बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। बिहार शिक्षा विभाग ने सभी सरकारी स्कूलों के शिक्षकों की डेप्युटेशन (प्रतिनियुक्ति) को लेकर सख्त दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इन नए नियमों के तहत अब शिक्षकों की डेप्युटेशन किसी अन्य कार्यों के लिए नहीं की जाएगी। इस फैसले का उद्देश्य शिक्षकों को उनके शिक्षण कार्यों पर केंद्रित रखना हैं और गैर-शिक्षण गतिविधियों के लिए उनकी डेप्युटेशन को रोकना हैं।
हालांकि, शिक्षा विभाग के अनुसार अति आवश्यक होने पर केवल 3 माह के लिए शिक्षकों की डेप्युटेशन की अनुमति दी जाएगी। जोकि जिला स्तरीय स्थापना समिति के माध्यम से स्वीकृत किया जा सकेगा। वहीं, 3 माह बाद डेप्युटेशन के नवीनीकरण पर भी वही समिति निर्णय लेगी। इस दौरान ट्रांसफर के समय ही डेप्युटेशन के सभी मामले देखे जाएंगे और आवेदन स्वीकार किए जाएंगे।
वहीं, शिक्षा विभाग ने डेप्युटेशन संबंधी आदेशों को सॉफ्टवेयर आधारित ऑटो-जनरेटेड फॉर्मेट के माध्यम से पोर्टल पर जारी करने की योजना भी बनाई हैं। इससे प्रक्रिया में काफी पारदर्शिता और सुगमता आएगी। इससे शिक्षकों को अन्य विभागीय कार्यों में लगाए जाने की संभावनाओं पर लगाम लगाई जा सकेगी।
बता दें कि शिक्षकों की डेप्युटेशन की सबसे अधिक गैर-शिक्षकेतर कार्यों के लिए होती रही है। इसे ध्यान में रखते हुए सभी स्कूलों में करीब 6 हजार से अधिक विद्यालय सहायकों की नियुक्ति की जाएगी। इसके बाद शिक्षकों की डेप्युटेशन की आवश्यकता बहुत कम रह जाएगी। इससे शिक्षक अपने मूल कार्य यानी शिक्षण में पूरा ध्यान केंद्रित रख सकेंगे।
हालांकि, शिक्षा विभाग ने अभी ट्रांसफर प्रक्रिया के औपचारिक आदेश जारी नहीं किए हैं। लेकिन इस नई पॉलिसी के अनुसार ट्रांसफर और डेप्युटेशन दोनों के मामले एक साथ देखे जाएंगे। इससे यह सुनिश्चित किया जाएगा कि शिक्षकों को उनके कार्यस्थल से हटाकर दूसरे कार्यों में न लगाया जाए और शिक्षा व्यवस्था में कोई बाधा न हो।
शिक्षा विभाग का यह सख्त कदम शिक्षण प्रक्रिया को सुचारू रखने और शिक्षकों को गैर-शिक्षण कार्यों में अनावश्यक रूप से संलग्न होने से रोकने के लिए उठाया गया हैं। इससे शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की उम्मीद की जा रही हैं। विभाग को अपनी नई गाइडलाइन को सख्ती से लागू करने की चुनौती भी होगी। इससे शिक्षकों की डेप्युटेशन की अनियंत्रित प्रथा पर पूरी तरह से रोक लगाई जा सके।
इस नीति से यह साफ हो गया हैं कि अब शिक्षकों का मुख्य कार्य केवल शिक्षा देना होगा और उन्हें अनावश्यक प्रशासनिक या अन्य गतिविधियों में शामिल नहीं किया जाएगा। यह कदम बिहार में शिक्षा व्यवस्था को अधिक मजबूत बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास माना जा रहा हैं।
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