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बिहारशरीफ सदर अस्पताल, जहाँ मुर्दा से भी वसूला जा रहा रिश्वत !

नालंदा दर्पण डेस्क। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिला नालंदा में लच्चर स्वास्थ्य तंत्र की पोल उस समय खुल गई, जब जब सड़क हादसा में जख्मी हुए एक व्यक्ति की इलाज के दौरान मौत हो जाने के बाद पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए बिहारशरीफ सदर अस्पताल लाया तो शव का पोस्टमार्टम हो जाने के बाद अवैध राशि नहीं देने के कारण उसे सरकारी एंबुलेंस उपलब्ध नहीं कराए गए।

Biharsharif Sadar Hospital where even after death there is no ambulance without bribeनतीजतन पोस्टमार्टम होने के बाद परिजन सामान ढोने वाली गाड़ी से शव का लेकर अपने घर के लिए निकल गए। परिजनों के अनुसार शव को पोस्टमार्टम करने वाला व्यक्ति भी पांच सौ रुपए लेने के बाद शव को सौंपा। एंबुलेंस उपलब्ध कराने एवज में भी पैसे मांगे गए। वहीं, सामान ढोने वाली जिस गाड़ी से शव को लेकर पीड़ित परिजन घर गए, उस गाड़ी पर लगभग आधा दर्जन लोग भी सवार थे।

बता दें कि 27 दिसंबर को सोहसराय थाना क्षेत्र अंतर्गत एक ट्रक ने बाइक सवार को जोरदार टक्कर मार दिया था। उस जख्मी का इलाज किसी निजी क्लीनिक में चल रहा था। लेकिन बीती रात उसकी मौत हो गई। मृतक की पहचान सोहदीह गांव निवासी इंद्रजीत प्रसाद के 35 वर्षीय पुत्र अशोक कुमार के रूप में हुई।

वहीं, इस मामले को लेकर सदर अस्पताल के उपाधीक्षक अशोक कुमार से जब पूछा गया तो उन्होंने कहा कि एक्सीडेंट में मरीज घायल हुआ था, जिसकी इलाज के दौरान मौत हुई है। शव को पोस्टमार्टम कराकर परिजनों को सौंप दिया गया था।

आगे जब अस्पताल उपाधीक्षक से सामान ढोने वाली गाड़ी से शव ले जाने को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि उन्हें ऐसी कोई जानकारी नहीं है। जानकारी लेने के बाद बताया जाएगा।

पैसा लेने के बाद शव देने वाले सवाल पर भी उन्होंने कहा कि जांच की जाएगी। वैसे सदर अस्पताल के उपाधीक्षक हो या सिविल सर्जन बस वे एक ही बात हमेशा कहते हैं कि जानकारी मिली है। जाँच कर कार्रवाई की जायेगी। मगर कार्रवाई क्या होती है, आज तक कोई भी नही जान सका।

वैसे सूत्र बताते है कि बिहाशरीफ सदर अस्पताल का यह कोई नया कारनामा नही है। यहां सबको पता है कि लेवर वार्ड में जच्चा-बच्चा के परिजन से अवैध वसूली होती है। पोस्टमार्टम कक्ष में मरने के बाद भी शव लेने के लिए अवैध राशि की वसूली आम बात हो गई है। इस सदर अस्पताल में जब भी कोई मामला सामने आता है तो जिम्मेदार पदाधिकारी जाँच का हवाला देकर मामले को ठंडे बस्ते में डाल देते हैं।

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