राजगीर (नालंदा दर्पण)। अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक नगर राजगीर प्रक्षेत्र में गैर मजरूआ मालिक ठेकेदार जमीन की खरीददारी करने और दाखिल खारिज बाद जमाबंदी कराने वाले 85 लोगों की जमाबंदी रद्द की जायेगी। गलत ढंग से की गयी खरीद बिक्री और जमाबंदी को रद्द करने की अनुशंसा तत्कालीन राजगीर अंचलाधिकारी संतोष कुमार चौधरी द्वारा नालंदा अपर समाहर्ता से अगस्त, 2021 में ही किया गया है। तीन साल से अधिक समय से यह मामला अपर समाहत नालंदा के पास लंबित है।
हालांकि राजगीर अंचलाधिकारी के सिफारिश के बाद उक्त जमीन के जमाबंदीदारों में हड़कंप मच गया है। इसमें तत्कालीन राजस्व कर्मचारी और राजगीर अंचलाधिकारी की संलिप्तता सामने आयी है। बावजूद अपर समाहर्ता द्वारा राजगीर अंचलाधिकारी के प्रतिवेदन के तीन साल बाद भी अबतक सभी जमाबंदी को रद्द नहीं किया गया है।
सर्वे खतियान में मौजा राजगीर, तौजी संख्या 12569 थाना – 485, खाता संख्या – 697, खेसरा संख्या- 7665, रकवा 17 एकड़ 10 डीसमील, किस्म गैरमजरूआ मालिक ठीकेदार के सभी 85 खरीददारों के जमाबंदी को रद्द करने की अनुशंसा की गयी है। गैरमजरूआ मालिक ठेकेदार की इस जमीन को भूमाफिया द्वारा रैयती बताकर कुल 108 लोगों को बेच दिया गया है। राजस्व कर्मचारी के गलत प्रतिवेदन के आधार पर अलग अलग तारीखों में कुल 85 खरीददारों के जमीन की जमाबंदी भी कर दी गयी है।
यही नहीं, खरीददारों द्वारा प्रश्नगत जमीन को रैयती होने का दावा किया गया है। मूलत वसीका मुकरीर निबंधित दवामी पटटा बंदोवस्ती संख्या- 3320, दिनांक- 02.07.1931, वसीका संख्या- 1159 दिनांक 12.04.1937 एवं निबंधित केवाला वैलाकलामी वसीका सं.-1919 दिनांक 04.03.1948 के आधार पर हैं। यह तीनों बसीका जमीन्दारी हक से संबंधित है। किसी रैयत के पक्ष में तामिल नहीं है। इन तीनों वसीका में जंगल, झाड वो पहाड भी दर्ज है।
लैण्ड रिफम्स एक्ट की धारा-3 (ए) के अनुसार यदि कोई भूतपूर्व मालिक गैरमजरूआ मालिक जमीन की बन्दोवस्ती नहीं करते हैं और 31 दिसम्बर 1955 तक मालिक के कब्जा में थी। वह बिहार सरकार में भेष्ट कर दी जायेगी। नियमतः गैरमजरूआ मालिक जमीन का भूतपूर्व मध्यवर्ती द्वारा दिनांक 01.01.1946 पूर्व में की गई बंदोवस्ती हीं मान्य है।
राजगीर अंचलाधिकारी द्वारा अपर समाहर्ता को भेजे गये प्रतिवेदन में कहा गया है कि प्रस्तुत मामले में प्रश्नगत जमीन के साथ कुल 724 एकड़ 18 डीसमील का मालकाना हक वसीका संख्या- 1919, दिनांक 04.03.1948 से चेला राम वो पारस राम वो जयराम दास सभी पिता पहलु मल्ल को प्राप्त हुई है। वैसे में उनके द्वारा दिनांक 01.01.1946 के पूर्व बंदोवस्ती का कोई प्रश्न ही नहीं उठता है।
पारस राम, पिता पहलु मल्ल द्वारा सबसे पहले दिनांक- 07.10.1964 को प्रगास सिंह को प्रश्नगत जमीन की बिक्री की गयी है। उसके उत्तरोर क्रेता आवेदक संख्या- 01 ममता रानी पति शैलेन्द्र नारायण देवरिया थाना भगवान गंज पटना हैं।
इसी प्रकार पारस राम द्वारा सर्वप्रथम वर्ष 1953 में प्रश्नगत जमीन नुनुलाल सिंह वगैरह को यह जमीन बिक्री की गयी है, जिसके उत्तरोर क्रेता आवेदक संख्या- 02 सर्वेश कुमार वो उमेश कुमार पिता मदन मोहन प्रसाद, मोहनपुर नालंदा है।
इसी प्रकार जयराम दास ने सर्वप्रथम दिनांक 07.11.1964 को गुम्नी रजवार को जमीन बेचा गया है, जिसके उत्तरोर क्रेता आवेदिका संख्या- 03 विनोद कुमार पिता चन्द्रिका सिंह, बिंडीडीह, सिलाव हैं।
राजगीर अंचलाधिकारी ने कहा है कि इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रश्नगत जमीन की बंदोवस्ती चेला राम वो जयराम दास वो पारस राम द्वारा किसी रैयत को नहीं की गयी है। नियमत लैण्ड रिफम्स एक्ट 1950 की धारा 3 एवं 3 (ए) के तहत प्रश्नगत जमीन सरकार में निहित हो जाने एवं जमीन सरकारी श्रेणी की हो जाने के बावजूद प्रश्नगत जमीन का अंतरण और निबंधन किया गया है, जो वैध नहीं माना जा सकता है। नियमत प्रश्नगत जमीन रैवती जमीन की श्रेणी का नहीं है। इस प्रकार के अवैध हस्तांतरण और निबंधन को नहीं रोका जाता है, तो सरकारी जमीन के संरक्षण पर प्रतिकुल प्रभाव पड़ेगा।
तत्कालीन राजगीर अंचलाधिकारी संतोष कुमार चौधरी ने रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा है कि उपर्युक्त विशलेषण से संतुष्ट होकर में इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि मौजा राजगीर, थाना 485, खाता-697, खेसरा-7665 खतियानी रकवा-17.10 एकड़ में सन्नहित जमीन रैयती नहीं मानी जा सकती है। अधोहस्ताक्षरी द्वारा उपर्युक्त वर्णित जमीन में कुल 85 व्यक्तियों की जमाबंदी जांचोपरान्त पाई गई है, जो समान प्रकति के हैं। सभी जमाबंदी रदद करने योग्य है।
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