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    Tuesday, March 19, 2024
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      जहाँ कश्मीर के अंतिम शासक की कब्र पर आज चर रही गाय-बकरियां

      नालंदा दर्पण डेस्क। ‘अजीम ओ शान शहंशाह, हमेशा हमेशा सलामत रहे, हिंदुस्तान तेरी जान, तू जान-ए-हिंदुस्तान’। हिंदुस्तान के शहंशाहों की शान ओ शौकत के क्या कहने,एक दौर हुआ करता था, जब उनके जलबे हुआ करते थे। रंगीन महफिलें जमा करती थीं। इतिहास से जुड़े लोगों, शासकों के जन्म और मृत्यु की तिथियों की जगमगाहट और देश भर में फैले स्मारकों के बीच में भी कुछ ऐसे बादशाह भी रहें हैं, जिनकी खामोश दास्तां है।

      ऐसी ही एक खामोश दास्तां है कश्मीर के अंतिम शासक रहे सुल्तान युसूफ चक की। कश्मीर से हजारों किलोमीटर दूर नालंदा के इस्लामपुर के बेशवक गांव में वें बेनूर कब्र में खामोशी से दफन पड़ें हुए हैं। उनकी कब्र पर गुब्बार ही गुब्बार है। उनका अंजूमन विरान है।

      कोई विश्वास ही नहीं कर सकता है कि 1578 ईस्वी से 1586 ईस्वी तक कश्मीर पर हुकूमत करने वाले युसूफ़ शाह की यह क़ब्र है। इस क़ब्र को देखने से प्रतीत होता है कि एक बादशाह राजमहल की चकाचौंध से दूर सुकून फरमा रहा है। अपनी जिंदगी की बदहाली के किस्से बयां कर रहा है।

      कहां वह कश्मीर की जन्नत और कहां यह वीराना। जहां उस अंजूमन में कोई सुल्तान को सलाम बजाने नहीं आता। बदरंग हो चुकी चाहर दीवारी से घिरी इस क़ब्र के आसपास  उग आई हरी घास, चरती गाय और बकरियां इसकी बदहाली बयान कर रही हैं। जिसे लोग चरागाह समझ अपने मवेशी चराते हैं।

      नालंदा जिला का इस्लामपुर जिसे मुगल काल में बसाया गया,मुगल स्थापत्य कला का अनेक उत्कृष्ट नमूने,भवन, इमारतें दिख जाती है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में इसका प्राचीन नाम ईशरामपुर था।

      बाद में अंग्रेजी हुकूमत में इसका नाम इस्लामपुर पड़ गया। इस्लामपुर को ‘छोटी अयोध्या’ भी कहा जाता है। अयोध्या में लक्ष्मण किला के संस्थापक युगलायन शरणजी महाराज का जन्म इस्लामपुर में ही हुआ था।

      मुगल काल में इस्लामपुर में कश्मीर चक, हैदर चक जैसे मुगलकालीन गांव ‌भी है। कश्मीर के अंतिम चक शासक युसूफ शाह चक और उनके पुत्र हैदरचक का इतिहास दफन हैं।

      नालंदा के सांसद कौशलेंद्र कुमार का पैतृक गांव हैदर चक है। यह वहीं हैदर चक है, जिसके पिता युसूफ शाह चक की कब्र बेशवक में है।

      इस्लामपुर का धार्मिक, ऐतिहासिक और मुगलकालीन इतिहास रहा है। इस्लामपुर में हथिया बोर तालाब है। जो काफी प्रसिद्ध है। 150 वर्ष पूर्व् स्व सृजन चौधरी जमींदर के द्घारा हाथियो को नहाने के लिए व्यवस्था किया गया था।

      पक्की तालाब के अंदर से सुरंग की व्यवस्था किया गया था। जिससे पानी होते हुए हाथिया वोर तालाब का पानी मुहाने नदी निकलता था। बरसात के समय इसी माध्यम से पानी को व्यवस्थित किया जाता था। जल को व्यवस्थित करने का यह एक नयाब नमूना था।

