नालंदा दर्पण डेस्क। बीते दिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया एक महत्वपूर्ण फैसला बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) की शिक्षक नियुक्ति प्रक्रिया पर सीधा प्रभाव डाल सकता है। TRE-1 और TRE-2 के तहत नियुक्त किए गए सहायक अध्यापकों की बहाली के मामले में कई विवादित बदलाव किए गए थे। जिन्हें अब न्यायिक परीक्षण के आधार पर चुनौती दी जा सकती है। तात्कालीन शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक और BPSC के अध्यक्ष अतुल प्रसाद द्वारा कुछ नियमों में किए गए बदलावों पर आरोप लगाया गया था कि इनसे कुछ खास तबकों को लाभ पहुंचाने का प्रयास किया गया।
नौकरी के नियमों में बदलाव के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देशः सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की पीठ, जिसकी अध्यक्षता भारत के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ कर रहे थे, उन्होंने अपने ताजा फैसले में स्पष्ट रूप से कहा है कि सरकारी नौकरियों में भर्ती प्रक्रिया के दौरान नियमों में बदलाव नहीं किया जा सकता। यह फैसला उस सिद्धांत पर आधारित है कि भर्ती प्रक्रिया उस समय से शुरू होती है, जब विज्ञापन प्रकाशित किया जाता है। कोर्ट का मानना है कि एक बार जब पात्रता मानदंड तय हो जाते हैं तो उन्हें प्रक्रिया के बीच में बदला नहीं जा सकता, जब तक कि मौजूदा नियम इसकी अनुमति न दें।
यह फैसला सीधे तौर पर बिहार की TRE-1 और TRE-2 शिक्षक नियुक्ति प्रक्रियाओं पर सवाल उठाता है। क्योंकि इन प्रक्रियाओं के दौरान नियमों में बदलाव किए गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि किसी भी प्रकार का बदलाव करना आवश्यक हो, तो वह संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुरूप होना चाहिए। जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि कोई मनमाना या पक्षपातपूर्ण निर्णय न हो।
BPSC की नियुक्ति प्रक्रिया पर असर: सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद BPSC की शिक्षक नियुक्ति प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। इस प्रक्रिया के दौरान हुए नियम परिवर्तन, जैसे- पात्रता मापदंड, चयन प्रक्रिया और मेरिट सूची में बदलाव, अब कानूनी चुनौती का सामना कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि चयन सूची में स्थान मिलने से नियुक्ति का कोई “अपरिहार्य अधिकार” नहीं मिलता है। जिससे यह संकेत मिलता है कि नियुक्ति प्रक्रिया का अंतिम निर्णय कोर्ट के द्वारा समीक्षा किए जा सकने योग्य है।
तत्कालीन शिक्षा विभाग और BPSC अधिकारियों द्वारा किए गए इन बदलावों के पीछे की मंशा पर सवाल उठाए जा रहे हैं। आरोप हैं कि कुछ विशेष वर्गों को लाभ देने के उद्देश्य से नियमों में ये बदलाव किए गए थे। अब इस ताजा फैसले के बाद उन सभी उम्मीदवारों को राहत मिल सकती है, जो मानते हैं कि उनके साथ भेदभाव किया गया है या जिनकी उम्मीदवारी बिना किसी उचित कारण के खारिज कर दी गई।
शिक्षक नियुक्तियों की वैधता पर प्रश्नचिह्नः सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उन शिक्षकों की नियुक्तियों पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है जो इन संशोधित नियमों के आधार पर नियुक्त किए गए थे। यह संभव है कि उन शिक्षकों की बहाली को अब कानूनी संकट का सामना करना पड़े। अगर नियमों में किए गए बदलाव सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुसार असंवैधानिक पाए जाते हैं तो पहले से नियुक्त शिक्षकों की नौकरियों पर संकट गहरा सकता है।
नियुक्तियों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का व्यापक प्रभावः सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न केवल बिहार की शिक्षक नियुक्ति प्रक्रिया पर बल्कि पूरे देश की सरकारी नियुक्तियों पर भी व्यापक प्रभाव डालेगा। यह फैसला यह स्पष्ट करता है कि नियमों और पात्रता मानदंडों को स्थिर और स्पष्ट रखना आवश्यक है, ताकि उम्मीदवारों के अधिकारों का हनन न हो और प्रशासनिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता बनी रहे।
TRE-1 और TRE-2 के शिक्षकों की नियुक्तियों को लेकर आगे क्या होता है, यह देखना दिलचस्प होगा, लेकिन इतना तय है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने भर्ती प्रक्रिया में नियमों की स्थिरता की महत्वपूर्णता को एक बार फिर से स्थापित कर दिया है।
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