नालंदा दर्पण डेस्क। समूचे नालंदा जिले में चेकडैम हाथी का दांत बन कर रह गया है। हर साल मनरेगा योजना, सिंचाई विभाग, जल संसाधन विभाग आदि विभागों से पानी विहीन आहर पइन पोखर नदी उड़ाही पर लाखों रुपये खर्च किये जाते हैं। बावजूद पानी के अभाव में नदी, तालाब, पोखर, पइन की अस्तित्व संकट में है।
गत पांच वर्षों में जिले के अलग-अलग क्षेत्रों में किसानों के खेतों में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराने के नाम पर 16 चेकडैम का निर्माण कराया गया है। करोड़ों खर्च से बने चेकडैम से किसानों को कोई लाभ अब तक नहीं मिला है। क्योंकि जहां-जहां और जिस-जिस नदियों पर चेकडैम का निर्माण कराया गया है, उस-उस क्षेत्रों और नदियों में गत पांच साल से पानी का बहाव हीं नहीं आया है।
किसानों का कहना है कि सरकार और प्रशासन सिर्फ किसानों को मूर्ख बनाने के लिए चेकडैम का निर्माण करा दिया है। चेकडैम निर्माण का मुख्य उद्देश्य सिर्फ निर्माण एजेंसी को आर्थिक लाभ और काम देना है।
किसी भी जलधारा या नदी में रुकावट कर पानी को नियंत्रित करने के लिए चेकडैम बनाया जाता है, जिससे चेकडैम में पानी जमा कर आस-पास के खेतों को सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करायी जा सके, लेकिन चेकडैम बना दिया गया और नदियों में उसके उदगम स्थल झारखंड से पानी लाने की पहल अब तक नहीं की गई।
फिलहाल कुछ वर्ष पूर्व में नवनिर्मित 16 में से चार चेकडैम में हल्की दरारे तक आ गयी है। बिना पानी वाली नदियों की खुदाई और उड़ाही के नाम पर हर साल सरकार व प्रशासन ने करोड़ों रुपये खर्च कर रहे हैं, लेकिन झारखंड के तिलैया डैम से जोड़ने वाली नदियों को अतिक्रमण मुक्त करने पर ध्यान नहीं देते।
किसानों का कहना है कि तिलैया डैम बनने के बाद से नालंदा जिले की क्षेत्रीय नदियों पानीविहीन हो गयी। तिलैया डैम से तभी पानी छोड़ा जाता है, जब वहां बाढ़ या पानी से नुकसान होने की आशंका होती है।
नतीजतन बिना पूर्व सूचना और जानकारी के एकाएक तिलैया डैम के पानी छोड़ने से जिले में करोड़ों की फसल बर्बाद हो जाती है और जिले के कई क्षेत्रों में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। वहीं जब खेतों के लिए पानी की जरूरत होती है तब डैम से पानी नहीं छोड़ा जाता है।
जिले में नदी, पोखर, आहर, पइन, तालाबों का बिछा है जालः जिले में नदी, पोखर, आहर, पइन, तालाबों का जाल बिछा है। इन जलस्त्रोतों में नियमित पानी का बहाव के अभाव हैं। इसका लाभ जलस्त्रोत के आसपास के खेती वाले किसान और कुछ भू-माफिया उठा रहे हैं।
वर्ष 1913 के पारित नक्शा के अनुसार अधिकांश गांवों के आस-पास में बरसात के पानी जला करने के लिए आहर, पइन, पोखर बना हुआ था। इस जलस्त्रोतों के पानी से ही किसान सालों पर खेती कार्य करते थे और इससे भूजलस्तर भी बेहतर बना रहता था।
गाँव, पंचायत, प्रखंड से लेकर जिला मुख्यालय तक जलस्त्रोतों पर ही बसा हुआ है, लेकिन अधिकांश जलस्त्रोत के मुख्य भाग पर मकान, दुकान और भवन बन गये हैं। बेन प्रखंड कार्यालय, थाना, अस्पताल आदि सरकारी भवन तक जलस्त्रोत पर बना दिये गये हैं।
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