
बेन (नालंदा दर्पण)। समूचे क्षेत्र में जलस्रोतों के सूखने से किसानों के सामने खरीफ फसलों, विशेष रूप से धान की रोपाई को लेकर गंभीर चुनौतियाँ खड़ी हो गई हैं। अप्रैल माह से ही नदियाँ, नहरें और तालाब सूख चुके हैं और बारिश की अनिश्चितता ने किसानों की चिंता को और बढ़ा दिया है। क्षेत्र में 80% से अधिक आबादी खेती पर निर्भर है। जिसके कारण जल संकट का असर उनकी आजीविका पर सीधे तौर पर पड़ रहा है।
पैमार नदी के किनारे बसे गाँवों के किसान उपेंद्र प्रसाद, विवेक सिंह, मो. जावेद, नागमणि, शिवकुमार और विनोद सहित दर्जनों किसानों ने बताया कि धान की नर्सरी तो तैयार है, लेकिन खेतों में रोपाई के लिए पानी उपलब्ध नहीं है। नदियाँ और नहरें सूखी पड़ी हैं और बोरिंग की सुविधा भी सीमित खेतों तक ही उपलब्ध है।
किसानों का कहना है कि यदि नदियों या नहरों में पानी आ जाए तो रोपाई का काम शुरू हो सकता है। लेकिन वर्तमान में प्रखंड की सभी नदियाँ और नहरें महीनों से सूखी हैं, जिसके कारण सैकड़ों किसानों की तैयार नर्सरियाँ खेतों में रोपाई के इंतज़ार में हैं।
उपेंद्र प्रसाद ने कहा कि हमारे खेत चारों दिशाओं में फैले हैं। लेकिन बोरिंग केवल एक हिस्से में है। ऐसे में धान की रोपाई करना बेहद मुश्किल हो रहा है।
मैंजरा पंचायत के किसान मो. जावेद और विनोद ने बताया कि धान की रोपाई के बाद हर दो-तीन दिन में खेतों में सिंचाई आवश्यक है। लेकिन पानी की व्यवस्था न होने के कारण रोपाई करने का जोखिम नहीं उठाया जा सकता।
मो. जावेद ने कहा कि अगर समय पर पानी नहीं मिला तो धान के पौधे सूख जाएँगे और पूरी फसल बर्बाद हो जाएगी।
विवेक और शिवकुमार, जिनके खेत नदी के किनारे हैं, उन्होंने बताया कि यदि नदी में पानी होता, तो अब तक रोपाई पूरी हो चुकी होती। लेकिन प्राकृतिक जलस्रोतों के अभाव में किसान ट्यूबवेल, विद्युत बोरिंग और पंपिंग सेट जैसे संसाधनों पर निर्भर हैं।
समस्या यह है कि अधिकांश छोटे और मध्यम किसानों के पास ये सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं और वे या तो पड़ोसियों के संसाधनों पर निर्भर रहते हैं या बारिश की प्रतीक्षा करते हैं।
महिला किसान मनोरमा देवी ने बताया कि बारिश या नदी-नहर में पानी आने पर ही रोपाई संभव है। अच्छी बारिश के बाद सभी किसान एक साथ जुताई और रोपाई शुरू कर देते हैं, जिसके कारण मजदूरों की कमी हो जाती है। मजदूर नहीं मिलने से भी रोपाई का काम प्रभावित होता है।
बहरहाल, क्षेत्र की सभी नदियाँ और नहरें सूखी पड़ी हैं। जिसके कारण सिंचाई के लिए पानी की किल्लत पूरे क्षेत्र में महसूस की जा रही है। यह संकट न केवल धान की रोपाई को प्रभावित कर रहा है, बल्कि किसानों की आर्थिक स्थिति पर भी गहरा असर डाल रहा है।
किसानों की माँग है कि सरकार नहरों में पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करे और वैकल्पिक सिंचाई सुविधाओं को बढ़ावा दे। ताकि खेती का काम सुचारु रूप से चल सके।