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    Saturday, July 27, 2024
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      चुनाव में वोट वहिष्कार करना यानि अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना

      “लोकतंत्र की सफलता का आधार व्यापक नागरिक भागीदारी है और जब कोई चुनाव में भाग नहीं लेता तो वह पूरी प्रणाली को कमजोर करती है। देखा जाए तो वोट वहिष्कार खुद अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने के समान है। यह न केवल नागरिकों की आवाज़ को दबाता है, बल्कि लोकतांत्रिक प्रणाली को भी खतरे में डालता है…

      नालंदा दर्पण डेस्क। इन दिनों समूचे नालंदा लोकसभा क्षेत्र में ज्यों-ज्यों मतदान की तिथि नजदीक आ रही है, त्यों-त्यों चुनाव बहिष्कार की लपटें भी तेज हो रही है। पहले इक्के-दुक्के गांवों में वोट बहिष्कार की बात सामने आती थी, लेकिन अब तो इसकी संख्या और चलन बढ़ता ही जा रहा है।

      खबरों के अनुसार नालंदा लोकसभा चुनाव क्षेत्र में इस बार दर्जन भर गांवो में वोट बहिष्कार के बनैर-पोस्टर और घोषणाएं सामने आ चुके हैं। कहीं सोशल मीडिया तो कहीं सड़क पर उत्तर कर लोग अपनी मांगों को लेकर सामूहिक रूप से चुनाव बहिष्कार की बात कर रहे हैं। कहीं सड़क तो कहीं पंचायत सरकार भवन तो कहीं पेयजल तो कहीं अन्य समस्याओं को लेकर लोग चुनाव में शामिल नहीं होने के बैनर-पोस्टर तक जारी कर चुके हैं।

      कहीं वोटरों का आरोप है कि जनप्रतिनिधि द्वारा पक्की सड़क व अन्य निर्माण कार्य गुणवत्तापूर्ण नहीं की जाती है, जिसकी शिकायत करने पर भी प्रशासन कुछ भी कार्रवाई नहीं कू हैं। हालांकि चुनाव बहिष्कार की सूचना पर पूरा प्रशासन महकमा वोटरों के मान मनोबल में जुट जाता है।

      प्रायः ग्रामीणों की शिकायत है कि अन्य क्षेत्रों की तुलना में उनके गांव में विकास कार्य में भेदभाव किया जाता है। उनके कुछ सौ वोटर से सरकार नहीं बदल सकते हैं, लेकिन विरोध कर प्रशासन और सरकार को विकास कार्य के लिए ध्यान तो अपने ओर आकर्षित कर सकते हैं।

      हालांकि वर्षों वोट चुनाव बहिष्कार की सूचना पर प्रशासन और सरकार की हाथ-पैर फुलने लगते थे। सामूहिक वोट बहिष्कार करने वाले क्षेत्र लोगों को प्रशासनिक अधिकारी गंभीरता से लेते थे। लेकिन अब प्रशासन भी वोट बहिष्कार करने वाले लोगों को बहुत प्राथमिकता नहीं देते हैं।

      हालांकि यह सब उन पार्टियों और जनप्रतिनिधियों के लिए शर्मनाक है, जो लगातार चुनाव जीत कर संसद तक पहुंच रहे हैं और गांवों में पक्की सड़क और बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने में नाकाम साबित हो रहे हैं। हालांकि केंद्र व राज्य दोनों सरकार हर गांव पक्की सड़क पहुंचाने का दावा अपने-अपने स्तर से करती रही है।

      इस्लामपुर, बेन, नूरसराय, हिलसा, बिहारशरीफ, हरनौत, चंडी, नगरनौसा, थरथरी, करायपरसुराय आदि प्रखंड क्षेत्रों के दर्जन भऱ गांव के ग्रामीणों ने अब तक सड़क, पक्की गली, नल-जल पंचायत सरकार भवन आदि को लेकर चुनाव बहिष्कार कर अपना गुस्सा इजहार कर चुके हैं। हालांकि अधिकांश चुनाव बहिष्कार वाले गांवों में प्रशासन और जनप्रतिनिधि की आश्वासन से मामला शांत करने की पहल कर दी गई है। फिर भी लोगों का लोकतंत्र से विश्वास उठना बहुत बड़ा गंभीर मुददा है। जहां जिला प्रशासन मतदाता जागरूकता अभियान चला रहा है, वहीं उसके उल्टे लोगों में चुनाव बहिष्कार करने की चलन रफ्तार पकड़ रही है। ससमय इसपर विचार करने की जरूरत है। आने वाले समय में इस तरह की चलन लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं माना जा सकता।

