन निर्धारित मात्रा और समय पर प्राप्त न होने से बटाईदार किसानों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन संसाधनों की अनुपलब्धता अक्सर किसानों की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करती है। जिससे उनकी कृषि उत्पादकता पर नकारात्मक असर पड़ता है। बीज और खाद की कमी का मुख्य कारण वितरण प्रक्रिया में व्याप्त भ्रष्टाचार और उचित आपूर्ति तंत्र की कमी को माना जाता है। जिससे बटाईदार किसान सर्वाधिक प्रभावित होते हैं।
बीज और खाद की उपलब्धता सुनिश्चित करने वाली सरकारी योजनाओं का भी लाभ बटाईदार किसानों तक सीधे पहुँचने में अड़चनें आती हैं। कई बार उनके नाम पर पंजीकृत न होने के कारण या फिर भूमिधारक के नाम पर ही योजनाओं का लाभ हो जाने के कारण वे इन संसाधनों से वंचित रह जाते हैं। धोखाधड़ी और गलत दस्तावेज़ों की मदद से इन योजनाओं का लाभ उठाने वाले तत्व भी इन समस्याओं को और बढ़ाते हैं। इसके अलावा बीज और खाद के वितरण में निष्पक्षता और पारदर्शिता की कमी से भी बटाईदार किसान प्रभावित होते हैं। यह उद्देश्य तभी पूर्ण हो पाएगा जब वितरण प्रणाली को प्रभावशाली तरीके से लागू किया जाएगा।
बीज और खाद की आपूर्ति की कमियाँ भी एक प्रमुख समस्या है। कई बार इन संसाधनों की मांग और आपूर्ति के बीच तालमेल ना होने के कारण किसानों को गुणवत्ता की दृष्टि से कमजोर बीज और खाद खरीदने पर विवश होना पड़ता है। मौसम की अनियमितताओं और वितरण तंत्र की असंगतता के चलते समय पर बीज और खाद का पहुँचना भी अनिश्चित होता है। जिससे बटाईदार किसानों की फसल समय से नहीं बोई जा पाती। इसके परिणामस्वरूप फसल उत्पादन में गिरावट आती है और किसानों की कर्जदारियों में इजाफा होता है। व्यवस्थित आपूर्ति श्रृंखला और भ्रष्टाचार मुक्त वितरण तंत्र की स्थापना में ही समस्या का समाधान है।
फसल क्षति और बीमा
जब फसल क्षति की बात आती है तो बटाईदार किसानों को सबसे अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। मौजूदा बीमा योजनाएँ, जो फसल क्षति के परिणामस्वरूप मुआवजा प्रदान करती हैं। अक्सर बटाईदार किसानों के लिए अनुपलब्ध होती हैं। इसका मुख्य कारण सरकारी नीतियों और इन नीतियों के कार्यान्वयन में उत्पन्न होने वाली समस्याएँ हैं।
सरकार द्वारा लाई गई योजनाएँ मुख्यतः उन किसानों पर केंद्रित होती हैं जिनके पास खुद की जमीन होती है। बटाईदार, जो दूसरों की जमीन पर खेती करते हैं। अक्सर इस पात्रता से बाहर रह जाते हैं। इससे उन्हें फसल क्षति की स्थिति में कोई राहत नहीं मिल पाती। इसके अतिरिक्त बीमा कंपनियाँ भी बटाईदार किसानों को बीमा कवरेज प्रदान करने में अनिच्छुक रहती हैं। क्योंकि उनके पास जमीन के मालिकाना हक का प्रमाण नहीं होता।
इसके समाधान के लिए सरकार को नीतियों में संशोधन करना आवश्यक है। फसल बीमा योजनाओं को इस प्रकार से डिजाइन किया जाना चाहिए कि बटाईदार किसानों को भी समुचित मुआवजा मिल सके। इसके लिए एक उचित पहचान और पंजीकरण प्रणाली लागू की जा सकती है। जिससे बटाईदार किसानों की पहचान की जा सके। सरकारी प्रशिक्षण कार्यक्रम और जागरूकता अभियान भी महत्वपूर्ण हैं। ताकि ये किसान अपनी फसल क्षति और बीमा के अधिकारों के प्रति सचेत रहें।