      इसी इस्लामपुर में दिल्ली दरबार  है। इस नगर के जमींदार चौधरी जहुर शाह ने लगभग 150 वर्ष पूर्व दिल्ली दरबार की नकल पर वौलीबाग में दिल्ली दरबार तथा लखनउ की तर्ज पर दो मंजिला इमारत बनवाया था।

      जिसमें 52 कोठरी, 53 दरबाजा, धूप घडी़, भूलबुलैया, नाचघर, तालाब आदि निर्मित था। महल के उपर एक गुम्बद सुरक्षा प्रहरी के लिए बनवाया था। जो अदभुत तरीके से बना था।

      इनके अलावे इस नगर के वूढानगर सूर्य मंदिर व सरोवर एंव माँ जगदम्बा मंदिर, आयोध्या ठाकुरबाड़ी, पुरानी ठाकुरबाड़ी, पक्की तालाब, भारत माता, माँ काली, वग्गा धर्मशाला, हिंदुओं का शान समेटे बैठा है। वहीं थाना परिसर स्थित हजरत दाता लोदी शाह दिबान रहमतुलैह अलैह की मजार आस्था का केंद्र बना है।

      इसी इस्लामपुर में थोड़ी दूर पर एक प्राचीन गांव है ‘बेशवक’!  इसी बेशवक में कभी कश्मीर पर हुकूमत करने वाले ‘चक’ वंश‌ के आखिरी बादशाह युसूफ शाह की कब्र है। युसूफ शाह 1578 से लेकर 1586 तक कश्मीर के शासक थे।

      मुगल सम्राट अकबर ने जब कश्मीर में अपनी सम्राज्यवादी नीति अपनाई तो युसूफ शाह को अपने शासन से हाथ धोना पड़ा। 14 फरवरी,1586 को अकबर ने उन्हें कैद कर लिया। वे लगभग ढ़ाई साल तक अकबर के बंदी बने रहे।

      बाद में अकबर ने उनपर रहम दिखाया। अकबर ने अपने सेनापति मानसिंह के सहायक के तौर पर युसूफ़ शाह चक को 500 मनसब (एक तरह का ओहदा) देकर नालंदा के बेशवक परगना में निर्वासित करके भेज दिया। जहां दिसंबर, 1595 में उनकी मौत हो गई।

      कहां जाता है कि युसूफ शाह का जि़क्र ‘अकबरनामा’, ‘आइन-ए-अकबरी’ के अलावा ‘बहारिस्तान-ए-शाही’ में भी मिलता है। “बहारिस्तान-ए-शाही की पांडुलिपि फारसी में है। जिसमें मध्ययुगीन कश्मीर में चल रही राजनैतिक उठापटक की जानकारी मिलती है।

      ‘बहारिस्तान-ए-शाही’ के मुताबिक़ शासन संभालने के बाद युसूफ़ चक अपने ही सामंतों से बहुत परेशान रहा करते थें।उनके खिलाफ बगाबत चल रही थी।इसी बगाबत को कुचलने के लिए उन्होंने 1580 ईस्वी में  आगरा जाकर अकबर से मदद मांगी थी।

      अकबर ने राजा मान सिंह को युसूफ़ चक की मदद के लिए भेजा। लेकिन मुग़ल सेना के कश्मीर पहुंचने से पहले ही युसूफ़ चक और विद्रोही सामंत अब्दाल भट्ट के बीच समझौता हो गया। मुगल सेना को बैरंग कश्मीर से लौटना पड़ा।

      मुगल सम्राट अकबर को यह काफी नागवार लगा। 1586 में अकबर के आदेश पर राजा भगवान दास ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। थोड़े विरोध के बाद भगवान दास और युसूफ़ शाह चक के बीच एक समझौता हुआ।

