बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। नालंदा जिले में किराया भत्ता लेने वाले प्रायः सरकारी सेवक अपने कार्यालय क्षेत्र में नहीं रहते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के कार्यलयों में तो उनका आना जाना गर्मी में बारिश की तरह होता है।
जबकि अधिकांश शिक्षक, डॉक्टर, पशु चिकित्सक से लेकर अलग प्रखंड और अंचल स्तरीय विभाग के अधिकारी-कर्मी नियमानुसार सरकारी सुविधा और लाभ लेने में आगे रहते हैं, लेकिन बदले में जनसेवा और डयूटी बजाने में पिछड़ जाते हैं।
बहुत से प्रखंड स्तर पर पदस्थापित अधिकारी से लेकर कर्मचारी जिला स्तर या पटना से आते-जाते हैं। इन पर जिलास्तरीय शीर्ष अधिकारी की आंख कभी नहीं खुलती। वे कभी भी अपने स्तर से औचक निरीक्षण नहीं करने एसी कमरे से बाहर नहीं निकलते।
लोगों का कहना है कि विम्स से लेकर प्रखंड स्तरीय स्वास्थ्य केंद्र के चिकित्सक, सांख्यिकी, कृषि, प्रखंड स्तर पर बहाल सामाजिक सुरक्षा कोषांग, आरटीपीएस काउंटर, मनरेगा आदि कार्यालयों के कंप्यूटर ऑपरेटर तक 20 से 30 किलोमीटर दूर से आना जाना करते हैं।
इससे सबसे अधिक निर्धारित समय से काउंटर खुलना और बंद होने की प्रक्रिया प्रभावित होता है। अवकाश के लिए भी कार्यालय क्षेत्र छोड़ने के लिए अपने वरीय पदाधिकारी से अनुमति लेनी होती है। लेकिन बहुत से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में कार्यरत जीएनएम और प्रखंडस्तरीय चिकित्सक पटना और बिहारशरीफ से आना-जाना करते हैं।
लोग कहते हैं कि प्रायः सरकारी कर्मी अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाने के नाम पर जिला मुख्यालय बिहारशरीफ या राजधानी पटना के निजी कोचिंग एवं निजी स्कूल में नामांकन कराये हुए हैं। जिसके लिए खुद भी सपरिवार बिहारशरीफ और पटना में रहते हैं और 30 से 50 किलोमीटर दूर पदस्थापित स्कूलों में आना-जाना करते हैं। नतीजतन लंबी दूरी से ड्यूटी करने आने-जाने में ही पदाधिकारी कर्मी थक जाते हैं। ऐसे में वे अपना काम क्या खाक करेंगे।
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