नालंदा दर्पण डेस्क (मुकेश भारतीय)। दुनिया भर में महाबोधि मंदिर का ऐतिहासिक परिचय काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह बोध गया में स्थित है, जो बिहार राज्य का प्रमुख धार्मिक स्थल माना जाता है। यह स्थान विशेष रूप से बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यहाँ पर ही महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। इस कारण से इस स्थल का नाम ‘महाबोधि’ पड़ा। जिसका अर्थ है ‘महान ज्ञान।’
महाबोधि मंदिर का निर्माण ईसा पूर्व 7वीं शताब्दी में मौर्य सम्राट अशोक के द्वारा कराया गया था। सम्राट अशोक को बौद्ध धर्म में बहुत आस्था थी और उन्होंने इसे प्रोत्साहित करने के लिए कई स्तूपों और विहारों का निर्माण कराया। महाबोधि मंदिर की स्थापना बौद्ध धर्म की पवित्रता और महात्मा बुद्ध के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं को संजोए रखने के लिए की गई थी।
ऐतिहासिक शिलालेख और पुरातात्विक साक्ष्यों के अनुसार, महाबोधि मंदिर कई बार पुनर्निर्माण और पुनःस्थापना के दौर से गुजरा है। इसे गोली-पारा शासकों द्वारा 5वीं और 6वीं शताब्दी में पुनःनिर्मित किया गया था। आधुनिक इतिहास में भी विभिन्न देशों और निजी संस्थाओं ने महाबोधि मंदिर की देखभाल और मरम्मत के कार्यों में योगदान दिया है।
बोध गया का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी अत्यंत विशेष है। यहाँ स्थित महाबोधि वृक्ष वह स्थान है, जहां सिद्धार्थ गौतम को बोधि प्राप्त हुई थी और वे महात्मा बुद्ध कहलाए। बोध गया न केवल बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए, बल्कि दुनिया भर के धार्मिक और आध्यात्मिक साधकों के लिए भी एक प्रमुख स्थल है। यहाँ पर हर वर्ष लाखों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं, जो इस पवित्र स्थल की सांस्कृतिक विरासत और अध्यात्मिक शांति का अनुभव करते हैं।
महान सम्राट अशोक का नाम भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाने के बाद न केवल अपने जीवन में बड़ा परिवर्तन किया, बल्कि बौद्ध धर्म को संपूर्ण भारत में फैलाने के उद्देश्य से अनेक धार्मिक स्थलों का निर्माण करवाया। बोध गया में महाबोधि मंदिर का निर्माण अशोक की तपस्या और मान्यताओं का प्रमुख उदाहरण है।
बोध गया, जहां भगवान बुद्ध ने बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया था, सम्राट अशोक के समय में महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल बन गया था। अशोक ने इस स्थल की महत्ता को समझते हुए यहां एक भव्य मंदिर के निर्माण का निर्णय लिया। यह मंदिर संपूर्ण बौद्ध धर्मावलम्बियों के लिए एक पवित्र स्थल बना।
अशोक स्वयं एक महान योद्धा और आदर्श शासक थे, लेकिन कलिंग युद्ध के बाद उन्हें युद्ध के परिणामस्वरूप हुए विनाश और हृदयविदारक दृश्य का सामना करना पड़ा। इससे प्रेरित होकर उन्होंने बौद्ध धर्म की शरण ली और ‘धम्म’ का मार्ग अपनाया। अपने शासनकाल में उन्होंने समाज में शांति, अहिंसा और धर्म के प्रचार-प्रसार का व्रत लिया और महाबोधि मंदिर का निर्माण उनके इसी संकल्प का प्रतीक है।
अशोक का उद्देश्य केवल एक धार्मिक स्थल का निर्माण नहीं था, बल्कि उन्होंने इस मंदिर को एक प्रमुख स्थान बनाने का प्रयास किया जहाँ श्रद्धालु आकर भगवान बुद्ध के ज्ञान का अनुसरण कर सकें। उन्होंने बोध गया को विशेष धार्मिक महत्व दिए जाने के लिए यहाँ कई संरचनाओं का निर्माण करवाया।
इस प्रकार महान अशोक का योगदान न केवल बोध गया में महाबोधि मंदिर के निर्माण में था, बल्कि उन्होंने बौद्ध धर्म के प्रचार और प्रसार के द्वारा समाज में शांति और समृद्धि स्थापित करने का प्रयास किया। महाबोधि मंदिर आज भी उनके अद्वितीय कार्य का स्मरण कराता है और बोध गया को एक प्रमुख बौद्ध धर्मस्थल बनाता है।
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