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    Tuesday, October 8, 2024
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      नालंदा संसदीय सीट पर मतदान प्रतिशत बढ़ाना एक बड़ी चुनौती

      बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। नालंदा संसदीय क्षेत्र में मतदान 1 जून को होना है। सातवें चरण में नालंदा लोकसभा के लिए वोट डाले जायेंगे। पहले चरण में कम वोटिंग को देखते हुए निर्वाचन आयोग और जिला प्रशासन लगातार मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए प्रयास में लगी है।

      जिले के अलग-अलग क्षेत्रों में लगातार स्वीप गतिविधियां चल रही है, लेकिन अब तो यह समय हीं बतायेगा कि इस संसदीय सीट के लिए मतदान में वोटरों का टर्न आउट प्रतिशत बढ़ पाता है या नहीं। पड़ोसी जिला नवादा में पहले चरण में चुनाव हुआ जहां वोटर टर्न आउट प्रतिशत काफी कम रहा।

      शायद यही वजह है कि निर्वाचन आयोग और जिला प्रशासन की बेचैनी बढ़ी है और वोटर टर्न आउट प्रतिशत बढ़ाने के लिए लगातार पहल तेज की गयी है। गर्मी बढ़ेगी तो वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने में बहाना होगा पसीना अप्रैल माह यानी चैत्र महीने में नवादा, शेखपुरा एवं गया जिले में वोट पड़ा, जिसमें वोटर टर्न आउट का प्रतिशत काफी कम रहा। निश्चित तौर पर गर्मी का भी असर रहा।

      लेकिन जब नालंदा संसदीय क्षेत्र के लिए वोटिंग होगा तब जून का पहला दिन होगा और जेठ महीना चल रहा होगा। ऐसे में तब की गर्मी निश्चित तौर पर नवादा के चुनाव के दौरान जो तापमान रहेगा उससे अधिक होने की संभावना है। हालांकि वोटर टर्न आउट प्रतिशत कम होने के पीछे निर्वाचन आयोग भी गर्मी को वजह मान रही है।

      यही कारण है कि बूथों पर शेड लगाने और पेयजल आदि की समुचित व्यवस्था के निर्देश के बाद पहल तेज हो गयी है लेकिन देखना यह होगा कि 2019 में हुए लोकसभा चुनाव की अपेक्षा वोटर टर्न आउट प्रतिशत बढ़ पाता है या नहीं।

      नालंदा संसदीय क्षेत्र में कुल सात विधानसभाई क्षेत्र है, जिसके लिए मतदाताओं की कुल संख्या 16 मार्च 2024 तक 22 लाख 77 हजार 790 है, जिसमें महिला वोटरों की संख्या 10 लाख 86 हजार 779 तथा पुरुष वोटरों की संख्या 11 लाख 90 हजार 941 है।

      लोग सहजता पूर्वक मतदान कर सके इसके लिए जिले के सभी सात विधानसभाई क्षेत्रों में मिलाकर कुल 2324 बूथ बनाये गये है। जिले में साक्षरता दर 2011 की जनगणना के अनुसार 52.82 फीसदी है, जहां सभी जाति, धर्म और वर्ग के मतदाता है।

      जिले की ग्रामीण आबादी में कुल मतदाताओं का लगभग 80 फीसदी से अधिक लोग रहते है। शहरी निकाय बढ़ने से शहरी वोटरों की संख्या में इजाफा हुआ है। लोकसभसा के अपेक्षा विधानसभा में वोटिंग प्रतिशत बेहतर वोटर टर्न आउट की बात करें तो 2019 के लोकसभा चुनाव में जिले में 48.7 फीसदी वोटिंग हुआ था। जबकि 2015 के विधानसभा चुनाव में वोटिंग का प्रतिशत 53.2 फीसदी था। 2014 के विधानसभा चुनाव में वोटर टर्न आउट प्रतिशत 52.6 था।

      निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि विधानसभा चुनाव की अपेक्षा लोकसभा चुनाव में वोट डालने में कम मतदाताओं ने दिलचस्प दिखाई। पंचायत और नगर निकाय चुनाव की बात करें तो इसका वोटर टर्न आउट प्रतिशत काफी भिन्न है।

      पिछले पंचायत चुनाव में जिले में लगभग 60 फीसदी से अधिक मतदान हुआ। जबकि 2022 में हुए नगर निकाय चुनावों में भी लगभग 61 फीसदी वोटरों ने चुनाव में दिलचस्पी दिखाई। पंचायत और नगर निकाय चुनाव में उम्मीदवार वोटरों के संपर्क में रहते हैं।

      अप्रवासी वोटर सामान्यतः नालंदा संसदीय क्षेत्र के लोग रोजी-रोजगार के लिए मानगरों या दूसरे शहरों में पलायन किये होते है जहां से वे घर वापस आकर चुनाव में वोटिंग करना उचित नहीं बूझते। वजह यह है कि ये अप्रवासी मजदूर वोट देने के लिए उतनी अधिक राशि, ट्रेन आदि के किराया और फिर काम से छुट्टी लेकर वेतन की कटौती में नहीं गंवाना चाहते।

      वहीं दूसरी ओर यह भी सच है कि ग्राम पंचायत और नगर निकाय चुनाव में प्रत्याशी व्यक्तिगत रूप से अप्रवासियों से संपर्क में होते है, जो आसपास के जिले या जिले के अन्यत्र भागों में काम कर रहे होते है। अब अलग-अलग चुनावों में वोटर टर्नआउट पर नजर डाली जाय तो ग्राम पंचायत और नगर निकाय चुनाव में वोटर टर्नआउट प्रतिशत काफी अधिक था वनिस्पत लोकसभा और विधानसभा चुनाव से।

      इसकी बड़ी वजह यह है कि पंचायत और नगर निकाय चुनाव में लोग या कहीं उम्मीदवार या उनके समर्थक हरेक वोटर की खबर रखते है। घरों से बूथ तक जाने के लिए प्रेरित करते हैं या फिर उनसे मिलकर अपने पक्ष में वोट करने की अपील करते हैं, जिसके कारण वोटर भी उत्साहित दिखते है।

      वहीं विधानसभा चुनाव में वोटरों से मिलने-जुलने का सिलसिला कुछ कम होता है और इसके कारण वोटर टर्नआउट प्रतिशत कम होता है। वहीं लोकसभा चुनाव में काफी कम वोटरों से उम्मीदवार या उनके समर्थक संपर्क कर पाते है और यह भी वजह होती है कि वोटर चुनाव में दिलचस्पी नहीं लेते है।

      जबकि पंचायत चुनाव और नगर निकाय में वोटर को बस या वाहन से उम्मीदवार या उनके समर्थक लाते हैं, जबकि राज्य से बाहर काम करने वाले मजदूर और अन्य वर्ग के लोगों को घर आकर वोट करने और फिर वापस जाने का ट्रेन टिकट तक बुक कराकर रखते है।

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