बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। महाराष्ट्र प्रदेश के न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक में हुए 122 करोड़ रुपये के सनसनीखेज घोटाले की जांच की आंच अब बिहार के नालंदा जिले तक पहुंच गई है। इस घोटाले के तार डिजिटल दुनिया मॉल के मालिक से जुड़ते नजर आ रहे हैं। जिसके चलते महाराष्ट्र की आर्थिक अपराध इकाई (ईओडब्ल्यू) की टीम नालंदा के लहेरी थाना क्षेत्र में कार्रवाई के लिए पहुंची थी। हालांकि, टीम के हाथ निराशा ही लगी। क्योंकि कार्रवाई से पहले ही मॉल का सारा सामान हटा लिया गया था। इस घटनाक्रम ने घोटाले की परतों को और रहस्यमयी बना दिया है।
बता दें कि न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक में हुए इस घोटाले का खुलासा तब हुआ, जब बैंक के कार्यवाहक मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) देवर्षि घोष ने मध्य मुंबई के दादर पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई। शिकायत के मुताबिक बैंक के महाप्रबंधक हितेश मेहता और उनके कुछ सहयोगियों ने मिलकर एक सुनियोजित साजिश रची। इस साजिश के तहत बैंक की प्रभादेवी और गोरेगांव शाखाओं की तिजोरियों से 122 करोड़ रुपये गायब कर दिए गए।
जांच में यह भी सामने आया कि हितेश मेहता ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए इस हेराफेरी को अंजाम दिया। मामले की गंभीरता को देखते हुए मुंबई पुलिस ने इसे आर्थिक अपराध शाखा को सौंप दिया, जिसके बाद जांच का दायरा तेजी से बढ़ता गया।
बैंक की कुल 28 शाखाएं मुंबई महानगर में हैं। जबकि सूरत (गुजरात) में दो और पुणे में एक शाखा संचालित है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने भी इस मामले में सख्ती दिखाते हुए बैंक पर कई प्रतिबंध लगा दिए। जिसमें ग्राहकों के लिए पैसे निकालने और लोन वितरण पर रोक शामिल है। मार्च 2024 तक बैंक में 2436 करोड़ रुपये जमा थे, जिसके बाद यह घोटाला आम लोगों के बीच भी चर्चा का विषय बन गया।
जांच के दौरान घोटाले के तार बिहार से जुड़े, जब पता चला कि डिजिटल दुनिया मॉल के मालिक जावेद आजम इस मामले में एक प्रमुख आरोपित हैं। जावेद आजम को महाराष्ट्र सरकार के पूर्व मंत्री हैदर आजम का भाई बताया जा रहा है और उनका मूल निवास मधुबनी जिला है।
महाराष्ट्र की आर्थिक अपराध इकाई की टीम कोर्ट के आदेश के साथ नालंदा के रामचंद्रपुर नाला रोड स्थित डिजिटल दुनिया मॉल को सील करने पहुंची थी। लेकिन टीम के पहुंचने से पहले ही मॉल को खाली कर दिया गया और सारा सामान दूसरी जगह शिफ्ट कर लिया गया। स्थानीय पुलिस के अनुसार, यह भवन किराए पर लिया गया था। जिसके चलते टीम कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर सकी और खाली हाथ लौट गई।
जांच एजेंसी के अनुसार डिजिटल दुनिया की शाखाएं बिहार के कई जिलों में फैली हुई हैं और अन्य जिलों में भी इसकी संपत्तियों पर कार्रवाई की जा चुकी है। सूत्रों के मुताबिक जावेद आजम को इस घोटाले में शामिल अन्य आरोपित उन्नाथन अरुणाचलम के जरिए 18 करोड़ रुपये मिले थे। जांच में यह भी खुलासा हुआ कि उन्नाथन और उनके पिता मनोहर अरुणाचलम ने बैंक से 33 करोड़ रुपये की हेराफेरी की थी।
इस मामले में अब तक सात लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। जिसमें बैंक के पूर्व महाप्रबंधक हितेश मेहता, पूर्व सीईओ अभिमन्यु, रियल एस्टेट डेवलपर धर्मेश पौन और व्यवसायी जावेद आजम शामिल हैं। हितेश मेहता को इस घोटाले का मास्टरमाइंड माना जा रहा है। जिन्होंने 2019 में मनोहर अरुणाचलम को 15 करोड़ रुपये दिए थे। इसके अलावा बैंक के पूर्व चेयरमैन हीरेन भानु और उनकी पत्नी गौरी भानु के खिलाफ भी गैर-जमानती वारंट जारी किया गया है, जो मामले के सामने आने से पहले ही देश छोड़कर फरार हो गए थे।
फिलहाल मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा अब इस बात की तहकीकात कर रही है कि 122 करोड़ रुपये कहां गए और इस घोटाले में और कौन-कौन शामिल हो सकता है। जांच में यह भी पता चला है कि बैंक की तिजोरियों की क्षमता महज 10 करोड़ रुपये थी। लेकिन बैलेंस शीट में 122 करोड़ रुपये से अधिक की राशि दर्ज की गई थी। आरबीआई की जांच के दौरान प्रभादेवी शाखा में केवल 60 लाख रुपये और गोरेगांव शाखा में 10.53 करोड़ रुपये ही मिले।
इस घोटाले ने बिहार और महाराष्ट्र के बीच एक अप्रत्याशित कनेक्शन को उजागर किया है। जावेद आजम का मधुबनी से संबंध और डिजिटल दुनिया मॉल का नालंदा में संचालन इस बात का संकेत है कि घोटाले की कमाई को विभिन्न कारोबारी गतिविधियों में निवेश किया गया हो सकता है। स्थानीय लोगों में इस बात को लेकर भी चर्चा है कि 2023 में हुए दंगे में बिहार सरकार ने डिजिटल दुनिया को मुआवजा दिया था। जिसने इस मामले को और जटिल बना दिया है।
फिलहाल, आर्थिक अपराध शाखा इस घोटाले की हर कड़ी को जोड़ने में जुटी है। नालंदा में नाकाम रही कार्रवाई के बाद अब टीम अन्य संदिग्ध ठिकानों पर नजर रख रही है। यह मामला न केवल बैंकिंग व्यवस्था पर सवाल उठा रहा है, बल्कि आम लोगों के बीच भी चिंता का कारण बन गया है। जिनका पैसा इस बैंक में जमा है। जांच के नतीजे क्या होंगे, यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन यह घोटाला एक बार फिर वित्तीय संस्थानों में पारदर्शिता और जवाबदेही की जरूरत को रेखांकित करता है।
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