राजगीर (सरोज कुमार)। नालंदा स्वास्थ्य विभाग में वेतन और भत्तों के नाम पर की जा रही अवैध निकासी का बड़ा मामला उजागर हुआ है। बिहारशरीफ सदर अस्पताल और राजगीर अनुमंडलीय अस्पताल में तैनात दो लिपिकों द्वारा वर्षों से चल रहे इस घोटाले में करोड़ों रुपये की हेराफेरी की गई। मामले में दोनों लिपिकों पर प्राथमिकी दर्ज कर ली गई है। जबकि एक लिपिक को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है।
बताया जाता है कि स्वास्थ्य विभाग के आंतरिक ऑडिट में इस वित्तीय अनियमितता का खुलासा हुआ। जांच के दौरान पता चला कि राजगीर अनुमंडलीय अस्पताल के लिपिक कोमल कुमार और सदर अस्पताल के लिपिक पंकज कुमार ने मिलकर वेतन और अन्य भत्तों की फर्जी निकासी कर सरकारी खजाने को भारी चूना लगाया।
सिविल सर्जन (सीएस) डॉ. जितेंद्र कुमार सिंह की जांच रिपोर्ट के अनुसार लिपिक कोमल कुमार 2022 से हर महीने वेतन में 5-6 हजार रुपये की अतिरिक्त निकासी कर रहा था। यह राशि अब तक लगभग 1 लाख रुपये तक पहुंच चुकी है। इस मामले में कोमल कुमार को तत्काल निलंबित कर दिया गया है और उससे स्पष्टीकरण मांगा गया है।
जांच में सामने आया कि इस गड़बड़ी का असली मास्टरमाइंड लिपिक पंकज कुमार था। उसने पहले राजगीर में यह खेल शुरू किया और बाद में सदर अस्पताल तथा सरमेरा में भी इसी तरह से फर्जी निकासी को अंजाम दिया। बैंक स्टेटमेंट के अनुसार, 2017 से अब तक पंकज कुमार ने लगभग 9.10 लाख रुपये की अवैध निकासी की।
सूत्रों की मानें तो यह घोटाला कई वर्षों से चल रहा था और इसमें कई उच्च अधिकारियों की संलिप्तता की संभावना जताई जा रही है। पंकज और कोमल के बीच पहले से एक तयशुदा बंटवारा होता था। लेकिन 2022 में जब पंकज का तबादला सरमेरा हुआ, तो कोमल ने अलग से अवैध निकासी शुरू कर दी। मामले की गंभीरता को देखते हुए पूरे जिले में स्वास्थ्य विभाग के वित्तीय रिकॉर्ड की जांच के आदेश दिए गए हैं।
बैंक स्टेटमेंट और वेतन निकासी के रिकॉर्ड को देखते हुए यह आशंका जताई जा रही है कि यह घोटाला सिर्फ दो लिपिकों तक सीमित नहीं है। ट्रेजरी और ड्रॉइंग एंड डिसबर्सिंग ऑफिसर (DDO) की भूमिका भी संदिग्ध लग रही है। अब इस पूरे नेटवर्क की जांच की जा रही है ताकि अन्य दोषियों को भी पकड़ा जा सके।
इसी बीच सदर अस्पताल में पहले से विवादों में रहे उपाधीक्षक कुमकुम प्रसाद का नाम भी चर्चा में आ गया है। उन पर पहले भी एक महिला को एचआईवी पॉजिटिव ब्लड चढ़ाने का आरोप लगा था। लेकिन राजनीतिक संरक्षण के चलते वे वापस पद पर बहाल हो गई थीं। सूत्रों का कहना है कि अस्पताल प्रशासन में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार व्याप्त है और बिना ऊँची पहुंच के कोई भी कार्रवाई आगे नहीं बढ़ पाती।
बहरहाल, स्वास्थ्य विभाग में लगातार हो रहे घोटाले ने प्रशासनिक व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अब देखना यह होगा कि क्या इस बार दोषियों पर सख्त कार्रवाई होगी या फिर हमेशा की तरह यह मामला भी ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा।
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