“नालंदा जिले के इस्लामपुर में भू माफियाओं ने मुहाने नदी की सात एकड़ 78 डिसमिल भूमि कब्जा कर बड़े-बड़े अपार्टमेंट, मार्केट काम्प्लेक्स स्कूल व घर बना लिए हैं। जब भू माफियाओं की कारगुजारियों का आभास हुआ तो कुछ जागरूक लोगों ने मुहाने बचाओ संघर्ष समिति का गठन कर नदी को अतिक्रमण से बचाने के लिए आगे आए, लेकिन वे बिहार सरकार के भूमि सुधार एवं राजस्व विभाग और जिला प्रशासन एक-दूसरे को पत्राचार करने में ही उलझते दिखते रहे। हालत यह हो गई है कि वर्तमान में नदी की अब एक धूर जमीन भी नहीं बची है….
इस्लामपुर (नालंदा दर्पण)। किसी ने सच ही कहा है कि समंदर न सही पर एक नदी तो होनी चाहिए, तेरे शहर में जिंदगी कहीं तो होनी चाहिए। किसी शहर की जान नदी होती है, पहचान नदी होती है। लेकिन इस्लामपुर के लोगों के पास अब ऐसा कुछ नहीं है कि लोग अपने शहर पर गर्व कर सके।
कभी इस्लामपुर के लिए मुहाने नदी जान हुआ करती थी। इसी नदी के बीचोबीच में बसा एक शहर, जिसका सीना चीर कर मुहाने नदी बहा करती थी। जो किसानों के लिए सिंचाई का साधन हुआ करती थी। मवेशी अपनी प्यास बुझाते थे। बच्चे इस नदी में तैराकी सीखते थे। बड़े बुजुर्गो के जेहन में नदी में बाढ़ की यादें अब भी जीवित है।
शहर के पास अब बहुत कुछ है। विकास की अंधाधुंध बयार में शहर में बहुत कुछ बदल गया है। लेकिन शहर की जीवन रेखा मुहाने नदी कहीं खो गई। शहर के लोगों के लिए मुहाने नदी को लेकर कोई चिंता नहीं है।
शहर के लोग मुहाने नदी से उदासीन हुए तो भू-माफियाओ की नजर मुहाने नदी पर गड़ गई। कभी किसानों के लिए वरदान मुहाने नदी भू माफियाओं के लिए चांदी बनकर रह गई। अतिक्रमणकारियों ने मुहाने नदी का अस्तित्व ही मिटाकर रख दिया। कभी विशाल नदी हुआ करती थी जो आज नाले में सिकुड़ गई है।
मुहाने नदी जहानाबाद थाना हुलसगंज के मोहद्दीपुर गांव से इस्लामपुर होते हुए एकंगरसराय तक बहती थी। लगभग 21 किलोमीटर क्षेत्र में फैली यह नदी स्थानीय लोगों के जलस्त्रोत के रूप में भी काम आती थी।
नदी के किनारे वाले भूमि स्वामियों द्वारा नदी में पिलर डाल कर भवन का निर्माण किया गया है। घरों का गंदा जल भी नदी में बहाया जा रहा है। इससे मुहाने नदी के अस्तित्व लगभग खत्म होने को है।
लोग बताते हैं कि पहले यह नदी काफी चौड़ी हुआ करती थी। बाजार में नदी के उपर सात पाए का एक पुल अंग्रेजो के द्वारा बनाया गया था। लेकिन लोगों ने नदी में कुड़ा फेक-फेक कर पांच पाये बंद कर दिए। पुल का मुंह पूरी तरह बंद हो चुका है। नदी में बड़े-बड़े घास,पेड़ जंगल की तरह उग आया है। पिछले कुछ साल से नदी सूखी है। कहने को सावन खत्म होने वाला है, लेकिन नदी में एक बूंद पानी तक नही है।
