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    Saturday, July 27, 2024
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      नित्य नई जानकारियाँ उगल रही है प्राचीन तेल्हाड़ा विश्वविद्यालय की खुदाई

      नालंदा दर्पण डेस्क। प्राचीन तेल्हाड़ा विश्वविद्यालय परिसर की खुदाई से नित्य नए दुर्लभ अवशेष मिल रहे हैं। नई नई जानकारी भी सामने आ रही है।

      पूर्व में खुदाई से मिले अवशेष से यह स्पष्ट हो चुका है कि यह प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय और विक्रमशिला विश्वविद्यालय से भी प्राचीन है। यह महाविहार पहली शताब्दी में अस्तित्व में था, जबकि नालंदा चौथी और विक्रमशिला सातवीं शताब्दी का है।

      साथ ही प्राचीन टीले की खुदाई से प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय से तेल्हाड़ा विश्वविद्यालय से जुड़ाव का भी पता चला है।

      ताजा खुदाई से निकले अवशेष का सही उम्र पता लगाने के लिए प्रयोगशाला में कार्बन डेटिंग विधि से जांच कराई गई। जिसमें कुछ नई जानकारी मिली है।

      खुदाई के दौरान मिले चार चारकोलों में से एक को लंदन और तीन को लखनऊ की प्रयोगशाला में भेजकर कार्बन डेटिंग करायी गई थी।

      कार्बन डेटिंग की रिपोर्ट से यह स्पष्ट हुआ कि ये अवशेष छठी से बराहवीं शताब्दी के हैं। 26 दिसंबर 2009 को सीएम नीतीश कुमार ने इस विश्वविद्यालय की खुदाई का काम प्रारम्भ किया था।

      बीच में काफी समय तक खुदाई का काम बंद रहा। एक बार फिर से खुदाई का काम जारी है। खुदाई में बुद्ध, तारा, चामुंडा अपरजीतिका, लोहा व तांबा के बेशकीमती बर्तन भी मिले हैं।

      टीले की खुदाई में इतिहास का नया पन्ना प्रतिदिन खुल रहा है। यहां से मिल रहे अभिलेखों को सुरक्षित रखने के लिए म्यूजियम का भी निर्माण कराया जा रहा है।

      सरकार ने पूर्व में ही तेल्हाड़ा पुरातात्विक स्थल को सुरक्षित घोषित कर दिया है। अब यह बड़े पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित होगा। यहां मिले अवशेषों को संग्रहालय में रखा जाएगा।

      क्या है कार्बन डेटिंग विधिः इसमें कार्बन-12 व कार्बन-14 के बीच अनुपात निकाला जाता है। कार्बन-14 कार्बन का रेडियोधर्मी आइसोटोप है, इसका अर्ध आयुकाल 5730 वर्ष का है।

      कार्बन डेटिंग को रेडियो एक्टिव पदार्थों की आयु सीमा निर्धारण करने में प्रयोग किया जाता है। कार्बन काल विधि के माध्यम से तिथि निर्धारण होने पर इतिहास और वैज्ञानिक तथ्यों की जानकारी होने में सहायता मिलती है।

      पूर्व में भी मिल चुके हैं कई अवशेषः चीनी यात्री इत्सिंग ने अपने यात्रा वृतांत में कहा हैं कि यहां तीन टेम्पल थे, मोनास्‍ट्री कॉपर से सजी थी। हवा चलती थी तो यहां टंगी घंटियां बजती थीं।

      पूर्व में हुई खुदाई में तीनों हॉल, घंटियां सैकड़ों सील-सीलिंग, कांस्य मूतियां आदि मिल चुकी हैं। ईंटें जो मिली हैं वह 42 गुना, 32 गुना, 6 से.मी. की हैं।

      तीसरा प्राचीन विश्वविद्यालयः चौथी शताब्दी के नालंदा विश्वविद्यालय और सातवीं से आठवीं सदी के विक्रम शिला विश्वविद्यालय के बाद बिहार में मिला यह तीसरा प्राचीन विश्वविद्यालय है। जो करीब एक किमी में फैला है।

      यह गुप्ताकालीन महाविहार है। इसकी स्थापना पांचवीं सदी में हुई थी। नोबल विजेता अमर्त्य सेन भी प्राप्त पुरावशेषों को देखकर हतप्रभ रह गए थे।

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