बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। शिक्षा विभाग में चल रहे भ्रष्टाचार के खेल का बड़ा खुलासा हुआ है। विभागीय जांच में संस्कृत विद्यालयों के अवकाश प्राप्त शिक्षकों और कर्मचारियों के भविष्य निधि भुगतान में 15 प्रतिशत कमीशन लेने और बेंच-डेस्क आपूर्ति के बकाया राशि के भुगतान में कमीशन मांगने के आरोप प्रथम दृष्टया सही पाए गए हैं। इस मामले में जिला शिक्षा पदाधिकारी (डीपीओ) सुजीत कुमार राउत के खिलाफ बिहार सरकारी सेवक नियम 17 के अंतर्गत विभागीय कार्रवाई शुरू कर दी गई है।
शिक्षा विभाग के निदेशक (प्रशासन) सह अपर सचिव सुबोध कुमार चौधरी ने तत्कालीन डीपीओ सुजीत कुमार राउत पर विभागीय कार्यवाही प्रारंभ करने के निर्देश दिए हैं। इसके लिए शिक्षा विभाग के विशेष सचिव सतीश चंद्र झा को संचालन पदाधिकारी और पटना प्रमंडल के क्षेत्रीय शिक्षा उप निदेशक को प्रस्तुतीकरण पदाधिकारी नियुक्त किया गया है। उन्हें तीन माह के भीतर जांच पूरी कर रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया गया है।
संस्कृत विद्यालय शिक्षक संघ के रामनरेश सिंह ने डीएम से शिकायत की थी कि संस्कृत विद्यालयों के अवकाश प्राप्त शिक्षकों और शिक्षकेत्तर कर्मियों के भविष्य निधि के भुगतान के लिए डीपीओ द्वारा 15 प्रतिशत कमीशन मांगा जा रहा है। इस पर डीएम के निर्देश पर हुई जांच में सामने आया कि डीपीओ स्थापना ने 20 दिनों तक फाइल अपने पास रखी और राशि का भुगतान नहीं किया, जिससे भुगतान राशि वापस लौट गई। दोषी पाए जाने पर डीएम ने प्रपत्र ‘क’ की कार्रवाई के निर्देश दिए।
अब बेंच-डेस्क आपूर्ति में भी भारी भ्रष्टाचार सामने आया है। शिक्षा विभाग द्वारा नागपुर की इंडमेट प्रेस मेटल प्राइवेट लिमिटेड सहित कई एजेंसियों को बेंच-डेस्क आपूर्ति की जिम्मेदारी दी गई थी। तत्कालीन डीपीओ सुजीत कुमार राउत के मौखिक आदेश पर अस्थावां, बिंद, राजगीर और सिलाव के बीईओ के सहयोग से वर्क ऑर्डर दिए गए थे।
अस्थावां और राजगीर प्रखंड में कुल 1637 बेंच-डेस्क की आपूर्ति की गई। जिसकी कुल लागत 81 लाख 68 हजार 630 रुपए थी। इसमें से 63 लाख 8 हजार 960 रुपए का भुगतान सीएफएमएस के माध्यम से वेंडर को कर दिया गया। जबकि 18 लाख 59 हजार 670 रुपए की राशि रोक दी गई। बाद में कंपनी के प्रतिनिधि ने डीपीओ पर शेष राशि के भुगतान के लिए 35 प्रतिशत कमीशन मांगने का आरोप लगाया।
कई विद्यालयों के प्रधानाध्यापकों ने डीईओ से शिकायत की थी कि वेंडरों द्वारा जबरदस्ती बिना आपूर्ति किए ही बिल पर साइन कराने का दबाव डाला जा रहा है। मगर कार्रवाई के नाम पर सिर्फ आश्वासन ही मिला। इस पूरे भ्रष्टाचार में अधिकारी से लेकर कर्मियों तक की मिलीभगत थी, जहां बिना कमीशन के किसी भी कंपनी को वर्क ऑर्डर नहीं दिया गया।
इस मामले में शिक्षा विभाग ने कड़ी कार्रवाई के संकेत दिए हैं। संचालक पदाधिकारी को जांच पूरी कर तीन महीने में रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है। यदि आरोप सिद्ध होते हैं तो दोषी अधिकारियों के खिलाफ कड़ी प्रशासनिक एवं कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
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