“पीने योग्य पानी की बर्बादी पर एनजीटी के नियमों के तहत कार्रवाई करने से ही गंगाजल और नलजल की बर्बादी पर रोक संभव है। चार साल से अधिक समय से पीएचइडी में जमे पदाधिकारियों का स्थानांतरण होनी चाहिए। लम्बे समय से एक ही स्थान पर पदस्थापित पदाधिकारी विभागीय कार्य में कम और राजनीतिक में अधिक दिलचस्पी रखते हैं…
राजगीर (नालंदा दर्पण)। एक तरफ नगर परिषद सहित प्रखंड क्षेत्र के विभिन्न गांवों में जल संकट दिन पर दिन गहराता जा रहा है, तो दूसरी तरफ पेयजल की बर्बादी बड़े पैमाने पर हो रही है। पानी बर्बादी पर रोक लगाने की यहां कोई रणनीति नहीं है।
फलस्वरूप करोड़ों खर्च के बाद भी हर घर नल जल योजना से सभी घरों की प्यास नहीं बुझ रही है। राजगीर में हर घर गंगाजल आपूर्ति का दावा किया जाता है। वहीं नगर परिषद द्वारा 10 वार्डों में टैंकर से जलापूर्ति का दावा किया गया है। प्रचंड गर्मी शुरू होते ही प्रखंड के अधिकांश हिस्सों में पेयजल संकट सिर चढ़कर बोलने लगा है।
खबरों की माने तो पीएचइडी की लापरवाही के कारण जल संकट विकराल होते जा रहा है। पेयजल के लिए लोग भटक रहे हैं। नल जल योजना से जलापूर्ति नहीं होने पर गांव बाहर के बोरिंग पर से पानी लाकर प्यास बुझाने के लिए ग्रामीण मजबूर हैं। नगर परिषद, राजगीर में भी वाटर सप्लाई का हाल अच्छा नहीं है। शहर में मनमाने समय से एक बार जलापूर्ति की जाती है। ऊंची जगहों पर पानी नहीं पहुंचने और पाइप लीकेज होने से पानी बर्बाद होने की शिकायत है।
वार्ड पार्षद डॉ अनिल कुमार के अनुसार शहर के ब्लॉक रोड में आर्य समाज मंदिर के पास चार दिनों से गंगाजल के मेन पाइप में बड़ा लीकेज है। पूरे दिन लाखों लीटर पानी की बर्बादी हो रही है। सूचना देने के बाद भी पीएचइडी के पदाधिकारियों द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गयी है।
यही हाल वार्ड तीन, चार, पांच, 26, 29 आदि की है। वार्ड चार में जल मीनार है, लेकिन उसमें गंगाजल की नहीं, पंचाने नदी के बोरिंग का पानी चौबीस घंटे में एक बार आपूर्ति की जाती है। इस जल मीनार से हसनपुर, नाहुब, नोनही, बेलौआ, झालर, सीमा, सौर आदि गांवों में जलापूर्ति की व्यवस्था है।
नागरिकों की माने तो विभागीय कर्मियों की अकर्मण्यता के कारण करीब 50 फीसदी घरों में जलापूर्ति नहीं होती है। वार्ड पांच लहुआर में जल मीनार नहीं है। वहां 10 किलोमीटर दूर पंचाने नदी के बोरिंग डायरेक्टर जलापूर्ति की व्यवस्था है। लहुआर के बगल के गांव पोखरपर में हर से घर नलजल योजना का कनेक्शन ही नहीं हुआ है।
वार्ड पांच के लहुआर निवासी शैलेंद्र कुमार, अनिता गहलौत, विकास गहलौत एवं अन्य ने बताया कि लहुआर में जल मीनार बहुत जरूरी है। जबतक जल मीनार नहीं बनेगा, तब तक मुख्यमंत्री का यह महत्वाकांक्षी योजना हर घर की प्यास बुझाने में सफल नहीं हो सकेगी।
गोरौर पंचायत निवासी बीरमणि प्रसाद बताते हैं कि उनके गांव में नल से जल की आपूर्ति मनमाने तरीके से किया जाता है। ग्रामीण पीएचइडी की लापरवाही से परेशान हैं। अब ग्रामीण खुद अपने घरों में डीप लेवल बोरिंग कराने लगे हैं।
चंडी मौ रविदास टोला के लोगों की माने तो विभागीय उदासीनता के कारण उनके टोला में अबतक हर घर नलजल की आपूर्ति शुरू नहीं हुई है। प्रशांत कुमार एवं अन्य ग्रामीण बताते हैं कि उनके गांव चंडी मौ में जल मीनार नहीं है। इसलिए यह योजना यहां अनुकूल साबित नहीं हो रहा है।
नगर परिषद के वार्ड नंबर 26 के दहचन्नी पर निवासियों को गंगाजल योजना का लाभ नहीं मिल रहा है। इस टोला के करीब 50 घरों में गंगाजल की आपूर्ति अबतक शुरू नहीं हुई है।
गोरौर गोड़ी पर सूर्य मंदिर के समीप के निवासी नीतीश कुमार एवं अन्य बताते हैं कि उनलोगों के घरों में नलजल योजना का पाइप ही अबतक नहीं बिछाया गया है। नल जल कनेक्शन और जलापूर्ति की बात तो कोसों दूर की बात है। गोरौर महादलित टोला में भी जलापूर्ति विभागीय उपेक्षा का शिकार है।
पीएचईडी की लापरवाही पर नकेल कसने के लिए एनजीटी कानून का इस्तेमाल जरूरी है। पीने योग्य पानी की बर्बादी पर एनजीटी के नियमों के तहत कार्रवाई करने से ही गंगाजल और नलजल की बर्बादी पर रोक संभव है। चार साल से अधिक समय से पीएचइडी में जमे पदाधिकारियों का स्थानांतरण होनी चाहिए। लम्बे समय से एक ही स्थान पर पदस्थापित पदाधिकारी विभागीय कार्य में कम और राजनीतिक में अधिक दिलचस्पी रखते हैं।
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