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Bihār Sharīf
Thursday, September 28, 2023
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    चंडी के इस गांव का प्राचीन ‘मीठकी कुंआ’ का इतिहास, जिसमें दफन है राहगीरों की प्यास!

    किसी ने सच कहा है:-'मैं एक कुंआ हूं, जितना मुझमें डूबोगे तृप्त हो बाहर आओगे !'

    चंडी (नालंदा दर्पण)। ‘घर से कुंआ, फिर कुंआ से घर, सुना है मेरे पूर्वजों की यही कहानी थी’। शायद अब कहानी हकीकत नहीं लगती है। एक कुंआ जिसमें दफन है राहगीरो की प्यास।

    वो प्यास जो बुझाती थी, आते-जाते, थके-मांदे मजदूर-किसान की। प्यासो की प्यास, जो देती थी सबको सुकुन! अगर नहीं होता यह कुंआ तो लोगों का क्या होता।

    The history of the ancient sweet well of this village of Chandi in which the thirst of passers by is buriedऐसे ही मीठे जल की एक कुंए की डेढ़ सौ साल से भी पुरानी दास्तां है। चंडी प्रखंड के इस गांव में आज वहीं वह कुंआ बिना शिकवे शिकायत के जर्जर होने के बाबजूद अपने मीठे जल से लोगों की प्यास बुझा रहा है।

    कुछ साल पहले तक ग्रामीण इलाकों में पानी का मुख्य स्रोत कुंए ही हुआ करतें थे। पीने के साथ-साथ सिंचाई का मुख्य जरिया भी थी। वहीं हमारी संस्कृति और परंपराओं में भी कुएं की बड़ी महत्ता थी। कई मांगलिक कार्यक्रम भी कुएं के पास होते थे।

    लेकिन हर साल भूजल का गिरना और बदलते परिवेश के कारण कुएं अंतिम सांस गिन रहे हैं। कहीं आधुनिकता की चकाचौंध में कुंए खो गये,तो कहीं अतिक्रमण ने लील लिया। सरकार की नल जल योजना का असर भी कुंओ के अस्तित्व पर पड़ा है।

    आज की युवा पीढ़ी कुंए से बेखबर है। बिहार सरकार एक तरफ जल जीवन हरियाली मिशन के तहत बचे कुंओ का जीर्णोद्धार करा रही है तो वहीं आज भी कुछ कुंए अपनी बदहाली की गाथा कह रही है।

    चंडी प्रखंड