      रोड नहीं तो वोट नहीः नूरसराय प्रखंड के मामूराबाद पंचायत के मिर्चायगंज में ग्रामीणों ने गांव में रोड नहीं तो लोकसभा चुनाव में वोट नहीं करने का सामूहिक निर्णय लिया। 13 सौ की आबादी वाला मिर्चायगंज के ग्रामीणों का आरोप है कि स्थानीय जनप्रतिनिधि से लेकर क्षेत्र के विधायक तक रोड के लिए आवेदन दे चुके हैं। 14-15 साल से अधिक समय बीतने के बाद भी गांव में पक्की सड़क नहीं बन पायी है। जबकि मिर्चायगंज गांव में ग्रामीण बाजार है, जहां मुकरामपुर, मोहम्मदपुर, चंद्र बिगहा, दयालपुर, मामूराबाद, गोबिंदपुर, ककैला, रामगढ़, खरजम्मा, सरबलपुर सकरौढ़ा, गजराज बिगहा, विशुनपुर जैसे करीब एक दर्जन गांव के ग्रामीणों को कच्ची सड़क से यहां के बाजार आना जाना पड़ता है। खासकर बरसात के समय में परेशानी बढ़ती है। अन्य दिनों में भी धूल कणों के बीच लोग आने जाने को विवश रहते हैं। मरीजों को अस्पताल पहुंचाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

      पक्की सड़क को लेकर वोटर नहीं देने की घोषणाः हिलसा प्रखंड के बारा पंचायत अंतर्गत बारा बिगहा गांव के लोगों पक्की सड़क की मांग को लेकर वोटर नहीं देने की घोषणा की है। ग्रामीण बताते हैं कि बरसात में कीचड़मय रास्ता से बाजार जाने के लिए वे लोग विवश होते हैं। चैनपुर-रघुनाथपुर तक जाने के लिए करीब छह सौ मीटर तक कच्ची अलंग है। इसके लिए ग्रामीणों ने दर्जनों बार जनप्रतिनिधियों एवं अधिकारियों से मांग की है, लेकिन बीते 18 वर्षों से ग्रामीणों को सिर्फ आश्वासन मिलते रहे हैं। इसलिए हार-थक कर इस बार यहां के ग्रामीणों ने चुनाव बहिष्कार करने का निर्णय लिया है। लोगों का कहना है कि हर बार प्रतिनिधि बदल जाते हैं, लेकिन जीतने के बाद भी इस पर ध्यान नहीं देते हैं। प्रशासन भी हर गांव तक पक्की सड़क योजना की सूची में बारा बिगहा गांव को शामिल नहीं किया है। वोट बहिष्कार के अलावा कोई विकल्प नहीं दिख रहा है।

      पंचायत सरकार भवन को लेकर वोट बहिष्कार का ऐलानः बेन प्रखंड के खैरा ग्रामवासियों ने अपने गांव के द्वार पर पंचायत सरकार भवन को लेकर लोकसभा चुनाव में वोट बहिष्कार का निर्णय लेते हुए एक बैनर लगा दिया था। ग्रामीणों के अनुसार पूरे पंचायत का सबसे बड़ा गांव खैरा है। इसलिए यहां पंचायत सरकार भवन बनना चाहिए, लेकिन 20 से 25 घर के एक टोला में पंचायत सरकार भवन बनाया जा रहा है। ग्रामीणों का आरोप है कि वह जिला से लेकर प्रखंड स्तर के पदाधिकारी से इस मामले में पक्ष रखा गया है।

      ग्रामीणों का कहना है कि पंचायत खैरा में खैरा गांव है और सबसे बड़ा रिवेन्यू विलेज खैरा ही हैं। पंचायत सरकार भवन पहले से ही इस गांव में अवस्थित है। इसके बाद नए स्वरूप में पंचायत सरकार भवन को बनाया जाना है तो यहां से अन्यत्र जगह चला गया है। जिला प्रशासन तत्काल उक्त जगह पर निर्माण हो रहे पंचायत सरकार भवन पर रोक लगाए नहीं तो वे लोग वोट बहिष्कार करेंगे।

      दरअसल, वोट वहिष्कार का परिप्रेक्ष्य और इसके पीछे के विभिन्न कारणों का विश्लेषण करने से पहले, यह समझना आवश्यक है कि यह प्रवृत्ति कितनी व्यापक और गहरी है। वोट वहिष्कार का मुख्य कारण राजनीतिक असंतोष है।

      जब नागरिक महसूस करते हैं कि उनके मताधिकार का कोई महत्व नहीं है या उनके मत का परिणाम पहले से निर्धारित है तो वे चुनाव प्रक्रिया से दूर हो जाते हैं। यह भावना अधिकतर तब उत्पन्न होती है जब राजनीतिक दलों और नेताओं के बीच व्यापक भ्रष्टाचार होता है।

      यही नहीं समाज के कुछ वर्गों द्वारा चुनाव प्रक्रिया से दूरी बनाना उनकी आवाज़ को कमजोर करता है। जब वे चुनाव में भाग नहीं लेते, तो उनके मुद्दे और समस्याएं अनसुनी रह जाती हैं। यह न केवल उनकी आवाज़ को कमजोर करता है, बल्कि लोकतांत्रिक प्रणाली को भी कमजोर करता है।

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