नालंदा दर्पण डेस्क / मुकेश भारतीय। बिहार प्रदेश में सीएम नीतीश कुमार के स्वजातीय कुर्मी बहुल्य हलका होने के कारण नालंदा लोकसभा क्षेत्र काफी हॉट सीट माना जाता रहा है। यहाँ का जनमत एक लंबे अरसे से नीतश कुमार के इर्द-गिर्द ही सिमटा हुआ है। लेकिन इस बार नीतीश कुमार ने जिस तरह से राजनीतिक पलटी मारी है, सारे समीकरण एक बार फिर से हाउच पाउच हो गई है। इस बार अपराजेय जदयू के लिए यह सीट उतना आसान रहने की संभावना नहीं दिख रही है, जैसा कि पिछले कई चुनावों का हाल रहा है।
पिछली लोकसभा चुनाव में इस सीट से जदयू (एनडीए) के खिलाफ महागठबंधन की ओर से हम पार्टी ने प्रत्याशी खड़ा किया था। जिसका न तो कोई पार्टी संगठन था और न ही उम्मीदवार की क्षेत्रीय पहचान। फिर भी सीधा मुकाबला हुआ था।
इस बार लोकसभा चुनाव को देखते हुए ही बतौर जदयू राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पलटी मारी है, ताकि उसका लाभ प्रत्याशी को मिल सके। पिछले तीन बार से उन्हीं की कृपा से कौशलेन्द्र कुमार सांसद निर्वाचित होते आ रहे हैं। उनका नीजि राजनीतिक बजूद न के बराबर है। इधर जदयू पार्टी की अंदरुनी गलियारों में अभी से यह चर्चा तेज है कि इस बार जदयू अपना प्रत्याशी बदलकर एक नया समीकरण बनाएगी, ताकि विरोधियों के आकड़ों में संभावित गड़बड़ी का फायदा मिल सके।
यदि हम जदयू से अलग अन्य राजनीतिक दलों के संगठन की मजबूती की बात करें तो राजद अधिक मजबूत नजर आती है। कांग्रेस के गिरते ग्राफ में कोई सुधार नहीं आया है। भाजपा संगठन की मजबूती पीएम मोदी के नाम पर ही आ टिकी है। वामपंथी दलों का अपना अलग कमजोर होता कैडर वोट है। इन सबों के बीच लोजपा और वीआईवी ने अपनी पैठ बढ़ाई है।
पिछले लोकसभा चुनाव में जिस हम पार्टी को जदयू के सामने खड़ा होने का अवसर मिला था, वह सिर्फ उसी चुनाव तक सीमित होकर रह गया। अब यहाँ हम पार्टी संगठन के नाम पर जीरो बटा सन्नाटा ही माना जाएगा।
फिलहाल, नालंदा लोकसभा क्षेत्र में राजनीतिक परिदृश्य की बात करें तो पूरी राजनीति चाचा नीतीश कुमार और भतीजा तेजस्वी यादव जैसे परस्पर विरोधी दो ध्रुव पर आ टिकी है। नीतीश कुमार की जदयू नीत एनडीए में भाजपा, लोजपा और हम जैसे दल शामिल हैं, वहीं तेजस्वी यादव की राजद नीत महागठबंधन में कांग्रेस, वीआईपी और भाकपा, माकपा माले सरीखे वामपंथी दल।
इस बाद जदयू की सबसे बड़ी परेशानी होगी भाजपा, लोजपा और हम पार्टी के अंदरुनी हमलों से निपटना। बड़े नेताओं की तरह भाजपा कार्यकर्ताओं के दिल के दरवाजे कितने खुलते-मिलते हैं, भाजपा के स्वघोषित ‘हनुमान’ लोजपा की कितनी भक्ति सामने आती है, ‘मांझी’ अपना अपमान कितना भूल पाते हैं। ये खास मायने रखती है। जबकि राजद ने जदयू के महागठबंधन में शामिल होने के बाबजूद अपने संगठन को मजबूत करने पर खास ध्यान देते रहा है। सहयोगी कांग्रेस भी अपनी हलचल बनाए रखी है। (क्रमशः जारी…)
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