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देव सूर्य मंदिर: आस्था, चमत्कार और शिल्पकला का अनूठा संगम

Dev Surya Mandir A unique confluence of faith, miracle and craftsmanship
Dev Surya Mandir A unique confluence of faith, miracle and craftsmanship

नालंदा दर्पण डेस्क। भारत के पौराणिक तीर्थस्थलों में देव सूर्य मंदिर एक ऐसी अलौकिक धरोहर है, जो अपनी ऐतिहासिकता, आध्यात्मिक महिमा और स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है। त्रेतायुग से जुड़ा यह पवित्र स्थल न केवल सूर्यदेव की आराधना का केंद्र है, बल्कि मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाले दिव्य चमत्कारों के लिए भी जाना जाता है। यह मंदिर सदियों से श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। खासकर कार्तिक और चैती छठ पर्व के दौरान जब हजारों भक्त भगवान भास्कर की कृपा प्राप्त करने के लिए यहां एकत्र होते हैं।

जनश्रुति के अनुसार त्रेतायुग में राजा ऐल श्वेत कुष्ठ नामक गंभीर चर्मरोग से पीड़ित थे। एक दिन शिकार के दौरान वे देव के वन क्षेत्र में भटक गए। प्यास से व्याकुल होकर वे एक छोटे सरोवर के पास पहुंचे। जैसे ही उन्होंने सरोवर के जल को स्पर्श किया। उनके शरीर पर चमत्कारी प्रभाव हुआ और जहां-जहां पानी लगा, वहां का रोग ठीक हो गया। आश्चर्यचकित राजा ने पूरे शरीर को जल से भिगोया और उनका रोग पूरी तरह समाप्त हो गया। उस रात उन्हें स्वप्न में भगवान भास्कर ने दर्शन दिए और निर्देश दिया कि वे सरोवर से सूर्यदेव की प्रतिमा निकालकर एक भव्य मंदिर का निर्माण कराएं।

राजा ऐल ने आज्ञा का पालन करते हुए मंदिर और सूर्यकुंड का निर्माण करवाया। हालांकि, मूल प्रतिमा का स्थान आज भी रहस्य बना हुआ है। लेकिन वर्तमान में मंदिर में स्थापित मूर्ति भी प्राचीन और प्रभावशाली है। यह कथा आज भी श्रद्धालुओं के बीच आस्था का आधार बनी हुई है।

एक अन्य लोकप्रिय कथा के अनुसार इस मंदिर का निर्माण स्वयं देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने एक ही रात में किया था। मंदिर की संरचना, इसकी बारीक नक्काशी और पत्थरों की शिल्पकला इसे अद्वितीय बनाती है। देश के अन्य सूर्य मंदिरों की तरह यह मंदिर भी सूर्य की किरणों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। लेकिन इसकी एक खासियत इसे सबसे अलग करती है। जहां अधिकांश सूर्य मंदिर पूर्व दिशा में मुख करके बनाए गए हैं। ताकि सूर्योदय की पहली किरणें मूर्ति पर पड़ें, वहीं देव सूर्य मंदिर में सूर्यास्त की किरणें मूर्ति को प्रकाशित करती हैं। यह रहस्य वैज्ञानिकों और श्रद्धालुओं के लिए कौतूहल का विषय बना हुआ है।

छठ पर्व के दौरान इस मंदिर की महत्ता कई गुना बढ़ जाती है। इस समय भक्तजन सूर्यकुंड और मंदिर परिसर में एकत्र होकर भगवान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। मान्यता है कि छठ के दौरान सूर्यदेव की कृपा और उपस्थिति विशेष रूप से प्रबल होती है। जिससे भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। कार्तिक और चैती छठ के अवसर पर यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है, जो इस स्थान की आध्यात्मिक शक्ति में अपने विश्वास को दर्शाती है।

देव सूर्य मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और पौराणिक इतिहास का जीवंत प्रतीक भी है। इसकी वास्तुकला, लोककथाएं और आध्यात्मिक ऊर्जा इसे अन्य सूर्य मंदिरों से विशिष्ट बनाती हैं। यहां आने वाले श्रद्धालु न केवल सूर्यदेव की कृपा प्राप्त करते हैं, बल्कि इस प्राचीन धरोहर को देखकर आंतरिक शांति और आनंद का अनुभव भी करते हैं।

देव सूर्य मंदिर आज भी उन भक्तों के लिए आशा का केंद्र बना हुआ है, जो श्रद्धा और विश्वास के साथ यहां आते हैं। कहा जाता है कि जो भी सच्चे मन से सूर्यदेव की आराधना करता है, उसकी हर मनोकामना पूरी होती है। यह तीर्थस्थल अपनी पौराणिक कथाओं, चमत्कारों और स्थापत्य कला के कारण न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी अनमोल है।

 

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