नालंदा दर्पण डेस्क। सुप्रीम कोर्ट में एक असामान्य और बेहद संवेदनशील मामला सामने आया, जिसने न्यायपालिका की तटस्थता और संवेदनशीलता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए। सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाई कोर्ट द्वारा एक विधवा और उसके श्रृंगार के संदर्भ में की गई टिप्पणी को अत्यधिक आपत्तिजनक करार देते हुए उसकी कड़ी आलोचना की।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसी टिप्पणी न्यायालय से अपेक्षित संवेदनशीलता के विरुद्ध है और इससे महिलाओं के प्रति समाज में व्याप्त पुरानी धारणाओं को बल मिलता है, जिसे किसी भी कीमत पर प्रोत्साहित नहीं किया जा सकता।
क्या है मामला? यह मामला 1985 में बिहार के मुंगेर जिले का है, जहां एक महिला का कथित तौर पर अपहरण कर उसकी हत्या कर दी गई थी। आरोप है कि महिला को उसके पिता के घर से अगवा कर लिया गया था, और बाद में उसकी लाश बरामद हुई।
इस मामले में सात लोगों को आरोपी बनाया गया था, जिनमें से पांच को ट्रायल कोर्ट ने हत्या का दोषी ठहराया था, जबकि दो अन्य को बरी कर दिया गया था।
पटना हाई कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान उन दो आरोपियों की बरी किए जाने के फैसले को पलट दिया और उन्हें भी आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
विधवा और श्रृंगार पर विवादित टिप्पणीः हाई कोर्ट ने इस सवाल पर ध्यान केंद्रित किया कि क्या पीड़िता वास्तव में उस घर में रह रही थी, जहां से उसे कथित तौर पर अगवा किया गया था। जांच के दौरान उस घर में केवल मेकअप का सामान मिला, जिसे लेकर हाई कोर्ट ने कहा कि चूंकि घर में एक विधवा महिला भी रह रही थी, इसलिए मेकअप का सामान उसका नहीं हो सकता था। कोर्ट ने टिप्पणी की, “विधवा को मेकअप की क्या जरूरत?”
सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुखः सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने पटना हाई कोर्ट की इस टिप्पणी को अस्वीकार्य और कानूनी दृष्टि से गलत बताया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट की यह टिप्पणी विधवाओं के प्रति समाज में व्याप्त रूढ़िवादी धारणाओं को बढ़ावा देती है और यह संवेदनशीलता तथा तटस्थता के बुनियादी सिद्धांतों के विरुद्ध है।
पीठ ने स्पष्ट किया कि किसी महिला के मेकअप करने या न करने का सवाल उसके वैवाहिक या वैधव्य के आधार पर नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि हाई कोर्ट को इस प्रकार की टिप्पणी करने से बचना चाहिए था, खासकर जब किसी साक्ष्य से यह साबित नहीं हो सका कि वह मेकअप वास्तव में किसका था।
सातों आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट ने किया बरीः सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि हत्या को साबित करने के लिए कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य मौजूद नहीं हैं। पीठ ने कहा कि ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट के फैसले में गंभीर कानूनी त्रुटियां थीं, इसलिए सभी सातों आरोपियों को बरी कर दिया गया। साथ ही निर्देश दिया गया कि अगर वे हिरासत में हैं, तो उन्हें तत्काल रिहा किया जाए।
यह मामला एक बार फिर इस बात को रेखांकित करता है कि न्यायालयों को अपने फैसले और टिप्पणियों में अत्यधिक संवेदनशील और तटस्थ होना चाहिए। विशेष रूप से मामला जब महिलाओं या किसी विशेष सामाजिक समूह से जुड़ा हो।
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