Home फीचर्ड आखिर प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को किसने क्यों जलाया, जानें रोचक किस्से कहानियां

आखिर प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को किसने क्यों जलाया, जानें रोचक किस्से कहानियां

ancient Nalanda University and why Know interesting stories
Who burnt the ancient Nalanda University and why? Know interesting stories

नालंदा दर्पण डेस्क। प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय ने भारतीय उपमहाद्वीप में उच्च शिक्षा के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसका गठन पांचवीं शताब्दी में हुआ और यह लगभग 800 वर्षों तक सक्रिय रहा। यह विश्वविद्यालय न केवल भारत में बल्कि विश्वभर में शिक्षा के एक प्रमुख केंद्र के रूप में स्थापित हुआ, जहां विभिन्न विषयों जैसे कि बौद्ध धर्म, तर्कशास्त्र, चिकित्सा और अर्थशास्त्र में उच्च स्तर के ज्ञान का प्रसार हुआ। नालंदा विश्वविद्यालय का महत्व इसके विशिष्ट पाठ्यक्रम और शोध पद्धतियों में निहित है।

इस विश्वविद्यालय में शिक्षकों और छात्रों का एक विविध समूह मौजूद था, जिसमें भारत के साथ-साथ अन्य देशों जैसे चीन, तिब्बत, कोरिया और जापान से विद्वान भी शामिल थे। ये सभी छात्रों ने यहाँ आकर न केवल अपने ज्ञान को विकसित किया, बल्कि उन्होंने नालंदा को एक बहुविवेचनात्मक और बहुसांस्कृतिक शिक्षा के केंद्र के रूप में स्थापित किया। इसके शिक्षण मानकों और शोध के स्तर ने इसे दार्शनिकों, वैज्ञानिकों और धर्मगुरुओं का ठिकाना बना दिया।

नालंदा विश्वविद्यालय का सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान उसकी दीर्घकालिक प्रभावशीलता है। इससे निकले हुए विद्वानों ने न केवल भारतीय ज्ञान परंपरा को समृद्ध किया, बल्कि विश्व में भी बौद्धिक वर्क का विस्तार किया। इसके विकास के चरणों में इसने छात्रों को सारगर्भित शिक्षा प्रदान की, जिसने आने वाली पीढ़ियों पर सकारात्मक प्रभाव डाला। अतः प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय भारतीय शिक्षा और संस्कृति की अद्वितीय पहचान प्रस्तुत करता है, जो आज भी अध्ययन का एक प्रेरणास्त्रोत है।

नालंदा विश्वविद्यालय को जलाने की घटनाः

नालंदा विश्वविद्यालयअपनी महानता और समृद्धि के लिए जाना जाता था। लेकिन इसे जलाने की घटना न केवल एक ऐतिहासिक घटना है, बल्कि यह भारतीय शिक्षण और संस्कृति के लिए एक गहरा आघात भी थी। यह घटना 1193 ईस्वी में हुई, जब सबसे प्रमुख शासक मोहम्मद गौरी के एक सेनापति कुतुब-उद-दीन ऐबक के नेतृत्व में नालंदा पर आक्रमण किया गया। यह आक्रमण अभी भी वैभवशाली नालंदा विश्वविद्यालय के समक्ष एक हैरान करने वाला क्षण बना हुआ है।

इस आगजनी के पीछे कई कारण थे। इस्लामिक शासन के फैलने के साथ बौद्ध शिक्षण संस्थानों और हिंदू धर्म के प्रतीकों का तिरस्कार बढ़ता गया। नालंदा विश्वविद्यालय जो बौद्ध धर्म का एक प्रमुख केंद्र था, विजेता सेनाओं की नफरत का निशाना बना। कुतुब-उद-दीन ऐबक ने न केवल गुरुओं और छात्रों का वहन किया, बल्कि विश्वविद्यालय की पुस्तकालयों और शिक्षण सामाग्री को भी अग्नि के हवाले कर दिया। इस भयंकर आगजनी की वजह से लाखों ग्रंथ, जो ज्ञान का भंडार थे, वे नष्ट हो गए।

इस घटना की ऐतिहासिक महत्ता को हम केवल इसके परिणामों से नहीं, बल्कि इसके पीछे छिपे बौद्धिक संघर्षों से भी समझ सकते हैं। इसके साथ ही अलग-अलग सम्राटों जैसे कि वजीर तुर्गुयुग और उसके शासनों की आज्ञाओं ने भी इस आगजनी को प्रोत्साहित किया। बौद्ध धर्म और उसके शिक्षण के प्रति बढ़ती वैमनस्यता ने नालंदा की मूलभूत संरचना को कमजोर किया। आगे चलकर इस आगजनी ने नालंदा विश्वविद्यालय के अस्तित्व को समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