इन नीतिगत संशोधनों के बिना बटाईदार किसानों की चुनौतियाँ यथावत बनी रहेंगी और उन्हें फसल क्षति व वित्तीय संकट का सामना करना पड़ेगा। फसल क्षति की स्थिति में उचित मुआवजा प्राप्त करना एक बुनियादी अधिकार है। जिसे केवल प्रभावी नीति निर्माण और सुस्पष्ट कार्यान्वयन द्वारा ही सुनिश्चित किया जा सकता है।
डीजल अनुदान की समस्याएं
डीजल अनुदान एक महत्वपूर्ण सरकारी योजना है जो किसानों को उनकी कृषि गतिविधियों में सहूलियत प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू की गई है। बावजूद इसके बटाईदार किसानों के लिए इस अनुदान का लाभ उठाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य साबित होता है। मुख्य समस्या यह है कि डीजल अनुदान का लाभ प्राप्त करने के लिए आवश्यक दस्तावेजों और पहचान प्रमाणों की कमी है। बटाईदार किसान अक्सर भूमि के स्वामी नहीं होते और उनकी भूमि पर खेती करने के अधिकार का कोई आधिकारिक प्रमाण नहीं होता। जिससे वे अनुदान प्रक्रिया में पीछे रह जाते हैं।
इसके अतिरिक्त डीजल अनुदान योजना की जानकारी और प्रक्रियाओं को समझने में भी बटाईदार किसानों को कठिनाई होती है। वे प्रायः सीमित शिक्षा और संसाधनों के कारण सरकारी योजनाओं की तकनीकी जानकारी हासिल नहीं कर पाते। जिससे वे इस अनुदान के लिए आवेदन करने में असमर्थ रहते हैं।
सरकार की विभिन्न सॉफ्टवेयर प्लेटफार्मों और डिजिटल माध्यमों के माध्यम से अनुदान के वितरण की प्रक्रिया ने भी बटाईदार किसानों के लिए परिस्थिति को अधिक जटिल बना दिया है। इनके पास अक्सर जरूरी डिजिटल उपकरणों और इंटरनेट सुविधा की कमी होती है। जिससे वे खुद को इस प्रक्रिया में सम्मिलित नहीं कर पाते।
बटाईदार किसानों को डीजल अनुदान का लाभ दिलाने में सहकारी संस्थाओं और कृषि विभागों की भूमिका अहम हो सकती है। यदि ये संस्थाएँ बटाईदार किसानों के लिए सहायक प्रमाणपत्रों का प्रबंध कर सकें और अनुदान की जानकारी को सरल तथा स्थानीय भाषा में उपलब्ध करवा सकें तो समस्याओं का समाधान हो सकता है। इसके साथ ही, समुदाय आधारित संगठनों को भी अपनी भूमिका निभाते हुए किसानों को डीजल अनुदान के प्रति जागरूक और समर्थ बनाने की दिशा में कार्य करना चाहिए।
सरकारी नीतियाँ और बटाईदार किसान
भारत में बटाईदार किसानों की स्थिति अन्य कृषक वर्गों के मुकाबले अत्यंत जटिल और संघर्षमय है। वर्तमान सरकारी नीतियाँ और योजनाएँ जैसे कि कृषि यंत्र, बीज, खाद, फसल क्षति और डीजल अनुदान का लाभ अधिकांशतः बटाईदार किसानों तक नहीं पहुंच पाता। एक प्रमुख कारण है भूमि स्वामित्व का अभाव। बटाईदार किसानों के पास खुद की जमीन न होने के कारण वे अक्सर सरकारी योजनाओं के तहत पात्रता के मानकों को पूरा नहीं कर पाते।
किसान कल्याण कार्यक्रमों का समुचित लाभ लेने के लिए भूमि स्वामी होने की शर्तें बहुत महत्वपूर्ण हैं। कृषि मशीनीकरण योजनाएँ, बीज और खाद सब्सिडी जैसे विभिन्न कृषि सुधार कार्यक्रम सीधे तौर पर जमीन के स्वामियों के नाम पर उपलब्ध हैं। बटाईदार किसान बड़ी कठिनाइयों का सामना करते हैं, क्योंकि सरकारी दस्तावेजों में उन्हें नियमित किसान के रूप में पंजीकृत नहीं किया जाता।