      लेकिन लाहौर में जब अकबर के सामने युसूफ़ शाह को पेश किया गया तो बादशाह ने समझौता मानने से इनकार कर दिया। इसके बाद अकबर ने युसूफ़ शाह चक को क़ैद किया और बाद में निर्वासित करके बिहार के इस स्थान पर भेज दिया।

      कहा‌ जाता है कि अकबर की तरफ़ से लड़ते हुए, उड़ीसा पर फ़तह के बाद युसूफ़ शाह चक की तबीयत ख़राब हुई और 22 दिसम्बर,1595 को उड़ीसा के पंचहजारी में  उनकी मृत्यु हो गई।

      उनकी मृत्यु के बाद उनके शव को इस्लामपुर के बेशवक में लाने में दो महीने का वक्त लग गया था। इसी बेशवक‌ गांव में उन्हें दफन किया गया। उनकी क़ब्र के पास बहुत बड़े बग़ीचे का निर्माण किया गया।

      इसी बेशवक के पड़ोस में कश्मीरी चक है, जहां चक वंश से जुड़े लोग रहते हैं, जो या तो युसूफ शाह के साथ आएं वंशज मानते जाते हैं।

      पी एनके बमज़ई की किताब ‘ए हिस्ट्री ऑफ़ कश्मीर’, प्रोफ़ेसर मोहिबुल हसन की किताब ‘कश्मीर अंडर सुल्तान’ और ‘बहारिस्तान-ए-शाही’ में युसूफ़ शाह चक के व्यक्तित्व का ज़िक्र मिलता है।

      इन किताबों के मुताबिक़ युसूफ़ शाह बहुत शानदार व्यक्तित्व के मालिक थे। उन्हें संगीत कला का ज्ञान था। वे हिन्दी, कश्मीरी और फारसी कविता के अच्छे जानकार थे। यहां तक कि उनकी रूचि खेलों में भी थी।वे सभी धर्मों को सम्मान देते थे।

      बहुत सारे लोगों का मानना है कि युसूफ शाह के क़ब्र के पास उनकी मां को छोड़कर पत्नी हब्बा खातून, भाई और बेटे की भी क़ब्र है। लेकिन इतिहासकार इस बात को सिरे से खारिज करते हैं।

      ऐसा कहा जाता है कि निर्वासित जीवन जी रहे युसूफ़ शाह चक के पास हब्बा ख़ातून बेशवक आई थीं। लेकिन उनकी कैद के बाद  हब्बा ख़ातून ने कश्मीर में ही अपना शेष जीवन बिताया था।

      जम्मू और कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री शेख़ अब्दुल्लाह 19 जनवरी, 1977 को राज्य की कल्चरल एकैडमी की एक टीम के साथ बेशवक आए थे। जहां उनकी मजार पर चादरपोशी की थी।

      कश्मीरी चक के मोतवल्ली मो यासिर राशिद खान ने  बिहार राज्य सुन्नी वक्फ़ बोर्ड में कश्मीरी चक और बेशवक की ज़मीन को डॉक्टर अब्दुल रशीद ख़ान ने रजिस्टर कराया था।बेशवक में लगभग पांच एकड़ तथा कश्मीरी चक में एक एकड़ 37डिसमिल जमीन मस्जिद की है।

      यासीर रशीद ख़ान उन्ही के पोते हैं और उनका दावा है कि वो युसूफ़ चक के वंशज है। यासीर रशीद ख़ान लगातार इस ऐतिहासिक धरोहर को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं।

      कश्मीर चक के थोड़ी ही दूर पर हैदरचक है। हैदर चक युसूफ़ चक के समय का ही कश्मीरी सामंत थे। जिनके बारे में कहा जाता है कि हैदर चक युसूफ शाह का बेटा था।

      इस्लामपुर के बेशवक का वह अतीत जो आज वीरान है, पूर्वजों ने अपने इतिहास को बिसार दिया है। यह उस दौर की आखिरी सिसकी है। जिसकी आवाज न सरकार के कानों में जा रही है और न ‌ही पुरातत्व विभाग के पास।

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