अन्य
    Friday, July 26, 2024
    अन्य

      निजी स्कूलों में हर साल नए किताबों की बढ़ती कीमत से अभिभावक हलकान

      बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। नालंदा जिले के सभी निजी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाना अभिभावकों के लिए एक स्टेटस सिंबल बन गया है।  जबकि अब सरकारी स्कूलों के बच्चे भी अच्छा कर रहे हैं और शिक्षा का स्तर भी काफी सुधरी है।

      अब नीजि स्कूलों की तुलना में शिक्षक भी काफी योग्य बहाल किए गए हैं। फिर भी सरकारी स्कूलों की निःशुल्क शिक्षा को भी नकार कर अभिभावक मोटी रकम खर्च कर निजी स्कूलों में ही अपने बच्चों को पढ़ने के लिए रपेटने में लगे हैं।

      आज के दौर में बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाने में साधारण परिवार कंगाल हो रहा है। एक तो निजी स्कूलों में हर वर्ष बच्चों की किताबें भी बदल दी जाती है। वहीं प्रकाशकों के द्वारा हर वर्ष किताबों की कीमतों में 10 से 20 फ़ीसदी तक की वृद्धि कर दी जाती है।

      महंगी होती किताबें अभिभावकों के लिए बड़ा सिर दर्द का कारण बन जाता है। जिन अभिभावकों के बच्चे निजी स्कूलों में पहले से ही पढ़ रहे होते हैं, उनके चेहरों पर भी सत्र बदलते ही चिंता की लकीरें दिखाई देने लगती है।

      चिंता इस बात की नहीं कि आगे आने वाले महीने में उनके बच्चों की रिजल्ट कैसी रहेगी, बल्कि चिंता इस बात की रहती है कि इस बार बच्चों की कॉपी-किताबों पर कितनी रकम खर्च करनी पडेगी।

      सबसे बड़ी परेशानी तो इस बात की होती है कि बढ़ी हुई राशि की भरपाई एक साधारण परिवार का मुखिया कैसे कर सकेगा।

      जिले के अधिकांश सीबीएसई स्कूलों में मार्च महीने से ही नए सत्र में एडमिशन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। अपने बच्चों का भविष्य संवारने के उद्देश्य से अभिभावक अपने दूसरे खर्ची में कटौती कर बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिले के लिए तैयार हो जाते हैं।

      जब किताबें खरीदने की बारी आती है तो किताबों की कीमतें देख कर ही पसीना आने लगता है। जैसे तैसे कर अभिभावक अपने बच्चों को किताबें खरीद पाते हैं। जबकि बच्चों की पुरानी किताबें बेकार हो जाती है।

      दरअसल, निजी स्कूलों की किताबें हर वर्ष बदलने से जहां प्रकाशकों को इसका लाभ मिलता है, वहीं अभिभावकों पर अतिरिक्त बोझ बढ़ता है।

      दूसरी तरफ बच्चों की हजारों रुपए की खरीदी गई पुरानी किताबें एक वर्ष में ही कबाड़ में बदल जाती है। इससे अभिभावकों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है।

      जबकि अभिभावकों के पास अपने बच्चों के लिए हर वर्ष नई किताबें खरीदने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं होता है। इसी प्रकार पुरानी किताबों को हर वर्ष तौल कर कबाड़ी वाले के यहां बेच दी जाती है।

      TRE-3 पेपर लीक मामले में उज्जैन से 5 लोगों की गिरफ्तारी से नालंदा में हड़कंप

      ACS केके पाठक के भगीरथी प्रयास से सुधरी स्कूली शिक्षा व्यवस्था

      दक्षिण बिहार ग्रामीण बैंक का बजट 2024-25 पर चर्चा सह सम्मान समारोह

      पइन उड़ाही में इस्लामपुर का नंबर वन पंचायत बना वेशवक

      अब केके पाठक ने लिया सीधे चुनाव आयोग से पंगा

      LEAVE A REPLY

      Please enter your comment!
      Please enter your name here

      This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

      संबंधित खबर

      error: Content is protected !!