“सरस्वती नदी के जीणोंद्धार, सरस्वती कुंड के निर्माण और सौन्दर्यीकरण में बड़े पैमाने पर वित्तीय अनियमितता हुई है। इसीलिए सरस्वती कुंड का निर्माण सार्थक नहीं हो सका है। सरस्वती नदी के तट पर देवाधिदेव महादेव की प्रतिमा स्थापित करने पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। सरस्वती नदी के तट पर प्रतिमा स्थापित करना ही था तो विद्यादयिनी माँ सरस्वती की प्रतिमा स्थापित होनी चाहिये थी…
नालंदा दर्पण डेस्क। विश्व प्रसिद्ध राजकीय राजगीर मलमास मेला के दौरान जिस सरस्वती नदी का जीर्णोद्धार एक करोड़ पैसठ लाख की लागत से की गयी है। वह मलमास मेला और श्रावणी मेला में स्नान करने लायक तक नहीं रही है। यह मैली हो गयी है। इसके पानी कोयला से भी अधिक काला हो गया है। सरस्वती नदी को सरस्वती कुंड बनाने के सपने भी बिखर गये हैं। इस कुंड में प्रतिमा विसर्जन का काम भी होने लग है।
लोगों की माने तो कुंड क्षेत्र में अनेकों होटल, दुकान और प्रतिष्ठानें हैं। उसके नालियों और शौचालय के पानी नाले में बहाये जाते हैं। उन नालों का पानी सरस्वती नदी में गिराया जाता है। सरस्वती नदी धार्मिक नदी है। यह पवित्र और मोक्षदयिनी मानी जाती है। राजगीर के आसपास के किसानों के लिए यह जीवन रेखा मानी जाती रही है। लेकिन सरस्वती नदी की स्थिति देख यहां के नागरिक अचंभित हैं।
आश्चर्य है कि जिस नदी के जीणेंद्धार और सौंदर्यीकरण पर सरकार द्वार मलमास मेला के पहले एक करोड़ 65 लाख रुपये खर्च किये गये हैं। वह मेला के दौरान ही अनुपयोगी बन गया। ब्रह्मकुंड के पास सरस्वती के दक्षिणी और उत्तरी दीवार की लंबाई करीब दो-दाई सौ फिट है। मोटी राशि खर्च के बाद भी इस नदी के दोनों दीवारों के बीच से नदी के मिट्टी की उड़ाही नहीं करायी गयी है।
इतना ही नहीं सरस्वती नदी के दक्षिणी पुल के नीचे पीसीसी ढ़लाई की गयी है। यह बिहार सरकार, खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुकूल नहीं है। नदी से बनाई गई सरस्वती कुंड की तरह पांच झरने लगाये गये हैं।
उन झरनों में कुछ दिनों तक काशी धारा कुंड और बॉगा कुंड के गंदे जल को प्रवाहित करा कर तीर्थयात्रियों को भ्रमित किया गया कि अन्य कुंडों की तरह यह भी प्राकृतिक और पहाड़ का पानी है। तीर्थं यात्री सरस्वती कुंड में स्नान करने के साथ प्राकृतिक पानी समझ कर आचमन भी करने लगे थे।
फिलहाल सस्स्वती कुंड की सभी धाराएं बन्द हैं। कुंड क्षेत्र के लोगों की माने तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा सस्स्वती नदी कुंड के जीर्णोद्धार और सौंदर्यीकरण के उद्घाटन (19 जुलाई 23) के एक पखवाड़े के भीतर ही यह तीर्थयात्रियों के स्नान के लायक नहीं रह गया है। इसके पानी काले हो गये हैं।
राजकीय मलमास मेला में पहला शाही स्नान इसी सरस्वती नदी में करने की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है। लेकिन इस बार एक भी शाही स्नान के दिन किसी भी अखाड़े के साधु संत महंत द्वारा सरस्वती नदी में प्रथम स्नान नहीं किया है।
ऐसे में सबाल उठना लाजमि है कि आखिर कौन सी बात है, जिसके कारण साधु संत महंत द्वारा पवित्र सरस्वती में स्नान नहीं कर परंपरा को तोड़ा गया है, इसकी पड़ताल समाज के प्रबुद्ध लोगों, अध्यत्मिक संस्थाओं और जिला प्रशासन को करने की निहायत जरूरत है। किसके झांसे में आने के कारण एक करोड़ 65 लाख खर्च होने के बाद भी एक पखवाड़े में ही यह अकार्यरत कैसे हो गया? इसकी भी जांच अपेक्षित प्रतीत होता है।
लोगों का कहना है कि किसके कहने पर और किस पदाधिकारी की स्वीकृति से जल संसाधन विभाग द्वारा सरस्वती नदी को सरस्वती कुंड बनाया गया है। किसके आदेश पर नदी के कुछ भाग की ढलाई की गयी है। जिला प्रशासन द्वारी इन मुद्दों की जांच करायी जाती है या नहीं। यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
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