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Wednesday, September 27, 2023
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    मोटी कमाईः नालंदा के मगही पान पर ही चढ़ाया जा रहा बनारसिया रंग

    एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क। नालंदा के इस्लामपुर और राजगीर प्रखंड की 5 पंचायतों में मगही पान की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। यहां के मगही पान की मांग बिहार के अलावा कई राज्यों में है।

    यहां का मगही पान ही बनारस और यूपी की मंडियों में पहुंचते ही बनारसी हो जाता है। वहां के कारोबारी मगही पान के पत्ते को प्रोसेसिंग कर बनारसी पान का नाम देते हैं।

    दो घंटे तक कोयले की गर्मी में इन मगही पान के पत्तों को रखा जाता है। इसके बाद ये पीले रंग के हो जाते हैं। जिसे यूपी में बनारसी पान कहा जाता है।

    इस खेती पर बीस हजार परिवार हैं आश्रितः  नालंदा के किसानों से व्यापारी सस्ते दाम पर पत्ते खरीदते हैं, लेकिन बाद में इसे ही बनारसी का नाम देकर कारोबारी मोटी कमाई कर लेते हैं। मेहनत किसान करते हैं और मुनाफा कोई और कमा ले जाता है।

    खेती का रकबा करीब 400 बीघा है। मौसम का साथ मिलता है तो हर साल करीब 16 हजार क्विंटल पान के पत्ते की उपज किसान कर लेते हैं।

    हालांकि खेतों में लागत अधिक और मुनाफा कम होने के कारण अब युवा पीढ़ी पान की खेती से मुंह मोड़ रही है।

    खेती की जगह युवा दूसरे प्रदेशों में जाकर काम-धंधा करने लगे हैं, फिर भी करीब 20,000 चौरसिया परिवार की जीविका का मुख्य साधन अभी भी पान की खेती है।

    एक पेड़ से 2 साल तक मिलते हैं पत्तेः पान मसाला का क्रेज बढ़ने से पान के पत्ते की मांग घटने लगी है। खासकर युवा पीढ़ी पान मसाला को अधिक प्राथमिकता दे रहे हैं।

    इससे किसानों को फायदा कम और नुकसान ज्यादा हो रहा है। प्रति कट्ठा बांस का बरेजा बनाने और खेतों में 20 से 22 हजार खर्च आता है।

    पहले की तरह पत्ते की मांग मंडियों में कम हो रही है। पान की खेती करने वाले किसान बताते हैं कि हर साल अप्रैल-मई और जून में पान की खेती होती है।

    एक साल में फसल तैयार होती है 15 जनवरी से सीजन शुरू होकर मार्च तक पत्ते की तुड़ाई की जाती है। एक बार खेती करते हैं तो दो साल तक पत्ते मिलते हैं।

    पत्ते की होती हैं 3 वैरायटीः पान की पत्तों को तोड़ने के बाद उसकी छटाई की जाती है। 3 वैरायटी के पत्ते निकलते हैं, इनकी कीमतें भी अलग-अलग तय की जाती हैं।

    सबसे निम्न क्वालिटी के पत्ते को कटपीस की श्रेणी में रखा जाता है। मध्यम क्वालिटी वाले को हेरूआ या बरूसी कहते हैं, जबकि सबसे अच्छी क्वालिटी वाले को गांठ कहा जाता है।

    एक ढोली में होते हैं 200 पत्तेः