“हिन्दी सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने अपनी प्रसिद्ध कहानी ‘नमक का दारोगा’ में लिखा था कि मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चांद होता है……लेकिन जरा कल्पना कीजिए कि किसी चौकीदार को एक साल से वेतन ही न मिले तो उसका जीवन आमावस्या से भी कितनी भयावह होगी……………..”
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क। जी हां, हम बात कर रहे हैं सीएम नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा के बेन थाना के अधीन कार्यरत 3 चौकीदार की। इन्हें पिछले एक साल से वेतन नहीं मिला है और इस दशहरा जैसे पर्व के मौके पर भी वे वेतन से वंचित रह गए हैं। जबकि सीएम नीतीश कुमार ने खुद निर्देश दे रखी है कि दशहरा के पहले सभी कर्मचारियों का वेतन भुगतान कर दिया जाए।
चौकीदारों की ऐसी पीड़ा में बेन सीओ और उनके नाजिर की लापरवाही या कोई स्वार्थ साफ नजर आती है। एक तो उन्होंने एक साल तक चौकीदारों का वेतन प्रक्रिया बाधित रखी और जब इधर दशहरा के मौके पर वेतन भुगतान करवाने की बात आई तो उन्होंने आश्वासन के विपरित मानसिकता का परिचय देते हुए बिलंब से विपत्र भेजी।
इधर बिहार शरीफ (नालंदा) ट्रेजरी ऑफिसर ने यह कहते हुए वेतन भुगतान करने से इंकार कर दिया है कि छुट्टी हो जाने के कारण कार्यालय बंद है। हालांकि कल उन्होंने लिंक फेल होने का बहाना बनाया था।
चौकीदार संजय कुमार (8/1) बताता है कि उसके घर की माली हालत काफी खराब है। पूरा परिवार कर्जा में डूब चुका है। फीस जमा नहीं करने के कारण उसके बच्चे को स्कूल वाले निकाल चुके हैं। जी करता है कि आत्महत्या कर लें। ऐसी नौकरी ही किस काम की, जो जीवन को ही जलील कर दे।
कमोवेश यही दयनीय हालत चौकीदार शंभु कुमार (10/3) और चौकीदार उपेन्द्र कुमार (8/2) की है।
ऐसे में सवाल उठना लाजमि है कि पर्व-त्योहार और घर-परिवार सिर्फ बेन सीओ या ट्रेजरी अफसर सरीखे लोगों के लिए ही होती है। इनमें इतनी मानवता भी नहीं बची है कि उनकी जेहन में निरीह चौकीदार की पीड़ा घुसे।
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