जिस नदी में पूरे साल पानी रहा करती थी, उस नदी में अब उस नदी में एक बूंद पानी तक नही है । मुहाने नदी का अतिक्रमण नदी के किनारे बसे लोगों के द्वारा किया गया है। नदी के किनारे बसे लोग नदियों में मजबूत पीलर का निर्माण कर उस पर घर तक बना लिए है। एक दूसरे को देखकर लोग लगातार नदी में पीलर दे रहे हैं। जबकि प्रशासनिक अधिकारियों के द्वारा इस दिशा में कोई पहल नहीं की जा रही है। आलम यह है कि मुहाने नदी अब शहरों के बीच से गुजरने वाली मुख्य नाला जैसी दिखती है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि 1972 में पहली बार नदी की जमीन पर पटना बस पड़ाव के पास अतिक्रमण शुरू हुआ था। इसे लेकर भू माफियाओं के बीच वर्चस्व की लड़ाई भी शुरू हो गई। दो पक्षों में नदी की जमीन पर अतिक्रमण को लेकर कई बार गोलीबारी भी हुई।
नदी को अतिक्रमित कर मिट्टी भरने का काम भू माफियाओं ने शुरू कर दिया, लेकिन यह इस्लामपुर बाजार के आसपास तक ही सिमटा रहा। माफियाओं ने पहले भूमि को सार्वजनिक काम में इस्तेमाल करने के नाम पर कब्जा करना शुरू किया। जमीन पर भू माफिया ही नहीं, नगर पंचायत भी दिलचस्पी लेने लगे।
नतीजा यह हुआ कि करीब 2000 में एक सवर्जनिक मार्केट के लिए नगर पंचायत ने करीब तीन एकड़ भूमि को आवंटित कर दिया। नदी की भूमि पर कई अपार्टमेंट और मार्केट काम्प्लेक्स बना दिए गए हैं। जिला प्रशासन तब सक्रिय हुआ, जब हाईकोर्ट में दायर एक याचिका के आलोक में 2016 में भूमि सुधार एवं राजस्व विभाग ने डीएम को अतिक्रमण हटाने को कहा।
डीएम ने डीसीएलआर और सीओ को भूमि की मापी कर अद्यतन रिपोर्ट मांगी। मामला अभी भी फाइलों में लटका है। अब पूरी तरह से नदी का अस्तित्व समाप्त हो चुका है। सात एकड़ 78 डिसमिल आम गैरमजरूआ भूमि पर जिला प्रशासन का नहीं, बल्कि माफियाओं का कब्जा हो चुका है, जिन्होंने अपने हिसाब से लोगों को भूमि बेच दी है। बताया जाता है कि लगभग डेढ़ सौ मकान नदी की जमीन पर अतिक्रमण कर प्रशासन को मुंह चिढ़ाता सीना तान कर खड़ा है।
इस्लामपुर में मुहाने नदी के अतिक्रमण का असर उन प्रखंडों में भी पड़ा है जहां -जहां से मुहाने नदी गुजरी है। चाहें एकंगरसराय हो या फिर चंडी मुहाने नदी में अभी तक पानी की गुंजाइश नहीं दिख रही है। जिस कारण सिंचाई ठप्प है।
पिछले साल नालंदा डीएम शशांक शुभंकर ने इस्लामपुर मुहाने नदी का मुआयना किया था। नदी के आसपास अतिक्रमण कर बसे लोगों के बारे में उन्होंने पूरी जानकारी ली थी। चूंकि मुहाने नदी की उड़ाही होनी थी। लेकिन शहर के दोनों किनारों पर लगभग 700 मीटर तक नदी का अतिक्रमण कर लिए जाने की वजह से नदी की उड़ाही में दिक्कत आ रही थी। इसी परेशानी को दूर करने एवं उसका जायजा के लिए डीएम गये हुए थे।
हालांकि उन्होंने नदी के आसपास अतिक्रमण कर मकान निर्माण करा चुके लोगों को हटाने की बात कहीं थी। उन्होंने नगर विकास विभाग को इस संबंध में पत्र लिखे जाने की बात भी कहीं थी। डीएम ने मुहाने नदी पर अतिक्रमण कर मकान बनाने वालों को चेतावनी देते हुए कहा था कि वे लोग जमीन खाली कर दें नहीं तो प्रशासन अतिक्रमण हटाने का काम करेगी।
लेकिन अब तक अतिक्रमण हटाए जाने की कोई विभागीय कार्रवाई नहीं हो सकी है। जिससे अतिक्रमणकारियों के हौसले बुलंद हैं। किसी कवि ने शायद नदियों के अस्तित्व को देखकर ही यह सटीक पंक्ति लिखी है…“नदी के किनारे नगर बसते हैं, नगर के बसने के बाद नगर के किनारे से नदी बहती है”।
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