इस आगजनी का राजनीतिक और सामाजिक प्रभावः

नालंदा विश्वविद्यालय की आगजनी केवल एक भौतिक घटना नहीं थी, बल्कि इसका राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव व्यापक और दूरगामी था। जब इस प्राचीन विश्वविद्यालय को जलाया गया तो यह सिर्फ ज्ञान की एक संपत्ति का विनाश नहीं था, बल्कि एक समृद्ध शिक्षा प्रणाली को नष्ट करने की प्रक्रिया का हिस्सा था। इस घटना ने समाज में शिक्षा के प्रति दृष्टिकोण को प्रभावित किया और ज्ञान के प्रसार में बाधा डाली।

आगजनी के बाद भारत में शिक्षा की धारा में कमी आ गई। नालंदा विश्वविद्यालय ने विश्वभर के छात्रों को आकर्षित किया था और यहाँ का ज्ञान केवल एक इमारत में ही सीमित नहीं था। यह आधिकारिक रूप से एक विचारधारा और संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता था, जो अब धुंध में खो गया। समाज में शिक्षा का स्तर गिरने लगा, जिससे न केवल सामाजिक गतिशीलता प्रभावित हुई, बल्कि देश के सांस्कृतिक विकास पर भी नकारात्मक असर पड़ा।

इस प्रकार की घटनाओं ने भारतीय समाज में शिक्षा के प्रति एक भय का वातावरण निर्मित किया। छात्रों और शिक्षकों ने न केवल अपनी जान का खतरा महसूस किया, बल्कि ज्ञान अर्जन की प्रक्रिया को भी जोखिम में समझा। इसके परिणामस्वरूप कई प्रतिभाशाली व्यक्तियों ने उच्च शिक्षा के लिए विदेश का रुख किया, जिससे भारतीय शिक्षा प्रणाली में एक दरार उत्पन्न हुई।

भविष्य की शिक्षा प्रणालियों पर इस आगजनी ने दीर्घकालिक प्रभाव डाला। नालंदा का विनाश एक चेतावनी के रूप में उभरा, जिसके परिणामस्वरूप ज्ञान के केंद्रों को सुरक्षित करने की आवश्यकता का एहसास हुआ। भारत में शिक्षा की नीति पर यह घटना एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर बनी, जिसने सभी को शिक्षा की सुरक्षा और स्थिरता पर ध्यान केंद्रित करने के लिए मजबूर किया।

नालंदा विश्वविद्यालय के पुनर्निर्माण की कोशिशें

नालंदा विश्वविद्यालय, जो प्राचीन भारत का एक प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र था, को पुनर्निर्माण की दिशा में कई प्रयासों का सामना करना पड़ा है। इस ऐतिहासिक स्थल की पहचान को पुनर्जीवित करने के लिए विभिन्न संगठनों और व्यक्तियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। प्राथमिक प्रयास 1951 में भारतीय सरकार द्वारा प्रारंभ किया गया, जब नालंदा की पुरानी संरचनाओं और अवशेषों को संरक्षित करने के लिए एक योजना बनाई गई। इसके बाद, 1974 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने नालंदा के उत्खनन और संवर्धन के लिए एक व्यापक योजना का कार्यान्वयन किया। इस प्रक्रिया में पुरातत्वविदों की विशेषज्ञता ने नालंदा की प्राचीन विरासत को संरक्षित करने में सहायता की।

सम्पूर्ण दुनिया में नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने के प्रयासों में अंतरराष्ट्रीय संगठनों का भी योगदान रहा है। 2006 में भारत और बांग्लादेश के बीच सहयोग से नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए एक नई पहल की गई। यह विश्वविद्यालय केवल एक शिक्षा केंद्र नहीं रहेगा बल्कि विश्व स्तरीय अनुसंधान और शैक्षणिक संवाद का स्थान बनकर उभरेगा। वर्तमान में नालंदा विश्वविद्यालय विभिन्न अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों के साथ सहयोग स्थापित करने में सक्रिय है, जिससे कि इसके कार्यक्रम और शोध कार्य वैश्विक मानकों के अनुरूप हो सकें।

नालंदा के पुनर्निर्माण में स्थानीय समुदायों का भी सहयोग महत्वपूर्ण रहा है। उन्होंने न केवल इस ऐतिहासिक स्थल के प्रति अपनी जागरूकता बढ़ाई है, बल्कि नालंदा की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने के लिए भी भाग लिया है। कुल मिलाकर नालंदा विश्वविद्यालय का पुनर्निर्माण एक सामूहिक प्रयास है, जो पुरानी विरासत को संजोते हुए एक नई शैक्षणिक यात्रा की शुरुआत कर रहा है।

NO COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

error: Content is protected !!
Exit mobile version