फसल क्षति के मामलों में भी यही परिप्रेक्ष्य देखा जाता है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना जैसी महत्वाकांक्षी योजनाओं का लाभ प्राथमिकता के आधार पर भूमि स्वामियों को ही प्रदान किया जाता है। बटाईदार किसानों को इन योजनाओं का समुचित लाभ नहीं मिल पाता क्योंकि वे आवश्यक दस्तावेजी मानकों को पूरा नहीं कर पाते। इस स्थिति की गंभीरता इन्हीं योजनाओं के तहत आने वाले डीजल अनुदान में भी देखी जा सकती है। डीजल अनुदान का लाभ भी उन्हीं किसानों तक सीमित रहता है जिनके नाम पर जमीन का पंजीकरण होता है।
सरकारी नीतियों में बटाईदार किसानों के लिए विशेष प्रावधानों की अनुपस्थिति न केवल इन किसानों की जीवनशैली पर प्रभाव डालती है, बल्कि कृषि उत्पादन और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भी इसके नकारात्मक प्रभाव दिखते हैं। भविष्य की कोई भी प्रभावी योजना या नीति तभी सफल हो सकती है जब वे बटाईदार किसानों को ध्यान में रखते हुए बनाई जाएं और उनके लिए विशेष प्रावधानों का समावेश करें।
समाधान और सुझाव
बटाईदार किसानों की समस्याओं के समाधान हेतु नीति संशोधन और संसाधनों के उचित वितरण की महत्वपूर्ण आवश्यकता है। सबसे पहले बटाईदार किसानों को सरकारी योजनाओं का सीधा लाभ पहुंचाने हेतु स्पष्ट और प्रभावी पहचान प्रणाली विकसित की जानी चाहिए। यह सुनिश्चित करने के लिए एक केंद्रीकृत डेटाबेस बनाया जा सकता है। जिससे इन किसानों की पहचान को मान्यता मिल सके और उन्हें सरकारी लाभ आसानी से प्राप्त हो सके।
इसके अतिरिक्त बटाईदार किसानों के लिए फसल क्षति और डीजल अनुदान योजनाओं में सुधार की जरूरत है। उन्हें इन योजनाओं का लाभ सुनिश्चित करने के लिए अनुदान की प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाना होगा। साथ ही स्थानीय उपाय सुझाए जा सकते हैं। जैसे कि ग्राम स्तर पर समितियों का गठन, जो इन किसानों की सहायता कर सके और उनकी समस्याओं को उचित मंच पर उठा सके।
अधिकारी स्तर पर नियमित निरीक्षण और मॉनिटरिंग प्रणाली भी स्थापित की जा सकती है। जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि बटाईदार किसानों को समय पर बीज, खाद और कृषि यंत्रों का वितरण हो रहा है। इसके साथ ही, स्वच्छ ऊर्जा के स्रोत को प्रोत्साहित करने हेतु सोलर पंप इत्यादि का वितरण किया जा सकता है। जो डीजल की कीमतों पर निर्भरता को कम करेगा।
नीतिगत बदलाव के अंतर्गत, बटाईदार किसानों के अधिकारों की सुरक्षा हेतु कानूनों को मजबूत करना आवश्यक है। राज्य और केन्द्र स्तर पर एकीकृत प्रयासों के माध्यम से विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का लाभ बटाईदार किसानों तक पहुंचाने के लिए प्रभावशाली योजनाएं बनाई जा सकती हैं। इन उपायों के जरिये बटाईदार किसान समुदाय की कृषि उत्पादकता को बढ़ावा देकर उनके आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ किया जा सकता है और उन्हें किसान समाज में उचित सम्मान और पहचान मिल सकती है।
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